Edited By Prachi Sharma,Updated: 21 Jun, 2024 01:42 PM
एक महात्मा भ्रमण करते हुए किसी नगर से होकर जा रहे थे। मार्ग में उन्हें एक रुपया मिला। महात्मा तो वैरागी और संतोष से भरे व्यक्ति थे भला एक रुपए का क्या करते इसलिए उन्होंने यह रुपया
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Inspirational Story: एक महात्मा भ्रमण करते हुए किसी नगर से होकर जा रहे थे। मार्ग में उन्हें एक रुपया मिला। महात्मा तो वैरागी और संतोष से भरे व्यक्ति थे भला एक रुपए का क्या करते इसलिए उन्होंने यह रुपया किसी दरिद्र को देने का विचार किया। कई दिनों की तलाश के बाद भी उन्हें कोई दरिद्र व्यक्ति नहीं मिला।
एक दिन वह अपने दैनिक क्रियाकर्म के लिए सुबह उठे तो देखा कि एक राजा अपनी सेना को लेकर दूसरे राज्य पर आक्रमण के लिए उनके आश्रम के सामने से सेना सहित जा रहा है।
ऋषि बाहर को आए तो उन्हें देखकर राजा ने अपनी सेना को रुकने का आदेश दिया और खुद आशीर्वाद के लिए ऋषि के पास आकर बोले-महात्मन मैं दूसरे राज्य को जीतने के लिए जा रहा हूं ताकि मेरे राज्य का विस्तार हो सके। इसलिए मुझे विजयी होने का आशीर्वाद प्रदान करें।
इस पर ऋषि ने काफी देर सोचा और सोचने के बाद वह एक रुपया राजा की हथेली में रख दिया। यह देखकर राजा हैरान और नाराज दोनों हुए लेकिन उन्हें इसके पीछे का रहस्य समझ में नहीं आया।
कारण पूछने पर महात्मा ने राजा को सहज भाव से जवाब दिया कि राजन कई दिनों पहले मुझे यह एक रुपया आश्रम आते समय मार्ग में मिला था तो मुझे लगा किसी दरिद्र को इसे दे देना चाहिए क्योंकि किसी वैरागी के पास इसके होने का कोई मतलब नहीं है। बहुत खोजने के बाद भी मुझे कोई दरिद्र व्यक्ति नहीं मिला लेकिन आज तुम्हें देखकर यह ख्याल आया कि तुमसे दरिद्र तो कोई है ही नहीं इस राज्य में जो सब कुछ होने के बाद भी किसी दूसरे बड़े राज्य के लिए भी लालसा रखता है। यही एक कारण है कि मैंने तुम्हें यह एक रुपया दिया है।
राजा को अपनी गलती का एहसास हो गया और उसने युद्ध का विचार भी त्याग दिया।