Lala Jagat Narain Story: जीवन के युद्ध क्षेत्र में वीर सिपाही थे लाला जी...

Edited By Updated: 13 Oct, 2024 10:01 AM

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लाला जगत नारायण ने कांग्रेस का परित्याग कर दिया, परंतु राजनीति के क्षेत्र का नहीं। वह पलायनवादी नहीं थे। जीवन के युद्ध क्षेत्र में वीर सिपाही थे। 1964 में लाला जी राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए

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Lala Jagat Narain Story: लाला जगत नारायण ने कांग्रेस का परित्याग कर दिया, परंतु राजनीति के क्षेत्र का नहीं। वह पलायनवादी नहीं थे। जीवन के युद्ध क्षेत्र में वीर सिपाही थे। 1964 में लाला जी राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए तथा 1964 से 1970 तक संसद सदस्य के रूप में सिद्धांतपूर्ण राजनीति के ध्वजारोही रहे। इस बार वह कांग्रेस के प्रत्याशी न होकर विपक्ष के प्रत्याशी थे। स. प्रताप सिंह कैरों व लाला जी के मध्य खुली राजनीतिक लड़ाई थी।

स. प्रताप सिंह कैरों की कार्यशैली से क्षुब्ध स. गुरदयाल सिंह ढिल्लों व कुछ अन्य कांग्रेसी विधायक कांग्रेस छोड़ कर आजाद विधायक बने हुए थे। लाला जी को ऐसे विधायकों का समर्थन मिला। वह राज्यसभा चुनाव जीत गए।  उनकी विजय स. कैरों की राजनीतिक प्रतिष्ठा के लिए एक गहरा आधात थी। वैसे तो लाला जी हर चुनौती को स्वीकार करते थे लेकिन संकट के समय उनके व्यक्तित्व का सर्वश्रेष्ठ  भाग स्वयंमेव ही प्रकट हो जाता था। पं. नेहरू जी के साथ भले ही लाला जी के नीतिगत  मतभेद रहे हों, परंतु वह भी लाला जी की  क्षमता व प्रभाव को भली-भांति समझते थे। राज्यसभा सदस्य निर्वाचित होने के एक संस्मरण में लाला जी ने लिखा : 

‘‘राज्यसभा का सदस्य चुने जाने के बाद मैं शपथ लेकर जब लॉबी में पहुंचा तो पं. नेहरू जी वहां आ गए। विपक्षी सदस्य मुझे जीतने पर बधाई दे रहे थे। पं. नेहरू ने उस समय मुझसे कहा - लाला जी हमने तो भरसक कोशिश की कि आप यहां तक न पहुंच सकें, परंतु आप जीत कर यहां आ ही गए हैं। नि:संदेह यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसके लिए मैं आपको बधाई देता हूं तथा हमारी नीति के अनुरूप कोई भी कार्य हो तो आप मुझे बताएं, आपका कार्य हो जाएगा।’’
नेहरू जी ने यह बात 40 संसद सदस्यों के सामने कही थी। लाला जी पं. नेहरू के व्यक्तित्व के इन गुणों से प्रभावित थे। लाला जी ने जब कभी नेहरू को पत्र लिखा, उसका उत्तर उन्होंने लाला जी को अवश्य दिया। लाला जी नेहरू जी की कुछ कमियों के बावजूद उन्हें आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक स्वीकार करते थे।

राष्ट्रपति वी.वी. गिरि का चुनाव उनके इस दौर की एक अन्य महत्वपूर्ण घटना है। श्रीमती इंदिरा गांधी व मोरारजी देसाई, निजलिन्गप्पा आदि के मध्य खाई पड़ चुकी थी। इस महत्वपूर्ण चुनाव में भी लाला जी की अहम भूमिका रही। वी.वी. गिरि जी की स्थिति विशेष अच्छी नहीं थी, परंतु धीरे-धीरे सभी विपक्षी दलों ने उन्हें अपना समर्थन दे दिया। 

स्वयं श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी कांग्रेस के निर्देशों की अवहेलना करते हुए अपना  समर्थन श्री वी.वी. गिरि को दिया जिससे  राष्ट्रपति पद के लिए श्री वी.वी. गिरि की जीत निश्चित हो गई तथा वह राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए। लाला जी पहले ही उनकी जीत की भविष्यवाणी कर चुके थे तथा यह भविष्यवाणी भी सत्य सिद्ध हुई। 
इतनी प्रतिष्ठा व प्रभाव होते हुए भी उन्होंने कभी अपने पद का अभिमान नहीं किया। विनम्रता उनका स्वभाव थी। एक बार वह एक चुनावी बूथ में वोट डालने गए। श्री ए.एस. तरफ्दार उस बूथ पर चुनाव अधिकारी थे। लाला जी मतदाताओं की पंक्ति में खड़े थे। उनके आगे 10-15 लोग थे।

आज जब कानून के निर्माता व कानून के ‘रक्षक’ स्वयं ही कानूनों के भक्षक बने हुए हैं, लाला जी के जीवन की यह साधारण-सी घटना उनके लिए पथ प्रदर्शक सिद्ध हो सकती है।

1965 में जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया तो लाला जी ने सभी मतभेदों को भुला कर राष्ट्रहित में सरकार को पूर्ण समर्थन दिया। देशवासियों की राष्ट्र भावना को जगाने, मनोबल को दृढ़ करने हेतु लेख लिखे तथा अपनी सुख-सुविधा की परवाह न करते हुए वह पंजाब, कश्मीर व राजस्थान के सीमांत क्षेत्रों में गए। 
वीर जवानों, सीमा के प्रहरियों से मिले तथा उनकी वीरता की कहानियां लाखों पाठकों तक पहुंचाई। सैनिकों के लिए काफी मात्रा में सामान एकत्रित कर सीमाओं पर पहुंचाया। पाकिस्तान से युद्ध तो जल्दी ही समाप्त हो गया, परंतु लाला जी का युद्ध अभी भी जारी था।

नेहरू की भांति लाला जी भी भारत को विश्व का एक महान, आधुनिक, साधन सम्पन्न, विकसित तथा गौरवशाली देश बनाना चाहते थे, परंतु नेहरू जहां अपनी जीवनशैली में पाश्चात्य जीवन पद्धति से प्रभावित थे, वहां लाला जी विशुद्ध प्राचीन भारतीय जीवनशैली से।  लाला जी को कई बार विदेश जाने का अवसर मिला। 1958 में एक प्रतिनिधिमंडल के साथ वह स्टाकहोम गए। पूर्व संसद सदस्य व ‘नवां जमाना’ के मुख्य संपादक स. जगजीत सिंह आनंद भी उनके साथ थे। स. आनंद के अनुसार, अपनी अलग जीवनशैली के कारण वह अकेले एक कमरे में ठहरे तथा 2300 प्रतिनिधियों में अकेले विशुद्ध शाकाहारी थे, जिनके लिए विशेष रूप से शाकाहारी भोजन की व्यवस्था की गई।         

वह वियतनाम, इंगलैंड, जर्मनी, डेनमार्क आदि भी गए। वह जहां भी गए, उस देश की सामाजिक, राजनीतिक व आॢथक स्थिति को समझने की कोशिश की। वहां की सभ्यता और संस्कृति की विशेषताएं जानीं तथा पुन: स्वदेश लौट कर अपने समाचारपत्रों के माध्यम से लाखों पाठकों के ज्ञान में वृद्धि की।  पाठक उनकी इन ज्ञान परक व संस्मरणात्मक लेख मालाओं को बड़ी रुचि से पढ़ते थे। लाला जी जिस देश में भी गए, वहां उन्होंने अपनी भारतीय पहचान बनाए रखी। चाहे वह रहन-सहन था, वेश भूषा थी या जीवन शैली। वे भारतीयता के दूत व भारतीय संस्कृति के वाहक बन कर ही विदेशों में गए।         

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