Papmochini Ekadashi: आज इस शुभ मुहूर्त में पढ़ें ये कथा, हर पाप से मिलेगी मुक्ति

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Apr, 2024 06:48 AM

papmochini ekadashi

पापमोचिनी एकादशी का व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। हिंदू संवत 2079 का ये आखिरी एकादशी व्रत है। चैत्र महीने में आने के कारण इस व्रत की महिमा और भी बढ़ गई है। ये एकादशी बहुत ही खास मानी जाती है।

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Papmochini Ekadashi 2024: पापमोचिनी एकादशी का व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। चैत्र महीने में आने के कारण इस व्रत की महिमा और भी बढ़ गई है। ये एकादशी बहुत ही खास मानी जाती है। आज के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन में हुए जाने-अनजाने पाप कट जाते हैं और अंत समय में व्यक्ति को वैकुंठ का वास मिलता है। एकादशी का व्रत सभी तरह के कार्यों को करने के लिए उत्तम माना जाता है। इस व्रत को रखने से मानसिक शांति मिलती है और हर तरह की मनचाही इच्छा पूरी हो जाती है लेकिन एकादशी की कथा सुनें बिना ये व्रत पूर्ण नहीं होता। अगर पूजा के बाद इस कथा को न सुना जाए तो व्रत का फल नहीं मिलता। तो आइए जानते हैं, आज के दिन कौन से शुभ मुहूर्त में व्रत कथा पढ़नी चाहिए-

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Papmochani Ekadashi  Muhurat पापमोचनी एकादशी मुहूर्त: उदया तिथि के अनुसार आज पापमोचनी एकादशी का व्रत 5 अप्रैल शुक्रवार को रखा जाएगा। पापमोचनी एकादशी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 6 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 49 मिनट तक है। यदि आप इस मुहूर्त में पूजा न कर पाएं तो अभिजित मुहूर्त में भी पूजा कर सकते हैं। इस दिन अभिजीत मुहूर्त रहेगा सुबह 11 बजकर 59 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक। पापमोचनी एकादशी व्रत का पारण समय है 06 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 06 मिनट से सुबह 08 बजकर 37 मिनट तक।

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Papmochini Ekadashi vrat Katha पापमोचनी एकादशी व्रत कथा: कहते हैं पापमोचनी एकादशी की कथा स्वयं ब्रह्मा जी ने नारद जी को सुनाई थी। कथाओं के अनुसार एक वन में देवराज इन्द्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित विचरण कर रहे थे। उसी वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी शिव जी की तपस्या में लीन थे। तभी एक मंजुघोषा नाम की अप्सरा की नजर मेधावी पर पड़ी और वह मेधावी पर मोहित हो गई। उसे पाने के लिए अप्सरा ने बहुत से प्रयत्न किए और कामदेव ने भी उस अप्सरा की बहुत सहायता की।

मेधावी उस अप्सरा के नृत्य को देखकर मोहित हो गए और अपना नियंत्रण खो बैठे। मेधावी मंजुघोषा के साथ रति क्रीड़ा में 57 साल तक लीन रहें। जब अप्सरा ने मेधावी से वापिस जाने की अनुमति मांगी, तब मेधावी को अपनी भूल का अहसास हुआ कि वो शिव भक्ति से विमुख हो गए। तब मेधावी ने गुस्से में आकर अप्सरा को पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। अप्सरा को अपनी गलती का अहसास हुआ और वो अपनी गलती की क्षमा मांगने लगी। अप्सरा ने  मेधावी से इस पाप का प्रायश्चित करने का उपाय पूछा, तब उन्होंने उसे पापमोचनी एकादशी व्रत रखने को कहा। क्रीड़ा में रहने के कारण मेधावी भी तेजहीन हो गए थे और उन्होंने भी इस एकादशी का व्रत किया। जिससे दोनों को अपने पापों से मुक्ति मिल गई।

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