‘बस्तर गर्ल’ की अदाकारी से याद आईं Smita Patil

Edited By Diksha Raghuwanshi,Updated: 01 Mar, 2024 10:48 AM

smita patil remembered with her performance in bastar girl

Indira Tiwari ने बॉलीवुड में ऊंचा किया एनएसडी का परचम

मुंबई। फिल्म ‘बस्तर द नक्सल स्टोरी’ की रिलीज जैसे जैसे नजदीक आती जा रही है, फिल्म की लीड हीरोइन इंदिरा तिवारी की तरफ हिंदी सिनेमा की निगाहें फिर घूमने लगी हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की इस स्नातक ने हिंदी सिनेमा में ‘सीरियस मेन’ और ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ जैसी फिल्मों से अपनी एक अलग जगह बनाई है और फिल्म ‘बस्तर द नक्सल स्टोरी’ के दूसरे टीजर में जिस तरह की संवाद अदायगी उन्होंने बिल्कुल धूल धूसरित अवतार में की है, उसने लोगों को अपने जमाने की दमदार अदाकारा स्मिता पाटिल की याद दिला दी है।

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भोपाल के भारत भवन में बचपन से ही कलात्मक प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती रहीं इंदिरा तिवारी को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने ‘बालश्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया था। अभिनय उनकी रग रग में बसा है। एनएसडी से निकलते ही उन्हें पहली फिल्म ‘नजरबंद’ मिली और इसका प्रीमियर जब बुसान फिल्म फेस्टिवल में हुआ तो लोगों ने उनकी अदाकारी का तालियां बजाकर सम्मान किया। इसके बाद वह एक टेलीविजन सीरियल का ऑफर मिलने पर मुंबई आईं लेकिन यहां उनका मुकेश छाबड़ा और श्रुति महाजन जैसे कास्टिंग डायरेक्टर्स के यहां जो ऑडिशन हुआ, उसने इंदिरा की तकदीर बदल दी। इंदिरा बताती हैं, ‘मुकेश छाबड़ा के यहां हुए ऑडिशन के चलते मुझे निर्देशक सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘सीरियस मेन’ मिली थी और श्रुति महाजन के यहां हुए ऑडिशन के चलते ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’।’

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अपनी इन तीनों फिल्मों को इंदिरा अपनी फिल्मी पारी की टेक्स्ट बुक मानती हैं। वह बताती हैं, ‘निर्देशक सुमन मुखोपाध्याय के साथ मैंने पहली फिल्म ‘नजरबंद’ की थी। रंगमंच के अभिनय को कैमरे के सामने प्रकट करने के तरीके मैंने इसी फिल्म में सीखे। रंगमंच में हमें दर्शकों को सीधे अपने भाव दिखाने होते हैं, लेकिन सिनेमा का कैमरा हमारे भावों को एक तय कोण और एक तय रोशनी में परखता है। ये अनुभव मुझे बहुत ही रोचक और उत्साहवर्धक लगा था।’

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इंदिरा की पहली रिलीज फिल्म है ‘सीरियस मेन’ जो नेटफ्लिक्स पर आई थी। इसके निर्देशक सुधीर मिश्रा ने भी इंदिरा को गढ़ने में काफी मदद की। इंदिरा बताती हैं, ‘इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने कैमरे से संवाद की अहमियत समझी। और, इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान मेरा नाम संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के लिए फाइनल हुआ। सुधीर मिश्रा बहुत ही अनुभवी निर्देशक हैं। वह कलाकारों की मनोदशा समझकर अपने किरदारों को परदे पर गढ़ते हैं। उनका इंसानी फितरत को समझने का जो जीवन अनुभव है, वह उनके सिनेमा में बार बार दिखता है।’

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और, संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ ने तो इंदिरा के करियर की चाल ही बदल दी। इस फिल्म के बाद इंदिरा को खूब सारे प्रस्ताव आए। लेकिन, इंदिरा ने इनमें से वही फिल्में चुनीं जिनमें या तो वह प्रमुख भूमिका निभा रही हैं या फिर कहानी के विस्तार में उनका किरदार खास मायने रखता है। भंसाली के बारे में चर्चा चलने पर वह बताती हैं, ‘शूटिंग के दौरान पहले ही दिन जब संजय सर ने मेरे अभिनय की सबके सामने तारीफ की, तो वह पल मेरे लिए मेरा अब तक का सबसे बड़ा इनाम बन गया। संजय सर ने ने मुझे सिखाया कि हर कलाकार की अपनी एक खूबी होती है और उसे इसे बचाकर ही रखना चाहिए। दूसरों जैसा बनने की कोशिश में कलाकार अपने जैसा भी नहीं रहता। मैंने उनकी ये बात गांठ बांध ली और हमेशा लीक से हटकर ही काम करने की कोशिश अब तक की है।’

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अपनी अगली फिल्म ‘बस्तर द नक्सल स्टोरी’ के बारे में इंदिरा ज्यादा बात नहीं करती हैं। वह कहती हैं, ‘इस फिल्म के बारे में बात मैं तब करूंगी जब आप पहले ये फिल्म देख लेंगे। तब जो मैं अपनी अभिनय प्रक्रिया के बारे में कहना चाहूंगी, उसका आशय बेहतर तरीके से पाठकों को समझ आएगा।’

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