रेप से गर्भवती हुई 11 साल की बच्ची को देना होगा बच्चे को जन्म, कोर्ट ने अबॉर्शन की नहीं दी इजाजत

Edited By Yaspal,Updated: 21 Jan, 2024 05:25 PM

11 year old girl will have to give birth to the child

राजस्थान हाईकोर्ट ने 11 वर्षीय बलात्कार पीड़िता की 31 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि पूर्ण विकसित भ्रूण को भी जीवन का अधिकार है और वह बिना किसी परेशानी के स्वस्थ जीवन जी सकता है। अदालत ने कहा कि इस अवस्था...

नेशनल डेस्कः राजस्थान हाईकोर्ट ने 11 वर्षीय बलात्कार पीड़िता की 31 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि पूर्ण विकसित भ्रूण को भी जीवन का अधिकार है और वह बिना किसी परेशानी के स्वस्थ जीवन जी सकता है। अदालत ने कहा कि इस अवस्था में गर्भावस्था को समाप्त करने के किसी भी प्रयास से समय से पहले प्रसव होने की संभावना है और यह अजन्मे बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकता है। पीड़िता के साथ उसके पिता ने कथित तौर पर बलात्कार किया था और उसने अपने मामा के माध्यम से याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि लड़की ऐसे बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती क्योंकि यह उस पर हुए अत्याचारों की लगातार याद दिलाता रहेगा जो उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होगा।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने बुधवार को दिये आदेश में कहा कि अदालत आने में पीडिता की देरी ने गर्भावस्था को समाप्त करने के पहलू को और चिंताजनक कर दिया है। रिकॉर्ड पर ऐसी कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है जिसके आधार पर यह अदालत मेडिकल बोर्ड द्वारा व्यक्त की गई राय से अलय राय व्यक्त कर सके। अदालत के आदेश में कहा गया कि मेडिकल बोर्ड की राय है कि इतने उन्नत चरण में गर्भपात से पीड़ित के जीवन को खतरा हो सकता है।

अदालत ने कहा कि इस उन्नत चरण में गर्भावस्था को समाप्त करने के किसी भी प्रयास से समय से पहले प्रसव होने की संभावना है और यह अजन्मे बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकता है। अदालत ने कहा कि पूरी तरह से विकसित भ्रूण को भी भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इस दुनिया में प्रवेश करने और बिना किसी परेशानी के स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार है।

पिता के खिलाफ दर्ज हुआ केस
पीड़िता के वकील फतेह चंद सैनी ने कहा कि उसके मामा ने बच्ची के पिता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और बच्चों का यौन आपराध से संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी। वकील ने कहा कि पीड़िता का पिता शराबी है जबकि उसकी मां मानसिक रूप से विक्षिप्त है।

याचिका के अनुसार, लड़की के पिता ने इस महीने की शुरुआत में बेटी को उसके मामा के घर छोड़ दिया था। इस संबंध में जयपुर ग्रामीण के शाहपुरा थाने में मामला दर्ज किया गया है। सैनी ने बताया कि लड़की की मेडिकल जांच मेडिकल बोर्ड से कराई गई जिसकी रिपोर्ट 17 जनवरी को अदालत में पेश की गई। मेडिकल बोर्ड ने कहा कि लड़की की उम्र, वजन (34.2 किलोग्राम) और उसके ‘लिवर फंक्शन टेस्ट' की खराब रिपोर्ट को देखते हुए वह अपनी गर्भावस्था के संबंध में उच्च जोखिम की स्थिति में है।

अदालत ने वर्ष 2023 में सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे 28 सप्ताह से गर्भस्थ महिला से जुड़े मामले के साथ-साथ पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष पेश किय गये दो अन्य मामलों का भी हवाला दिया, जिनमें अदालत ने नाबालिग बलात्कार पीड़िताओं की गर्भावस्था को समाप्त करने की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस अदालत के पास कोई एक अलग दृष्टिकोण अपनाने के लिए वैध आधार नहीं है। मामले पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि लड़की वयस्क होने तक बालिका गृह में रह सकती है और राज्य सरकार, पुलिस और स्वास्थ्य कर्मचारियों को लड़की की देखभाल करने का निर्देश भी जारी किया।

अदालत ने महिला चिकित्सालय की अधीक्षक को सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करने, फोरेंसिक लैब द्वारा डीएनए परीक्षण के लिए भ्रूण के ऊतकों, नाल और रक्त के नमूने को सुरक्षित रखने और आवश्यकता पड़ने पर मामले के जांच अधिकारी को सौंपने का निर्देश दिया। जन्म के बाद बच्चे को बाल कल्याण समिति को सौंपा जा सकता है जो कानून के अनुसार उसे गोद ले सकती है। अदालत ने राजस्थान राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (आरएसएलएसए) और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए), जयपुर को राजस्थान पीड़ित मुआवजा योजना, 2011 के प्रावधान के तहत पीड़ित को मुआवजा प्रदान करने का भी निर्देश दिया।

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