आजादी के 77 साल बाद पहली बार मुस्लिम मुक्त भारत सरकार, क्या ये कोई अहम फैसला है या फिर कोई इत्तेफाक

Edited By Mahima,Updated: 11 Jun, 2024 12:29 PM

after 77 years of independence first time a muslim free indian government

लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद से अब नई सरकार का गठन हो चुका है। मोदी की नई 3.0 सरकार अब एक बार फिर से देश के लिए काम करने को तैयार हो चुकी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि भारतीय सरकार में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं...

नेशनल डेस्क: लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद से अब नई सरकार का गठन हो चुका है। मोदी की नई 3.0 सरकार अब एक बार फिर से देश के लिए काम करने को तैयार हो चुकी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि भारतीय सरकार में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है। यह ऐतिहासिक घटना 2024 के केंद्रीय मंत्रिमंडल के पुर्नगठन के बाद हुई है। भारतीय राजनीति में यह बदलाव महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि आजादी के बाद से अब तक हर सरकार में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व होते आए है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी इस नई सरकार में मुस्लिम मंत्री की अनुपस्थिति ने कई राजनीतिक विश्लेषकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। वे इसे एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के रूप में देख रहे हैं और इसके संभावित सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों पर चर्चा कर रहे हैं। इस बदलाव के चलते विपक्षी दलों ने भी अपनी प्रतिक्रिया को सब के सामने रखा है। कई नेताओं ने इस निर्णय को साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए चुनौतीपूर्ण बताया है। वहीं, सत्तारूढ़ दल का कहना है कि मंत्रिमंडल का गठन योग्यता और आवश्यकताओं के आधार पर किया गया है और यह किसी भी विशेष समुदाय के प्रति पक्षपात को नहीं दर्शाता है।

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बता दें कि इस बार 71 मंत्रियों ने शपथ ली है जिसमें एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है। हालांकि इस बार बीजेपी ने एक मुस्लिम व्यक्ति को टिकट दिया था जो कि चुनाव को हार गए। मुख्तार अब्बास नकवी,मोदी कैबिनेट के अब तक के आखिरी मंत्री है। 2024 की बात करें तो उस वक्त मोदी सरकार में 3 मुस्लिम कैबिनेट मंत्री थे, जिनका नाम, नजमा हेपतुल्ला, एम जे अकबर और मुख्तार अब्बास नकवी। नकवी 2022 तक मोदी कैबिनेट का हिस्सा रहें हैं। यहीं अगर बात करें बाकी धर्म के लोगों को तो इस बार कैबिनेट में सिख, क्रिश्चियन और बौद्ध मंत्रियों को शामिल किया गया है।

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इस स्थिति को लेकर ना सिर्फ देश के विपक्ष दलों को बल्कि मुस्लिम समुदाय ने भी अपनी प्रतिक्रियाओं को जाहिर किया है। कुछ लोगों का मानना है कि यह निर्णय भारतीय समाज के बदलते रुझानों का प्रतीक है, जबकि अन्य इसे सामुदायिक प्रतिनिधित्व की कमी के रूप में देख रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बदलाव भारतीय राजनीति और समाज पर क्या प्रभाव डालता है, और भविष्य में सरकार किस प्रकार इन मुद्दों को संबोधित करती है।

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