राजनीति की शुरुआत में ही जयललिता ने छोड़ी अपनी छाप, इंदिरा गांधी भी हो गई थी प्रभावित

Edited By ,Updated: 06 Dec, 2016 03:11 PM

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एमजीआर की पार्टी में उनकी ताकत बढ़ने की गति से वरिष्ठ सदस्य चिंतित थे, और उन्हें आशंका थी कि पार्टी की यह नई सदस्या को जल्दी ही कैबिनेट में जगह दे दी जायेगी, लेकिन एमजीआर कुछ और सोच रहे थे।

चेन्नई: एमजीआर की पार्टी में उनकी ताकत बढ़ने की गति से वरिष्ठ सदस्य चिंतित थे, और उन्हें आशंका थी कि पार्टी की यह नई सदस्या को जल्दी ही कैबिनेट में जगह दे दी जायेगी, लेकिन एमजीआर कुछ और सोच रहे थे। उन्हें दिल्ली में किसी तेजतर्रार व्यक्ति की जरूरत थी जो उनके और केंद्र के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सके। जयललिता शानदार अंग्रेजी बोलती थीं। वे हिंदी भी धाराप्रवाह बोल लेती थीं।

एमजीआर ने 24 मार्च, 1984 को घोषणा की कि जयललिता को राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया है। राज्यसभा में उन्हें जो सीट दी गयी, उसकी संख्या 185 थी। यह वही सीट थी जिस पर 1963 में सांसद के रूप में सीएन अन्नादुरै बैठते थे। जयललिता जहां भी होती थीं, आकर्षण का केंद्र बन जाती थीं। राज्यसभा में उनके पहले भाषण को उच्चारण की शुद्धता और शिष्ट गद्य के सराहा गया था। राज्यसभा में उनके साथ सांसद रहे खुशवंत सिंह ने प्रशंसा में कहा था कि यह बुद्दिमत्ता और सौंदर्य का संगम है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी खासा प्रभावित हुई थीं।

-ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (ए.आई.ए.डी.एम.के .) के संस्थापक एम.जी. रामचंद्रन ने उन्हें प्रचार सचिव नियुक्त किया और चार वर्ष बाद सन 1984 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया।
-कुछ ही समय में वह पार्टी की एक सक्रिय सदस्य बन गईं। उन्हें एम.जी.आर. का राजनीतिक साथी कहा जाने लगा।
-जब एम.जी. रामचंद्रन मुख्यमंत्री बने तो जयललिता को पार्टी के महासचिव पद की जिम्मेदारी सौंपी गई।
-एम.जी.आर. की मृत्यु के बाद कुछ सदस्यों ने जानकी रामचंद्रन को ए.आई.ए.डी.एम.के. की उत्तराधिकारी बनाना चाहा और इस कारण से ए.आई.ए.डी.एम.के. दो हिस्सों में बंट गया।
-एक गुट जयललिता को समर्थन दे रहा था और दूसरा गुट जानकी रामचंद्रन को। -1988 में पार्टी को भारतीय संविधान की धारा 356 के तहत खत्म कर दिया गया।
-1989 में ए.आई.ए.डी.एम.के. फिर से संगठित हो गई और जयललिता को पार्टी का प्रमुख बनाया गया।
-राजनीतिक जीवन के दौरान जयललिता पर सरकारी पूंजी के गबन, गैर कानूनी ढंग से भूमि अधिग्रहण और आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप लगे।
-‘आय से अधिक संपत्ति’ के एक मामले में 27 सितम्बर 2014 को जया को सजा भी हुई और मुख्यमंत्री पद छोडऩा पड़ा। बाद में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 11 मई 2015 को उन्हें बरी कर दिया जिसके बाद वह पुन: तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं।
-2016 में हुए चुनाव में फिर से जयललिता की पार्टी ने जोरदार जीत हासिल की और वह लगातार दूसरी बार तमिलनाडु की सी.एम. बनीं।
-राजनीति में पूर्व सी.एम. करुणानिधि को उनका प्रतिद्वंद्वी माना जाता रहा है। पिछले दो दशक से वहां की राजनीति इन दोनों के बीच ही घूम रही है।

 

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