राष्ट्रपति बोले- अपनी बात कहने के लिए अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें जज

Edited By Yaspal,Updated: 27 Nov, 2021 08:40 PM

indiscreet remarks give room to dubious interpretations president tells judges

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को यहां कहा कि अविवेकपूर्ण टिप्पणी भले ही अच्छे इरादे से की गई हो, वह न्यायपालिका के महत्व को कम करने वाली संदिग्ध व्याख्याओं को जगह देती है। उन्होंने न्यायाधीशों से कहा कि वे अदालत कक्षों में अपनी बात कहने में...

नई दिल्लीः राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को यहां कहा कि अविवेकपूर्ण टिप्पणी भले ही अच्छे इरादे से की गई हो, वह न्यायपालिका के महत्व को कम करने वाली संदिग्ध व्याख्याओं को जगह देती है। उन्होंने न्यायाधीशों से कहा कि वे अदालत कक्षों में अपनी बात कहने में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित संविधान दिवस कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कोविंद ने कहा कि न्याय वह महत्वपूर्ण आधार है, जिसके चारों ओर एक लोकतंत्र घूमता है, तथा यह तब और मजबूत होता है जब राज्य की तीन संस्थाएं- न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका- एक सामंजस्यपूर्ण ढंग से अस्तित्व में होती हैं।

राष्ट्रपति ने कहा, "संविधान में, प्रत्येक संस्था का अपना परिभाषित स्थान होता है जिसके भीतर वह कार्य करती है।'' उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि न्यायपालिका ने अपने लिए उच्चतम मानक स्थापित किया है। राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी एक बयान में कोविंद के हवाले से कहा गया, ‘‘इसलिए, न्यायाधीशों का यह भी दायित्व है कि वे अदालत कक्षों में अपने बयानों में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें। अविवेकपूर्ण टिप्पणी, भले ही अच्छे इरादे से की गई हो, न्यायपालिका के महत्व को कम करने वाली संदिग्ध व्याख्याओं को जगह देती है।''

कोविंद ने कहा कि लोग न्यायपालिका को सबसे भरोसेमंद संस्था मानते हैं। राष्ट्रपति ने सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों के खिलाफ की जाने वाली टिप्पणियों पर भी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, ‘‘...सोशल मीडिया मंचों पर न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों के कुछ मामले सामने आए हैं। इन मंचों ने सूचनाओं को लोकतांत्रिक बनाने के लिए अद्भुत काम किया है, फिर भी उनका एक स्याह पक्ष भी है। इनके द्वारा दी गई नाम उजागर न करने की सुविधा का कुछ शरारती तत्व फायदा उठाते हैं। यह पथ से एक भटकाव है, और मुझे उम्मीद है कि यह अल्पकालिक होगा।''

राष्ट्रपति ने कहा कि इस तरह के घटनाक्रम के पीछे क्या वजह हो सकती है। उन्होंने कहा, "क्या हम एक स्वस्थ समाज की खातिर सामूहिक रूप से इसके पीछे के कारणों की जांच कर सकते हैं।" न्याय पाने में खर्च होने वाले धन के मुद्दे पर उन्होंने कहा, ‘‘हमारे जैसे विकासशील देश में, नागरिकों का एक बहुत छोटा वर्ग न्याय के लिये अदालत का दरवाजा खटखटाने का खर्च वहन कर सकता है।'' उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि सभी लोगों की कानूनी सहायता और सलाहकार सेवाओं तक पहुंच बढ़े। कोविंद ने कहा कि यह एक आंदोलन या एक बेहतर संस्थागत तंत्र का रूप ले सकता है।

राष्ट्रपति ने कहा, "निचली अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक, किसी सामान्य नागरिक के लिए शिकायत निवारण प्राप्त करना कठिन होता जा रहा है।" कोविंद ने लंबे समय से लंबित मामलों की ओर इशारा करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि सभी हितधारक राष्ट्रीय हित को सबसे ऊपर रखकर कोई रास्ता निकालें। उन्होंने कहा कि वह जानते हैं कि इसके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है और इस मुद्दे के समाधान के लिए उचित सुझाव दिए गए हैं।

राष्ट्रपति ने कहा, "फिर भी, बहस जारी है और लंबित मामलों की संख्या भी बढ़ती रहती है। अंततः, शिकायत करने वाले नागरिकों और संगठनों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। न्याय की गति को तेज करने के लिए क्या किया जा सकता है? स्पष्ट उत्तर सुधार है।'' उन्होंने कहा, "अब तक के सुझावों और प्रयासों से पता चलता है कि सुधारों के बारे में आम सहमति विकसित करने के वास्ते आवश्यक कदम व्यापक होने चाहिए। लंबित मामलों के मुद्दे का आर्थिक वृद्धि और विकास पर भी प्रभाव पड़ता है। अब समय आ गया है कि सभी हितधारक राष्ट्रीय हित को सबसे ऊपर रखकर रास्ता निकालें। इस प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी बड़ी सहायक हो सकती है।"

कोविंद ने कहा कि महामारी की वजह से न्यायपालिका के क्षेत्र में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को अपनाने में तेजी आई है। राष्ट्रपति ने लंबित मामलों और न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में भी बात की और स्पष्ट किया कि उनका दृढ़ विचार है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। हालांकि, उन्होंने पूछा, "इसे थोड़ा भी कम किए बिना, क्या उच्च न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों का चयन करने का एक बेहतर तरीका खोजा जा सकता है?"

कोविंद ने कहा, "उदाहरण के लिए, एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा हो सकती है, जो निचले स्तर से उच्च स्तर तक सही प्रतिभा का चयन कर सकती है और इसे आगे बढ़ा सकती है।" उन्होंने कहा कि यह विचार नया नहीं है और बिना परीक्षण के आधी सदी से भी अधिक समय से है। राष्ट्रपति ने कहा, "मुझे यकीन है कि व्यवस्था में सुधार के लिए बेहतर सुझाव भी हो सकते हैं। आखिरकार, उद्देश्य न्याय प्रदायगी तंत्र को मजबूत करना होना चाहिए।"

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