शहीद की विधवा को लाभ देना संभव नहीं, शिंदे सरकार की दलील से बंबई HC हैरान; लगाई फटकार

Edited By rajesh kumar,Updated: 12 Apr, 2024 08:19 PM

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बंबई उच्च न्यायालय ने जम्मू कश्मीर में शहीद हुए सेना के एक मेजर की पत्नी को पूर्व सैनिकों के लिए महाराष्ट्र सरकार की नीति के तहत लाभ देने पर निर्णय लेने में विफल रहने को लेकर शुक्रवार को राज्य सरकार के प्रति अप्रसन्नता जतायी।

नेशनल डेस्क: बंबई उच्च न्यायालय ने जम्मू कश्मीर में शहीद हुए सेना के एक मेजर की पत्नी को पूर्व सैनिकों के लिए महाराष्ट्र सरकार की नीति के तहत लाभ देने पर निर्णय लेने में विफल रहने को लेकर शुक्रवार को राज्य सरकार के प्रति अप्रसन्नता जतायी। न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदोश पूनीवाला की एक खंडपीठ ने कहा कि वह अदालत द्वारा मुख्यमंत्री को मामले को "विशेष मामला" मानने का आदेश दिये जाने के बावजूद सरकार के रुख से "अप्रसन्न" और "आश्चर्यचकित" है।

2020 को शहीद हुए थे मेजर सूद 
अदालत दिवंगत मेजर अनुज सूद की पत्नी आकृति सूद द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 2019 और 2020 के दो सरकारी प्रस्तावों के तहत पूर्व सैनिकों के लिए (मौद्रिक) लाभ का अनुरोध किया गया था। मेजर सूद 2 मई, 2020 को जम्मू कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों से नागरिक बंधकों को बचाते समय शहीद हो गए थे और उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।

महाराष्ट्र में पैदा हुए लोग मौद्रिक लाभ और भत्ते के पात्र
राज्य सरकार ने दलील दी है कि केवल महाराष्ट्र में पैदा हुए या 15 वर्षों तक लगातार राज्य में रहने वाले लोग ही मौद्रिक लाभ और भत्ते के पात्र हैं। शुक्रवार को, सरकारी वकील पी पी काकड़े ने पीठ को सूचित किया कि सूद को लाभ नहीं दिया जा सकता क्योंकि वह राज्य के "अधिवासी" नहीं थे। काकडे ने कहा, "हमें एक उचित नीतिगत निर्णय लेने की जरूरत है जिसके लिए हमें मंत्रिमंडल से संपर्क करने की जरूरत है। मंत्रिमंडल बैठक अभी नहीं हो रही।" हालांकि, पीठ ने इस पर अप्रसन्नता जताते हुए कहा कि हर बार निर्णय न लेने के लिए कोई न कोई कारण दिया जाता है।

हम खुश नहीं हैं- हाईकोर्ट 
अदालत ने कहा, "आप (सरकार) ऐसे मामले से निपट रहे हैं...किसी ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया है और आप ऐसा कर रहे हैं। हम खुश नहीं हैं।" पीठ ने कहा कि उसने राज्य के सर्वोच्च प्राधिकारी (मुख्यमंत्री) को मामले को एक विशेष मामले के रूप में विचार करने और उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने कहा, ‘‘हमने मुख्यमंत्री से निर्णय लेने का अनुरोध किया था। उन्हें निर्णय लेना चाहिए था। यदि वह निर्णय नहीं ले सकते या निर्णय लेना उनके लिए बहुत अनुचित था, तो हमें बताएं, हम इससे निपटेंगे।" उन्होंने कहा, "अब आप (जिम्मेदारी से) भाग नहीं सकते। अब आप कह रहे हैं कि मंत्रिमंडल को देखना होगा। मंत्रिमंडल की बैठक नहीं हो रही है। यह ठीक नहीं है। हमें सरकार से बहुत बेहतर की उम्मीद थी।"

17 अप्रैल तक दाखिल करें हल्फनामा
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सरकार ने मौखिक रूप से कहा है कि सूद को विशेषाधिकार नीति के तहत लाभ नहीं दिया जा सकता। पीठ ने कहा, "हम इस रुख से काफी हैरान हैं। हमने राज्य के सर्वोच्च प्राधिकारी से निर्णय लेने के लिए कहा था। यदि मुख्यमंत्री निर्णय लेने में असमर्थ हैं तो राज्य सरकार एक हलफनामा दाखिल करे।" इसने सरकार को 17 अप्रैल तक एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि वह उसके अनुसार मुद्दे से निपटेगी। याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि परिवार पिछले 15 वर्षों से महाराष्ट्र में रह रहा है, जैसा कि उसके दिवंगत पति की इच्छा थी, जो हमेशा पुणे में रहना चाहते थे। 

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