गोरों को भगाकर देश काले अंग्रेजों का हो चुका है गुलाम

Edited By ,Updated: 27 Feb, 2015 04:07 AM

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उम्र 89 वर्ष वही जोश वही जज्बा जो एक 22 वर्षीय नौजवान में होता है, मिनी सैक्रेटरीएट में लहराते तिरंगे को देखकर जहां चेहरे पर अलग-सा तेज वहीं सरकारी सिस्टम के प्रति गुस्से ...

लुधियाना (पंकज): उम्र 89 वर्ष वही जोश वही जज्बा जो एक 22 वर्षीय नौजवान में होता है, मिनी सैक्रेटरीएट में लहराते तिरंगे को देखकर जहां चेहरे पर अलग-सा तेज वहीं सरकारी सिस्टम के प्रति गुस्से के भाव और यह बात कहने में कोई संकोच नहीं कि अगर पता होता कि अंग्रेजों को भगाकर भ्रष्टाचार, अन्याय, चरमरा चुकी कानून व्यवस्था व सिर से पांव तक झूठ के लिबास में लिपटी आजादी मिलनी थी तो अंग्रेजों के जुल्मों को सहने की क्या जरूरत थी।
 
यह जज्बात साढ़े 5 वर्षों तक आजादी की लड़ाई दौरान अलग-अलग जेलों में बिताने व  अंग्रेजी हुकुमत के जुल्मों को अपने शरीर पर सहन करने वाले बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी राय सिंह पतंगा के थे, जो कि वीरवार को एसो. के कार्य हेतु मिनी सचिवालय में आए थे, डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर के बाहर थोड़े ही समय में अलग-अलग संगठनों द्वारा इंसाफ प्राप्ति को लेकर लगाए धरनों को देख इस बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी के चेहरे पर गहरे दुख के भाव आसानी से देखे जा सकते थे। 
 
राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी पारिवारिक संगठन के राष्ट्रीय व केन्द्र के होम विभाग द्वारा गठित फ्रीडम फाइटर एनीमैंट वैल्फेयर कमेटी के सदस्य राय सिंह पतंगा ने आजादी की लड़ाई में अपने योगदान संबंधी पंजाब केसरी से बातचीत करते हुए बताया कि 1940 में शुरू हुए सत्याग्रह आंदोलन के समय वह जवानी की उस दहलीज पर थे जहां हर नौजवान सुंदर स्वप्न संजोए होता है, गांव दुबुर्जी चंदा सिंह जिला स्यालकोट, पाकिस्तान में गुरबख्श सिंह के घर में जन्म लेने वाले सरदार पतंगा ने सत्याग्रह शुरू होते ही देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। 
 
अंग्रेजी हुकुमत ने इन्हें पकड़ कर लाहौर जेल में डाल दिया, आजाद हिन्द फौज के जनरल मोहन सिंह व जिला स्यालकोट के प्रधान ज्ञानी गरजा सिंह के नेतृत्व में इन्होंने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ लोहा लेना शुरू कर दिया। एक वर्ष की जेल उपरांत जब इन्हें रिहा किया गया तो इन्होंने मन के भाव कागज पर अंकित करने शुरू कर दिए व ब्रिटिश सरकार खिलाफ कविताएं लिखकर व गाकर अन्य लोगों को आजादी की लड़ाई हेतु प्रेरित करना शुरू कर दिया। 
 
इस दौरान अंग्रेजो भारत छोड़ो मूवमैंट में इनकी सक्रियता से परेशान गौरों ने पुन: इन्हें पकड़ कर सैंट्रल जेल स्यालकोट में डाल दिया और शारीरिक व मानसिक यातनाएं देनी शुरू कर दीं। बावजूद इसके हौसले बुलंद रहे, भारत मां की आजादी, लहराते तिरंगे को देखने का जुनून कम नहीं हुआ। साढ़े 5 वर्ष जेल में गुजारने की अपनी आपबीती सुनाते समय सरदार पतंगा के चहरे पर अलग-सी मनोदशा साफ दिखाई देती थी।
 
परन्तु उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि गौरों को भगाकर देश काले अंग्रेजों के हाथों गुलाम हो चुका है। समय-समय की सरकारें आम जनता की हितैषी होने की बजाय चंद अमीर परिवारों के हाथों की कठपुतली बन चुकी हैं। वह बताते हैं कि अंग्रेजी हुकुमत में एक पैसे का भी भ्रष्टाचार नहीं था, अदालतों में इंसाफ मिलता था, बहू-बेटियां सुरक्षित थीं। 
 
सियासतदान ईमानदार व राष्ट्र भक्त थे, अधिकारी ड्यूटी के प्रति निष्ठावान थे, परन्तु अगर उन्हें पता होता कि आजादी के बाद का भारत ऐसा होगा तो शायद उनके जैसे लाखों नौजवान कभी भी जंगे आजादी में न उतरते। अपने सीने पर हर वक्त तिरंगा लगाए घूमने वाले 89 वर्ष के इस स्वतंत्रता सेनानी के मन में आज भी यह टीस है कि उनके स्वप्नों का भारत पता नहीं कब बन पाएगा।

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