Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Sep, 2017 06:33 PM
फ्रांस के विशेषज्ञों के साथ मिलकर ऐसी तकनीक विकसित कर ली है, जिससे ओस या वातावरण की नमी का संचय कर उसे पीने के पानी के रूप में प्रयोग किया जा सकेगा
नई दिल्ली: अक्सर हम, सुबह उठकर घास और पेड़ों की पत्तियों पर आने वाली ओस की बूंदों खूब खेले होंगे लेकिन इसकी कल्पना नहीं की होगी कि ये ओस भी कभी हमारे लिए पानी का जरिया बन सकती हैं। अब ये कल्पना हकीकत में तब्दील हो चुकी है और इसे अमलीय जामा पहनाया है हमारे भारतीय वैज्ञानिकों ने। उन्होंने फ्रांस के विशेषज्ञों के साथ मिलकर ऐसी तकनीक विकसित कर ली है, जिससे ओस या वातावरण की नमी का संचय कर उसे पीने के पानी के रूप में प्रयोग किया जा सकेगा। भारत का पहला पेयजल उत्पादन संयंत्र कच्छ के कोठार गांव में लगाया गया है। इसकी क्षमता रोजाना औसतन 500 लीटर पानी बनाने की है।
इस तकनीक से ओस संचय करने के लिए विशेष तौर से डिजाइन किए गए कंडेनसर पैनलों का प्रयोग किया जाता है, जो कच्चे पानी को एकत्र कर उसे फिल्टर करने की प्रक्रिया में ले जाते हैं। जब साफ आसमान और आद्र्र तटीय हवाएं चलती हैं तब पैनलों की सतह ठंडी होती है और ओस की बूंदों का ताप भी ठंडा हो जाता है। गुरुत्वाकर्षण के कारण वे बूंदें फिसल कर केंद्र के चैनल में एकत्र हो जाती हैं।
यह प्रक्रिया रात से सुबह तक कई घंटों चलती है। फिर एकत्र हुए पानी को कई स्तरीय फिल्डर और प्यूरीफाई की प्रक्रिया से गुजारा जाता है। इसके बाद मिलने वाला पानी पीने लायक होता है। यह पानी डब्ल्यूएचओ के मानकों पर खरा उतर चुका है।
पियरे और मैरी क्यूरी यूनिवर्सिटी के डैनियल बेंसेंस के मुताबिक, यह प्लांट हर वर्ष करीब डेढ़ लाख लीटर साफ पानी तैयार कर सकता है। एक लीटर पानी में 50 पैसे की लागत आती है। हम अन्य देशों से भी इस तरह का प्लांट तैयार करने की बात कर रहे हैं।
धीरूभाई अंबानी इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन एंड कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी (डीएआइआइसीटी), गांधी नगर में भौतिकी के एसोसिएट प्रोफेसर और शोध दल के सदस्य अनिल के रॉय कहते हैं कि इन पैनलों का कार्यप्रणाली बिल्कुल पौधों की पत्तियों और घास से प्रेरित है, जिससे सरककर ओस की बूंदें नीचे गिरती हैं।
जिस मैदान में ये पैनल लगाए गए हैं वह एक सोलर प्लांट की तरह लगता है। इसमें पैनलों की 30 पंक्तियां हैं। सभी पैनल 18 मीटर लंबे और एक मीटर चौड़े हैं। रॉय कहते हैं, ओस की बूंदों को एकत्र करना आसान है लेकिन उसे साफ करके पीने योग्य बनाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है।