Edited By ,Updated: 09 Apr, 2017 04:22 PM
5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद अब भाजपा के सामने अगली चुनौती अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनवाने की है लेकिन लोकसभा और कई विधानसभाओं में प्रचंड बहुमत के बावजूद पार्टी के लिए राष्ट्रपति भवन में अपनी पसंद के उम्मीदवार को पहुंचाना आसान नहीं है।
नई दिल्ली: 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद अब भाजपा के सामने अगली चुनौती अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनवाने की है लेकिन लोकसभा और कई विधानसभाओं में प्रचंड बहुमत के बावजूद पार्टी के लिए राष्ट्रपति भवन में अपनी पसंद के उम्मीदवार को पहुंचाना आसान नहीं है। यही वजह है कि अमित शाह की अगुवाई में भाजपा इस काम के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। पार्टी के रणनीतिकारों को इस बात का अंदाजा है कि राष्ट्रपति चुनाव में एक-एक वोट कीमती होने जा रहा है। लिहाजा 2 महीने बाद होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के लोकसभा से इस्तीफे नहीं करवाए गए हैं। इसी तरह मनोहर पार्रिकर की राज्यसभा सदस्यता भी फिलहाल बरकरार है।
भाजपा की नजर 9 अप्रैल को 12 विधानसभा और 3 लोकसभा सीटों के उप-चुनाव पर भी है। राष्ट्रपति चुनाव की रेस में भाजपा की चिंता सिर्फ विपक्षी पार्टियों को लेकर नहीं है। पार्टी के लिए बगावती तेवर अपनाने वाली शिवसेना पर भरोसा करना कठिन है। राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के कुल 776 सांसदों के अलावा विधानसभाओं के 4120 विधायक वोट डालेंगे। यानी कुल 4896 लोग मिलकर नया राष्ट्रपति चुनेंगे। राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया के मुताबिक इन वोटों की कुल कीमत 10.98 लाख है। भाजपा को अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनवाने के लिए 5.49 लाख कीमत के बराबर वोटों की दरकार है।
5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद
भाजपा और सहयोगी पार्टियों के पास कुल 5.53 लाख कीमत के वोट हैं मगर इनमें से करीब 20 हजार कीमत के वोट राजग की सहयोगी पार्टियों के हैं।
यानी जीत की गारंटी के लिए भाजपा को अब भी 16 हजार कीमत के वोट चाहिएं। योगी आदित्यनाथ, केशव प्रसाद मौर्य और पाॢरकर के इस्तीफे रुकवाकर भाजपा ने 2100 वोटों की कमी पूरी कर ली है। 9 अप्रैल को जिन सीटों पर उपचुनाव हैं उनके वोटों की कुल कीमत करीब 4 हजार बैठती है। यही वजह है कि इन चुनावों पर पार्टी का खास जोर है।