CJI दीपक मिश्रा के रिटायमेंट से पहले राम मंदिर पर आ सकता है यह फैसला

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Jan, 2018 07:21 PM

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भारत के चीफ जस्टिस (CJI) दीपक मिश्रा 2 अक्टूबर, 2018 को रिटायर हो जाएंगे इसलिए इस बात की चर्चा जोर पकड़ रही है कि CJI अपने रिटायरमेंट से पहले अयोध्या में राम मंदिर के पर कोई फैसला कर लेना चाहेंगे। जो लोग जज लोया के केस में काफी रुचि दिखा रहे थे, वही...

नेशनल डेस्क: भारत के चीफ जस्टिस (CJI) दीपक मिश्रा 2 अक्टूबर, 2018 को रिटायर हो जाएंगे इसलिए इस बात की चर्चा जोर पकड़ रही है कि CJI अपने रिटायरमेंट से पहले अयोध्या में राम मंदिर के पर कोई फैसला कर लेना चाहेंगे। जो लोग जज लोया के केस में काफी रुचि दिखा रहे थे, वही तमाम वकील, एक्ट‍िविस्ट, राजनीतिज्ञ अब यह मानने लगे हैं कि CJI अपने जाते-जाते राम मंदिर के पक्ष में फैसला दे सकते हैं। राम मंदिर का मसला सुप्रीम कोर्ट के लिए भारी पड़ रहा है। इस मसले की सुनवाई अब CJI की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही है।

BJP को हर तरह से होगा फायदा!
CJI ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला दिया तो बीजेपी के लिए चुनावी समीकरण बेहतर हो सकता है। कारण यह है कि दिसंबर 2018 में तीन बड़े राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में हैं, जिसमें बीजेपी को अच्छा फायदा मिल सकता है। इन सभी राज्यों में बीजेपी सत्ता में है और वहां कांग्रेस व बीजेपी के बीच मुकाबला द्विपक्षीय होता है। तीनों राज्यों में बीजेपी सरकारों के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी का जबर्दस्त माहौल है। इसलिए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिना किसी ऐसे बड़े माहौल के नतीजे क्या हो सकते हैं।
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अन्य विकल्प का भी हे सकता है चुनाव
CJI दीपक मिश्रा के पास राम मंदिर के पक्ष में फैसला देने के अलावा दो और विकल्प हैं। जिसमें पहला यह है कि राम मंदिर के मसले को संवेदनशील बताते हुए इसे 2019 के लोकसभा चुनाव से आगे के लिए टाल दिया जाए। और दूसरा यह कि बाबरी ढांचे की जगह पर राम मंदिर बनाने की इजाजत से इंकार करते हुए वहां एक मंदिर और एक मस्जिद, दोनों बनाने का आदेश दिया जाए। लेकिन ऐसा हुआ तो भी इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है। राम मंदिर बनाने के खिलाफ आदेश आया या इसको आगे के लिए टाल दिया गया तो हिंदुओं के अंदर गुस्सा काफी बढ़ जाएगा और यह चुनाव में बीजेपी को फायदा ही दे सकता है।

जज लोया और राम मंदिर केस बना सिरदर्द
सुप्रीम कोर्ट के चार जजों के बीच का विवाद दिनों-दिन रहस्यमय होता जा रहा है. मतभेदों को दूर करने की तमाम कोशिशों के बावजूद सर्वोच्च न्यायपालिका की यह खाई दूर होती नहीं दिख रही। अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में चारो जजों ने एक सात पेज का लेटर सार्वजनिक किया था, लेकिन इस लेटर से भी उनकी मांग स्पष्ट नहीं हो रही थी। चर्चा के अनुसार जज लोया की मौत की जांच एक जूनियर जज को सौंपने से वे नाराज थे। लेकिन अब एक और बड़े मसले को लेकर हलचल मचनी शुरू हो गई हैं, वह है राम मंदिर का मुकदमा। बागी जजों ने महत्वपूर्ण केसों को जूनियर जजों को सौंपने पर सवाल उठाते हुए रोस्टर का मसला उठाया था. लेकिन उनका अगर यह कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के सभी जज बराबर हैं, तो भला किसी जूनियर जज को कोई मामला क्यों नहीं सौंपा जा सकता। इसलिए यह समझना होगा कि चारों जज असल में चाहते क्या थे।

सीजेआई की बेंच कर रही है सुनवाई
चर्चा के अनुसार वे यह चाहते थे कि जज लोया की मौत की जांच किसी और जस्ट‍िस को सौंपा जाए, जो कि हो ही चुका है। CJI ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए यह केस अपनी अध्यक्षता वाली बेंच को सौंप दिया. उनके ऊपर इसके लिए भी काफी दबाव था कि लोया केस चार कॉलेजियम जजों में से किसी एक के बेंच को सौंपा जाए, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। यही नहीं, उन्होंने इस बारे में बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल पीआईएल को भी अपने पास मंगा लिया। 

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