Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Oct, 2017 01:18 PM
चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने वीरवार को भले ही यह कहा हो कि वह सितम्बर 2018 तक एक साथ चुनाव कराने को तैयार हैं, लेकिन उनका बयान जमीन पर हकीकत का रूप लेता दिखाई नहीं पड़ रहा है।
नई दिल्ली: चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने वीरवार को भले ही यह कहा हो कि वह सितम्बर 2018 तक एक साथ चुनाव कराने को तैयार हैं, लेकिन उनका बयान जमीन पर हकीकत का रूप लेता दिखाई नहीं पड़ रहा है। अगर उनकी बात को पूरी तरह से कानूनीजामा पहना भी दिया जाता है, तो भी आयोग के बयान-सितम्बर 2018 तक-के अनुसार विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराना बिल्कुल भी संभव नहीं हो पाएगा। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसकी वजह जान लीजिए।
दिग्गजों ने किया समर्थन
-12 अगस्त 2012: बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण अडवाणी में लिखा था, च्मैंने इस बारे में पीएम मनमोहन सिंह व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से बात की। और दोनों ने ही विचार को लाभप्रद बताया।
-2015 :स्टैंडिंग कमिटि ने लॉ कमीशन के विचारों पर कहा, च्यह चुनाव पर आने वाले खर्च को बचाएगा। पॉलिसी पैरलाइसिस को रोकेगा, जो बार-बार चुनाव के दौरान कोड ऑफ कंडक्ट लागू होने के चलते होती है।
-7 सितम्बर 2016: मुद्दे पर समर्थन के बाद मोदी सरकार ने लोगों से वेबसाइट पर इस बाबत विचार मांगे।
यह भी सच है!
1952 में पहली बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे
1957 और 1962 व 1967 में भी चुनाव एक साथ आयोजित किए गए
1977 में जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद नौ राज्यों में कांग्रेस शासित नौ राज्यों की सरकारों को इस आधार पर भंग कर दिया गया कि उसने जनता का भरोसा खो दिया था।