किसी आरोप से बरी किया जाना नौकरी पाने के लिए काफी नहीं

Edited By ,Updated: 23 Sep, 2023 04:51 AM

being acquitted of any charge is not enough to get a job

देश के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का कहना है कि कानूनी व्यवसाय का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि इससे जुड़े लोग अपनी सत्यनिष्ठा बरकरार रखते हैं या नहीं।

देश के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का कहना है कि कानूनी व्यवसाय का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि इससे जुड़े लोग अपनी सत्यनिष्ठा बरकरार रखते हैं या नहीं। हाल ही में उन्होंने ‘कानूनी प्रणाली को मजबूत करने की दिशा में वकीलों और न्यायाधीशों के बीच सहयोग बढ़ाना’ विषय पर संभाजीनगर में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा : ‘‘सत्यनिष्ठा एक आंधी से नहीं मिटती। यह वकीलों और न्यायाधीशों द्वारा दी गई छोटी-छोटी रियायतों तथा अपनी ईमानदारी के साथ किए गए समझौतों से मिटती है। हमारा व्यवसाय फलता-फूलता रहेगा या स्वयं नष्ट हो जाएगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम अपनी ईमानदारी को बनाए रखते हैं या नहीं।’’ 

‘‘हम सभी अपने विवेक से सोचते हैं। आप पूरी दुनिया को मूर्ख बना सकते हैं लेकिन अपने विवेक को मूर्ख नहीं बना सकते। वकीलों को सम्मान तब मिलता है जब वे न्यायाधीशों का सम्मान करते हैं और न्यायाधीशों को तब सम्मान मिलता है जब वे वकीलों का सम्मान करते हैं। परस्पर सम्मान तब होता है जब यह एहसास होता है कि दोनों न्याय का हिस्सा हैं।’’हाल ही में सुप्रीमकोर्ट ने एक ऐसा ही फैसला सुनाया, जिसमें न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के उक्त विचारों की झलक स्पष्ट नजर आती है। 

20 सितम्बर को जस्टिस हिमा कोहली तथा जस्टिस राजेश बिंदल पर आधारित सुप्रीमकोर्ट की पीठ ने एक फैसला सुनाते हुए कहा कि पुलिस या अन्य कानून लागू करने वाली एजैंसियों में नौकरी के इच्छुकों को यह संवेदनशील जिम्मेदारी निभाने के लिए अनिवार्य रूप से अन्य संगठनों में नौकरी के लिए लागू किए जाने वाले मापदंडों की तुलना में उच्च और कड़े नैतिक मापदंडों वाला होना चाहिए। ऐसे पद पर नियुक्त होने के बाद संबंधित व्यक्ति पर समाज में कानून लागू करने, कानून-व्यवस्था बनाए रखने और बड़े पैमाने पर जनता के जीवन तथा सम्पत्ति की रक्षा करने की जिम्मेदारी होती है, अत: पुलिस भर्ती में उच्च और कड़े मापदंड लागू करने की जरूरत है। 

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल ने कहा कि किसी आवेदक को किसी आरोप से बरी करने से ही उम्मीदवार स्वत: नौकरी पाने का अधिकारी नहीं हो जाता। न्यायाधीशों ने यह टिप्पणी मध्य प्रदेश के एक व्यक्ति से संबंधित केस की सुनवाई करते हुए की। एक नाबालिग लड़की के सम्मान को ठेस पहुंचाने के आरोप में इस व्यक्ति पर मुकद्दमा चलाया गया था। उसे 2015 में अदालत ने बरी कर दिया, परंतु 2016 में राज्य पुलिस में कांस्टेबल की नौकरी देने से इंकार कर दिया गया था, जिसे उसने अदालत में चुनौती दी थी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की एकल पीठ ने राज्य सरकार के फैसले को सही माना, परंतु खंडपीठ ने उसे खारिज कर दिया था। इसके विरुद्ध मध्य प्रदेश की सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में अपील की जिस पर सुनवाई करते हुए माननीय न्यायाधीशों ने कहा कि : 

‘‘शिकायतकत्र्ता लड़की के साथ आरोपी ने समझौता कर लिया और उसे मैरिट के आधार पर नहीं, बल्कि तकनीकी आधार पर बरी किया गया है। पहले शिकायत करने वाली लड़की ने मामले का समर्थन नहीं किया और बाद में गवाहों के पलट जाने के कारण ही आरोपी बरी हुआ है।’’ ‘‘ऐसी हालत में प्रतिवादी की इस दलील में कोई दम नहीं है कि उसे आपराधिक मामले में निर्दोष ठहराया गया है। सरकार ने प्रतिवादी से संबंधित सभी कारणों पर ध्यान देने के बाद अपने विवेक का इस्तेमाल किया है।’’ जहां न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को कानून के व्यवसाय का मूल आधार बताया है, वहीं सुप्रीमकोर्ट के जजों, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल ने इसी भावना के अनुरूप सही फैसला सुनाया है। अपनी इसी निष्पक्षता के कारण ही न्यायपालिका को लोकतंत्र का मजबूत स्तम्भ कहलाने का श्रेय प्राप्त है।—विजय कुमार 

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!