भाजपा व विपक्षी दलों के लिए राज्यसभा में दाव ऊंचे

Edited By ,Updated: 24 May, 2022 04:20 AM

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शीघ्र ही राज्यसभा की बनावट भी लोकसभा की ही तरह दिखाई देगी जिससे सत्ताधारी भाजपा को लाभ प्राप्त होगा। यद्यपि यह संभवत: दोहरे अंकों में पहुंच जाएगी लेकिन फिर भी इसे अभी बहुमत प्राप्त नहीं होगा। भाजपा तथा विपक्षी दलों के लिए दाव

शीघ्र ही राज्यसभा की बनावट भी लोकसभा की ही तरह दिखाई देगी जिससे सत्ताधारी भाजपा को लाभ प्राप्त होगा। यद्यपि यह संभवत: दोहरे अंकों में पहुंच जाएगी लेकिन फिर भी इसे अभी बहुमत प्राप्त नहीं होगा। भाजपा तथा विपक्षी दलों के लिए दाव ऊंचे हैं क्योंकि जून-जुलाई में राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के लिए चुनाव होने हैं। स्वाभाविक है कि राज्य विधानसभाओं की बनावट में कोई भी बदलाव राज्यसभा पर असर डालेगा जिसे बड़ों का सदन कहा जाता है। 

राज्यसभा की 57 सीटों के लिए आने वाले द्विवार्षिक चुनावों तथा 10 जून को 2 उपचुनावों के बाद सदन में कई बदलाव देखने को मिलेंगे। संभवत: सेवानिवृत्त होने वाले कुछ सदस्य वापसी करेंगे तथा हो सकता है बाकी नहीं। पाॢटयों की घटती-बढ़ती ताकत चौंकाने वाली है क्योंकि क्षेत्रीय दल संभवत: द्विवार्षिक चुनावों के बाद 2 राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा तथा कांग्रेस से अधिक लाभ में रहें। 

क्षेत्रीय क्षत्रकों का कई राज्यों पर शासन है, जैसे कि पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, दिल्ली, पंजाब तथा तमिलनाडु। युवा आम आदमी पार्टी (आप) का दिल्ली तथा पंजाब पर शासन है और राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनावों में यह सबसे बड़ी लाभकत्र्ता रही है। इसने पांच सीटें जीती हैं जिसके साथ सदन में इसकी  ताकत 8 पर पहुंच गई है। क्षेत्रीय दल संभवत: 57 सीटों में से 25 से अपनी ताकत बढ़ा कर 27 तक पहुंचा लें। 

दूसरे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल (2014-2019) के दौरान कांग्रेस नीत विपक्ष मजबूत था तथा अधिकांश विधेयकों के रास्ते में अवरोध पैदा किया। भाजपा, जिसके 2012 में मात्र 47 सदस्य थे, ने अब तीन अंकों का आंकड़ा छू लिया है। संख्या में बदलाव मोदी 2.0 में आया, जिसने सरकार को कई विवादास्पद बिलों को आगे बढ़ाने के सक्षम बनाया जिनमें अनुच्छेद की धारा 370 को खत्म करना तथा जम्मू-कश्मीर को तीन भागों में बांटना शामिल था। 

सेवानिवृत्त होने वाले 59 सदस्यों में से भाजपा के 25 जबकि इसके सहयोगियों जदयू के 2 तथा अन्नाद्रमुक के तीन हैं। सिकुड़ रहे राष्ट्रीय गणतांत्रिक गठबंधन (राजद) की 59 में से 31 सीटें हैं। यह राजद के लिए चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि इसके 7 से 9 सीटें गंवाने की संभावना है। जहां तक अन्य पार्टियों का संबंध है तो समाजवादी पार्टी के 3, बीजू जनता दल के 4, बहुजन समाज पार्टी के 2 तथा तेलंगाना राष्ट्र समिति के 3 सदस्य हैं। इसके विपरीत वाई.एस.आर. कांग्रेस, अकाली दल  तथा राष्ट्रीय जनता दल प्रत्येक का एक-एक सदस्य है। 

आंध्र प्रदेश में भाजपा को 3 सीटों का नुक्सान होगा, जो वर्तमान में उन 4 सीटों में से हैं जिन पर चुनाव होने वाले हैं। 2019 में वाई.एस.आर. कांग्रेस की जबरदस्त विजय का अर्थ है कि यह सभी 4 सीटों पर लाभ में रहेगी। इसी तरह तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी.आर.एस.) को चुनावों में जाने वाली दोनों सीटों पर लाभ होगा। बीजू जनता दल (बीजद) के कब्जे में तीनों सीटें बनी रहेंगी। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुधार करते हुए  अपनी संख्या को एक से दो करेगा तथा ‘आप’ पंजाब में दोनों सीटें जीत लेगी जो पहले कांग्रेस तथा अकाली दल के पास थीं। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जे.एम.एम.) ने कांग्रेस को एक सीट ऑफर की है जो इस समय भाजपा के पास है। 

तीसरे, कांग्रेस पार्टी, जो 2014 से मुख्य विपक्षी दल है, और भी सिकुड़ सकती है। चुनावी तौर पर देखें तो कांग्रेस पार्टी 2014 तथा 2019 में मिले झटकों से उबरी नहीं है तथा तब से लेकर एक-एक करके राज्य हारती जा रही है। ऊपरी सदन के लिए आने वाले द्विवार्षिक चुनावों के बाद राज्यसभा में इसकी संख्या और कम हो गई। पार्टी को आंध्र प्रदेश में कोई सीट नहीं मिलेगी, राजस्थान में यह 4 से 2 पर नीचे आ जाएगी तथा झारखंड एवं छत्तीसगढ़ दोनों में एक-एक सीट हार जाएगी। इससे भी अधिक, अब तथा 2024 के बीच, 65 सीटों के लिए चुनाव हुए लेकिन कांग्रेस के अवसर कमजोर हैं क्योंकि इसकी ताकत अभी और कम होगी। 

चौथा, कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को हालिया उदयपुर प्रस्ताव के कारण राज्यसभा की सीट नहीं मिलेगी जिसमें सभी पदों पर युवाओं को 50 प्रतिशत हिस्सेदारी देने की बात की गई है। पी. चिदम्बरम, कपिल सिब्बल, जयराम रमेश तथा अम्बिका सोनी जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का कार्यकाल संभवत: समाप्त होने वाला है। इसके विपरीत कुछ केंद्रीय मंत्री, जिनमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल तथा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी शामिल हैं, सेवानिवृत्त हो जाएंगे। यद्यपि उन सभी की वापसी की संभावना है। पांच राज्यों में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में से 4 में शानदार विजय हासिल करने के बाद पार्टी उन सभी को स्थान देने में सक्षम होगी। 

इसके विपरीत भौगोलिक तौर पर कांग्रेस के पदचिन्ह सिकुड़े हैं। पार्टी केवल 4 राज्यों में शासन कर रही है-राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में अपने बल पर तथा महाराष्ट्र व झारखंड में यह सत्ताधारी गठबंधन में जूनियर पार्टनर के तौर पर सत्ता में है। पार्टी को 17 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों से राज्यसभा में शून्य प्रतिनिधित्व मिलेगा। सबसे बढ़कर यदि वर्तमान अध्यक्ष एम. वेंकैया नायडू को राष्ट्रपति के तौर पर पदोन्नत किया जाता है अथवा उन्हें दूसरा कार्यकाल नहीं मिलता तो राज्यसभा को एक नया अध्यक्ष मिलने की संभावना है।-कल्याणी शंकर
    

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