किसान आंदोलन को अपनी राजनीतिक दिशा तय करनी होगी

Edited By ,Updated: 22 Nov, 2022 06:11 AM

farmer s movement will have to decide its political direction

पिछले सप्ताह किसान राजनीति के भविष्य के लिए दो महत्वपूर्ण संकेत सामने आए।

पिछले सप्ताह किसान राजनीति के भविष्य के लिए दो महत्वपूर्ण संकेत सामने आए। पहला, संयुक्त किसान मोर्चा ने 19 नवंबर को देश भर में ‘फतेह दिवस’ मनाया और किसान आंदोलन के आगामी कार्यक्रमों की घोषणा की। दूसरा, एक आर.टी.आई. के जरिए सरकार की बहुप्रचारित ‘किसान सम्मान निधि’ की असलियत का भंडाफोड़ हुआ। एक तरफ किसानों के प्रति सरकार की निष्क्रियता और असंवेदनशीलता तो दूसरी तरफ किसान आंदोलन की सक्रियता और संकल्प आने वाले साल में एक नई किसान राजनीति की ओर इशारा करते हैं।

इस सप्ताह एक आर.टी.आई. के जरिए यह खुलासा हुआ कि गाजे-बाजे के साथ पिछले लोकसभा चुनाव से पहले शुरू की गई किसान सम्मान निधि योजना के लाभाॢथयों की संख्या में आश्चर्यजनक कमी हुई है। ‘द हिंदू’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा चुनाव से पहले इस योजना की शुरूआती किस्त में 11.84 करोड़ किसानों के अकाऊंट में पैसा पहुंचाया गया था। सरकार ने कहा था कि इसे सभी 14 करोड़ किसान परिवारों तक पहुंचाया जाएगा। लेकिन इस साल 11वीं किस्त आते-आते लाभार्थियों की संख्या घटकर 3.87 करोड़ ही रह गई।

यह गिरावट अचानक किसी एक किस्त में नहीं हुई, बल्कि छठी किस्त के बाद से लगातार सम्मान निधि प्राप्त करने वाले किसानों की संख्या गिरती जा रही है। छठी किस्त में 9.87 करोड़ किसानों को निधि मिली, 7वीं में 9.30 करोड़ को, 8वीं किस्त में 8.51 करोड़ को, 9वीं किस्त में 7.66 करोड़, 10वीं किस्त में 6.34 करोड़ किसानों और इस साल अप्रैल-जून में ग्याहरवीं किस्त में सिर्फ 3.87 करोड़ किसान परिवारों को 2000 रुपए की चौमाही किस्त वितरित की गई। अगर इस आर.टी.आई. पर यकीन किया जाए तो प्रधानमंत्री की सबसे प्रतिष्ठित योजना में से किसान गायब होते रहे लेकिन सरकार सोती रही।

जब ‘द हिंदू’ ने सरकार से इसके कारणों का खुलासा करने को कहा तो सरकार ने जवाब नहीं दिया। लेकिन रिपोर्ट छपने से हुए हंगामे के बाद सरकार ने एक प्रैस विज्ञप्ति जारी कर कुछ अलग आंकड़े दिए हैं और सारा दोष राज्य सरकारों पर डाल दिया गया है। यहां सवाल उठता है कि अगर ये आंकड़े गलत हैं तो सरकार ने ही आर.टी.आई. में ऐसे आंकड़े क्यों दिए थे? सरकार इशारा कर रही है कि ये आंकड़े केवल उन किसानों के हैं जिन्हें लगातार सारी किस्तें मिलीं। ऐसा है तब भी यह इस योजना की गंभीर विफलता दर्शाता है।

अगर गलती राज्य सरकारों की है तब भी प्रधानमंत्री इससे पल्ला नहीं झाड़ सकते क्योंकि जिन राज्यों में लाभार्थियों की संख्या में सबसे भारी गिरावट हुई है (जैसे मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार और महाराष्ट्र) वहां अधिकांश समय भाजपा की ही सरकार थी। मामला केवल एक योजना का नहीं है। कमोबेश ऐसी ही स्थिति सरकार की दूसरी बहुप्रचारित कृषि मुहिम ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ की है।  प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू होने के बाद पहले एक-दो वर्ष यह संख्या बढ़ी, लेकिन उसके बाद लगातार गिरती रही है।

सन 2021 के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष केवल 2.41 करोड़ किसानों की 3.87 करोड़ हैक्टेयर जमीन का फसल बीमा हुआ। मतलब कि इतने शोरगुल के साथ शुरू की गई इस फसल बीमा योजना के परिणामस्वरूप बीमा कम्पनियों की आमदनी जरूर बढ़ गई है, लेकिन फसल बीमा का फायदा उठाने वाले किसानों की संख्या आधी रह गई है। पिछले साल 9 दिसंबर को दिल्ली मोर्चा उठाते वक्त केंद्र सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा से जो लिखित वादे किए थे, उनसे वह पूरी तरह मुकर चुकी है। खुद केंद्र सरकार ने आंदोलन के दौरान किसानों पर जो मुकद्दमे किए थे उन्हें वापस नहीं लिया है।

बिजली बिल संसद में पेश करने से पहले संयुक्त किसान मोर्चा से चर्चा करने के लिखित वादे के बावजूद सरकार ने बिना किसी चर्चा के इसे संसद में पेश कर दिया है। वादे के 9 महीने बाद एम.एस.पी. पर कमेटी बनाई गई लेकिन एम.एस.पी. को कानूनी गारंटी बनाने के मुद्दे को कमेटी के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं रखा गया। किसानों के लिए जलियांवाला बाग कांड जैसे लखीमपुर खीरी हत्याकांड के आरोपी अजय मिश्र टेनी आज भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने हुए हैं और सरकार उनके बेटे को जेल से बाहर निकालने की कोशिश लगातार कर रही है।

इस सब से यह स्पष्ट है कि यह सरकार न तो किसानों को किए अपने वादों के प्रति गंभीर है, न ही अपने दावों में सच्ची है, न तो अपनी घोषणा की पक्की है और न ही अपने लिखित आश्वासन पर टिकती है। जाहिर है ऐसे में किसानों के पास अपना संघर्ष दोबारा शुरू करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। अब किसान आंदोलन को अपनी राजनीति साफ तौर पर निर्धारित करनी पड़ेगी। यह तो तय है कि आर.एस.एस. और भाजपा के जे.बी. किसान संगठनों को छोड़कर बाकी सभी इस बात पर सहमत हैं कि मोदी सरकार देश के इतिहास में सबसे अधिक किसान विरोधी सरकार साबित हुई है। अब किसानों को इस सरकार को लोकतांत्रिक तरीके से पलटने के लिए अपनी रणनीति बनानी होगी।-योगेन्द्र यादव

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