विपदा की स्थिति में भाजपा सरकार ‘मौन’ धार लेती है

Edited By ,Updated: 21 May, 2023 05:23 AM

in the event of a disaster the bjp government takes the edge of  silent

कहा जाता है कि ‘दुर्भाग्य अकेले नहीं आता’। 7 मई, 2023 से शुरू होने वाला सप्ताह भाजपा के लिए क्रूर था। 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दो फैसले दिए। दोनों संविधान पीठों (पांच न्यायाधीशों) के थे और दोनों ने संविधान के प्रमुख प्रावधानों की व्याख्या की। दोनों...

कहा जाता है कि ‘दुर्भाग्य अकेले नहीं आता’। 7 मई, 2023 से शुरू होने वाला सप्ताह भाजपा के लिए क्रूर था। 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दो फैसले दिए। दोनों संविधान पीठों (पांच न्यायाधीशों) के थे और दोनों ने संविधान के प्रमुख प्रावधानों की व्याख्या की। दोनों ने मिलकर सरकार के मुंह पर दो-दो जोरदार तमाचे जड़े। कर्नाटक चुनाव के नतीजे 13 मई को आए थे। विपदा की स्थिति में भाजपा सरकार ‘मौन’ की शरण में चली जाती है। न तो आमतौर पर आत्मविश्वासी माननीय गृह मंत्री और न ही मुखर पूर्व माननीय कानून मंत्री ने निर्णयों या कर्नाटक चुनाव परिणामों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की। 

संवैधानिक अतिक्रमण : दिल्ली का मामला काफी साधारण था। 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 239ए.ए. की व्याख्या की थी और कहा था कि सभी मामलों में सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर, कार्यकारी शक्ति दिल्ली सरकार की मंत्रिपरिषद में निहित थी और दिल्ली के उपराज्यपाल, बाध्य थे कि मंत्रिपरिषद की ‘सहायता और सलाह’ पर कार्य करें। ‘सेवाओं’ के बारे में संदेह था। सिविल सेवकों को कौन नियंत्रित करेगा, इस मुद्दे को 11 मई के फैसले से शांत कर दिया गया था और यह घोषित किया गया था कि मंत्रियों का ‘सेवाओं’ पर नियंत्रण था। 2014 के बाद से प्रत्येक उपराज्यपाल को सरकार की एक लोकतांत्रिक, संघीय प्रणाली के सार का सम्मान नहीं करने के लिए दोष सांझा करना चाहिए। 

दूसरा मामला केवल इसलिए जटिल था क्योंकि पिछले फैसलों में संविधान की 10वीं अनुसूची के प्रावधानों की आधिकारिक और स्पष्ट रूप से व्याख्या नहीं की गई थी। 2004 में 10वीं अनुसूची में संशोधन के बाद विधायक दल में ‘विभाजन’ की कोई अवधारणा नहीं है। 10वीं अनुसूची ने दल-बदल के खतरों से छूट की अनुमति केवल तभी दी, जब दो शर्तों में से एक पूरी हुई हो: (1) यदि मूल राजनीतिक दल का किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय हो गया हो और विधायक दल के कम से कम दो-तिहाई सदस्य इस विलय के लिए सहमत हों; (2) यदि विधायिका (विधायकों) ने विलय को स्वीकार नहीं किया है और विधायिका में एक अलग समूह के रूप में कार्य करने का विकल्प चुना है। यदि दोनों शर्तों में से कोई भी पूरी नहीं होती, तो असंतुष्ट विधायक दल से संबंधित बने रहते हैं और मूल राजनीतिक दल के व्हिप का पालन करने के लिए बाध्य होते हैं। 

असंवैधानिक सरकार : महाराष्ट्र में एक स्थिति पैदा हो गई, जहां एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में 16 विधायक शिवसेना विधायक दल से अलग हो गए। उनके मूल राजनीतिक दल ने उस दिन किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय नहीं किया था (और आज भी नहीं किया है)। 10वीं अनुसूची के तहत कोई भी असाधारण परिस्थिति मौजूद नहीं थी। इसलिए, 21 जून, 2022 को जारी शिवसेना के व्हिप के निर्देशानुसार असंतुष्टों को कार्य करने और मतदान करने के लिए उपकृत किया गया था। 

व्हिप को धत्ता बताते हुए एकनाथ शिंदे समूह ने भाजपा से हाथ मिला लिया। राज्यपाल ने बिना किसी कारण के (जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने पाया) मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधानसभा में विश्वास मत की मांग करने के लिए कहा। ठाकरे ने (खराब सलाह पर) विधानसभा का सामना किए बिना इस्तीफा दे दिया। राज्यपाल ने तुरंत शिंदे को मुख्यमंत्री नियुक्त किया और उनके समूह और भाजपा की गठबंधन सरकार ने शपथ ली। शिवसेना ने 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए अध्यक्ष पर दबाव डाला। 

अध्यक्ष ने याचिका को दबा लिया (जो कई विधानसभाओं में प्रथा बन गई है)। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ‘व्हिप’ राजनीतिक दल (इस मामले में शिवसेना) द्वारा नियुक्त व्यक्ति है; कि राज्यपाल के पास विधानसभा का सत्र बुलाने और ठाकरे को विश्वास मत हासिल करने का निर्देश देने का कोई कारण नहीं था और अध्यक्ष को जितनी जल्दी हो सके अयोग्यता याचिका पर निर्णय लेने की छूट दी गई। इस कॉलम में मेरा सरोकार संवैधानिक पदाधिकारियों के आचरण से है। स्पष्ट है कि राज्यपाल ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया और अध्यक्ष ने अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं किया। दोनों कत्र्तव्य की उपेक्षा के दोषी थे। दोनों जून 2022 से एक असंवैधानिक सरकार को स्थापित करने या पद पर बने रहने की अनुमति देने में सहभागी थे। 

अति महत्वपूर्ण लक्ष्य : विभिन्न राज्यों में कुख्यात ऑपरेशन लोटस, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और असम में बुलडोजर न्याय, गैर-भाजपा शासित राज्यों को किसी न किसी बहाने फंड देने से मना करना या कम करना, विपक्षी राजनेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों की बाढ़, संवैधानिक रूप से संदिग्ध कानून, जैसे अनुच्छेद 370 में संशोधन और चुनावी बांड पर कानून, समान नागरिक संहिता लागू करने का खतरा, नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने का खतरा, राज्य कानूनों (जैसे शिक्षा) की अवहेलना करने के लिए सूची III-समवर्ती सूची का इस्तेमाल, जी.एस.टी. कानूनों के तहत कराधान शक्तियों का हड़पना और कई अन्य कार्यों का उद्देश्य एक व्यापक लक्ष्य को प्राप्त करना है- एक सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी केंद्र सरकार के तहत 140 करोड़ लोगों को शासन की एक छतरी के नीचे लाना। इसे ‘केंद्रवाद’ कहा जाता है। जिन देशों में ‘केंद्रवाद’ प्रचलित है, उसके उदाहरण चीन, रूस, तुर्की आदि हैं। 

सर्वोच्च न्यायालय के दो निर्णयों ने ‘केंद्रवाद’ की ओर झुकाव को रोक दिया है। कर्नाटक के फैसले ने डबल इंजन वाली सरकार को पटरी से उतार दिया है। ‘केंद्रवाद’ के खिलाफ सबसे अच्छा उपाय हमारी चुनावी और राजनीतिक प्रणाली को बहुलतावादी बनाए रखना है। राज्यों में सत्ता हासिल करने वाली कई पाॢटयां और केंद्र में सत्ता के लिए कम से कम दो पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट में दो और कर्नाटक में एक लड़ाई जीती जा चुकी है, लेकिन आगे कई और हैं।-पी. चिदम्बरम

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