केजरीवाल जमानत पर बाहर, सोरेन जेल में, नेताओं के लिए अलग-अलग मापदंड

Edited By ,Updated: 15 May, 2024 05:10 AM

kejriwal out on bail soren in jail different criteria for leaders

इस चुनावी राजनीतिक मौसम में दाग, जाति, पंथ, आदि का कुप्रयोग हो रहा है। यदि कल दिल्ली के मुख्यमंत्री और ‘आप’ के संयोजक केजरीवाल को दिल्ली शराब नीति 2021 में अनियमितताओं और रिश्वतखोरी में उनकी भूमिका के लिए जमानत दी गई है और यह खबर सुॢखयों में रही,...

इस चुनावी राजनीतिक मौसम में दाग, जाति, पंथ, आदि का कुप्रयोग हो रहा है। यदि कल दिल्ली के मुख्यमंत्री और ‘आप’ के संयोजक केजरीवाल को दिल्ली शराब नीति 2021 में अनियमितताओं और रिश्वतखोरी में उनकी भूमिका के लिए जमानत दी गई है और यह खबर सुॢखयों में रही, किंतु झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर यह कृपा नहीं हुई क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने करोड़ों रुपए के कथित भूमि घोटाले में धन शोधन के मामले में उन्हें अंतरिम जमानत देने से इंकार कर दिया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता द्वारा मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र देने के बाद उन्हें 31 जनवरी को गिरफ्तार किया गया। 

उक्त दोनों मामले इस बात के उदाहरण हैं कि अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग मापदंड हैं। केजरीवाल की जेल से रिहाई के हाल के मामले को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए सोरेन ने अपील की थी कि उन्हें भी लोकसभा चुनावों में अपनी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए चुनाव प्रचार में भाग लेने के लिए अंतरिम जमानत दी जाए। इस तर्क में दम है क्योंकि यदि वही खंडपीठ केजरीवाल को 10 मई को 1 जून तक चुनाव प्रचार के लिए जमानत देती है और चुनाव संपन्न होने के बाद 2 जून को आत्मसमर्पण का आदेश देती है, तो सोरेन को क्यों नहीं जमानत दी जाती क्योंकि दोनों मामले किसी पार्टी के अध्यक्ष के हैं और दोनों ही अपने अपने राज्यों में मुख्यमंत्री थे या हैं। विशेषकर न्यायालय की इस टिप्पणी की पृष्ठभूिम में कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि चुनाव इस वर्ष सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है, इसके महत्व को नजरंदाज करना गलत होगा। 

हालांकि यह बहस का मुद्दा है कि क्या चुनाव प्रचार का अधिकार जमानत का आधार हो सकता है क्योंकि यह मौलिक, संवैधानिक या कानूनी अधिकार नहीं है, किंतु जैसा कोर्ट ने कहा है, केजरीवाल न तो आदतन अपराधी हैं और न ही समाज के लिए खतरा, अपितु जनता के चुने हुए प्रतिनिधि तथा एक पार्टी के अध्यक्ष हैं, इसलिए उन्हें जमानत दी गई है। यह बात सोरेन पर भी लागू होती है किंतु उन्हें राहत नहीं मिली। 

न जाने किन कारणों से न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय के इस तर्क को खारिज किया कि इससे नागरिकों और विशेषाधिकार राजनेताओं के दो वर्ग बनेंगे। यदि राजनेता चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत प्राप्त कर सकता है तो फिर एक किसान या किसी कंपनी का निदेशक भी अपनी फसल या बोर्ड मीटिंग में भाग लेने के लिए इसी तरह की राहत का हकदार होगा क्योंकि सभी व्यवसाय समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। तथापि न्यायालय ने चुनाव प्रचार के लिए एक राजनेता को अंतरिम जमानत देते हुए कहा कि इसकी तुलना एक किसान द्वारा अपनी फसल की देखभाल के लिए जमानत मांगने या एक व्यवसायी द्वारा अपनी बोर्ड की मीटिंग में भाग लेने से तुलना नहीं की जा सकती और यह उदारवादी मत अपनाया कि एक निर्वाचित व्यक्ति न केवल एक व्यक्ति है, अपितु वह जनता का प्रतिनिधि भी है और चुनाव प्रचार में भाग लेना चुनावों का एक अभिन्न अंग है। 

नि:संदेह केजरीवाल के बारे में न्यायालय का आदेश असाधारण है क्योंकि यह विपक्ष के इस आरोप के बारे में एक संदेश देने का प्रयास है कि सरकार द्वारा उसके विरोधी नेताओं के उत्पीडऩ के लिए सी.बी.आई., प्रवर्तन निदेशालय आदि एजैंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। यह इस बात को भी रेखांकित करता है कि एक दांडिक प्रक्रिया की आड़ में लोकतंत्र को नजरंदाज और जांच के नाम पर चुनावों से पूर्व नेताओं को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता तथा ऐसे मामलों में न्यायालय मूक दर्शक बना नहीं रहेगा। 

इसी तरह तेलुगु देशम पार्टी के अध्यक्ष के मामले में भी उच्चतम न्यायायल ने उन्हें अंतरिम जमानत देतेे हुए राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने से अंकुश लगाने की शर्त को हटा दिया था। वस्तुत: ऐसे मामलों में जमानत देने से अपराधियों से राजनेता बने लोगों के लिए भानुमति का पिटारा खुल जाएगा और वे इस खामी का दुरुपयोग करेंगे। वे चुनाव की अवधि का उपयोग कर सकते हैं और केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय स्तर के किसी भी चुनाव में चुनाव प्रचार का बहाना बना सकते हैं तथा इस तरह जेल से बच सकते हैं। 

वस्तुत: इससे यह आशंका भी बढ़ती है कि कट्टर दुर्दान्त अपराधी चुनाव प्रक्रिया में प्रवेश करते हैं और इस आधार पर न्यायालय से राहत मांग सकते हैं। यह राहत मांगने के लिए एक अतिरिक्त आधार बन गया है। इसके अलावा इससे अपराधियों के लिए मुकद्दमों की एक नई श्रेणी बन सकती है, जो केजरीवाल के मामले को एक अतिरिक्त तर्क के रूप में शामिल कर सकते हैं और इससे मामले की स्थिति स्थायी रूप से प्रभावित हो सकती है जिसके चलते गवाहों पर दबाव डाला जा सकता है, साक्ष्यों से छेड़छाड़ हो सकती है और लेन-देन हो सकता है। यह उन मामलों में हो सकता है जहां पर एजैंसियों के पास जांच शुरू करने के लिए समय की कमी हो या वे ठोस सबूत नहीं जुटा पाई हों। साथ ही जो नेता अभी न्यायालयों में दोषी सिद्ध नहीं हुए हैं, वे भी चुनाव की अवधि के दौरान इस आधार पर अस्थायी राहत मांग सकते हैं। 

इस आदेश से यह बात भी रेखांकित होती है कि राजनेता वास्तव में एक अलग वर्ग है। उनकी स्थिति आम नागरिकों से ऊंची है और उन्हें गिरफ्तारी से राहत प्राप्त है तथा इससे आम आदमी व अपराधी राजनेता बनना चाहेगा और जेल से बाहर आने के लिए वह चुनाव प्रचारक बनने का प्रयास करेगा। इसका प्रभाव दिखने लगा है। खालिस्तानी अलगाववादी और वारिस पंजाब दे का प्रमुख अमृतपाल सिंह राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत जेल में बंद है और उसने पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय से इसी तरह 7 दिन की राहत की मांग की है ताकि वह चुनाव लडऩे के लिए एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र भरे और चुनाव प्रचार कर सके। किंतु न्यायालय ने उसकी याचिका को खारिज किया क्योंकि यह राष्ट्र और राष्ट्र की सुरक्षा से संबंधित मामला है। 

इससे लोकतंत्र के बारे में अप्रिय प्रश्न भी उठते हैं कि हमारे नेता इस बात से बिल्कुल भी ङ्क्षचतित नहीं, जिन्होंने रिश्वतखोरी को एक राजनीतिक व्यवसाय बना दिया है। इस पर लोगों में आक्रोश या शर्म नहीं है। वस्तुत: राजनीति प्रेरित आरोपों और वास्तविक दोषिसिद्ध के बीच अंतर किया जाना चाहिए। आज महत्वपूर्ण न केवल विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का कार्यकरण है, अपितु उसका संवैधानिक एजैंडा भी है, जो दलगत राजनीति से अधिक सारवान है। इससे आगे की राह इस बात पर निर्भर करेगी कि नागरिक उन्हें प्राप्त लोकतांत्रिक विकल्पों का किस तरह उपयोग करते हैं।-पूनम आई. कौशिश
 

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