महात्मा ज्योतिबा फुले: एक प्रासंगिक चिंतन

Edited By ,Updated: 11 Apr, 2021 02:53 AM

mahatma jyotiba phule a contextual thinking

भारत का इतिहास अनेकों महापुरुषों उनके प्रेरणादायी व्यक्तित्व, कृतित्व से भरपूर है तथा सामान्य मानव के जीवन,सामाजिक व्यवस्था आर्थिक विकास को लेकर उनके विचार व दूरदर्शी सोच वर्तमान व भावी पीढिय़ों

भारत का इतिहास अनेकों महापुरुषों उनके प्रेरणादायी व्यक्तित्व, कृतित्व से भरपूर है तथा सामान्य मानव के जीवन,सामाजिक व्यवस्था आर्थिक विकास को लेकर उनके विचार व दूरदर्शी सोच वर्तमान व भावी पीढिय़ों के लिए मार्ग दर्शिका का एक अनूठा स्त्रोत है।

इसी शृंखला में आज 19वीं शताब्दी के महान समाज सुधारक, दलित उत्थान व महिला शिक्षा एवं समानता के अग्रदूत महात्मा ज्योतिबा फुले की 194 वीं जयंती के अवसर पर सामाजिक व कृषि संबंधी आर्थिक सुधारों से राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालना अत्यन्त प्रासंगिक है। महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपना संपूर्ण जीवन दलित उत्थान व महिला शिक्षा को समर्पित किया। एक मान्यता के अनुसार, समाज के ऐसे वर्ग जिन्हें अस्पृश्य (अछूत) की श्रेणी में माना जाता था, उनके लिए ‘दलित’ शब्द का प्रयोग भी प्रथम बार महात्मा ज्योतिबा फुले के द्वारा ही किया गया था।

महाराष्ट्र के सतारा में वर्ष 1827 में माली समाज के परिवार में जन्मे इस महान विचारक ज्योतिराव गोविन्दराव फुले को दलित उत्थान, महिला शिक्षा, समाज सुधार के प्रणेता के रूप में जाना जाता है, लेकिन तत्कालीन परिप्रेक्ष्य में कृषक समाज की दुर्दशा, नितांत गरीब व साधनहीन किसानों के आर्थिक उद्धार हेतु सुझाए गए कृषि सुधार के उपाय अनुकरणीय हैं।

फुले ने किसानों की सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक स्थिति का विशेष विश्लेषण किया तथा जीवन पर्यंत उनकी समस्याओं के समाधान को खोजने में प्रयत्नशील रहे। यह उनकी कृषक वर्ग को लेकर गंभीरता का ही परिणाम था कि वर्ष 1883 में किसानों की आर्थिक दुर्दशा का ऐतिहासिक सर्वेक्षण करके व इसके कारणों को अत्यन्त गहराई व मनोयोग से विश्लेषित करके ‘शेतकरयाचा असूड’ (किसान का कोड़ा) महाग्रंथ की रचना की व कृषकों की सर्वांगीण उन्नति के बहुमूल्य सुझाव दिए। इस ग्रंथ में ज्योतिराव फुले ने कृषि पर जनसंख्या के बढ़ते दबाव, कृषि उत्पादन प्रणाली के पिछड़ेपन तथा विद्यमान सामाजिक व्यवस्था व नौकरशाही द्वारा किसानों के शोषण जैसे किसान की दरिद्रता के तीन प्रमुख कारण बताए।

एक प्रगतिशील किसान की भूमिका में महात्मा फुले  ने कृषि सुधारों की आवश्यकता पर बल देकर अनेक सुझाव दिए। खेतों में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ताल-तलैया व बांध का निर्माण करने, पशु पालन को बढ़ावा देने व परिणामस्वरूप खाद उत्पादन बढ़ाने, पशुधन वध प्रतिबंधित करने, पशुधन नस्ल सुधार कार्यक्रम चलाने, किसानों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाने पर जोर दिया। इसके साथ-साथ किसानों के कृषि संबंधी ज्ञान वृद्धि के लिए कृषि मेलों के आयोजन करने व विदेशी अनुभव से अन्नोत्पादन की नई-नई तकनीकों से परिचित कराने से संबंधित बहुमूल्य सुझाव दिए। कृषि सुधार संबंधी इन सुझावों में भूमि व भूमि पुत्र के विकास तथा सम्पूर्ण समाज व राष्ट्र के निर्माण को लेकर महात्मा फुले की आधुनिक सोच परिलक्षित होती है।

महात्मा फुले के कृषि सुधारों व कृषक कल्याण संबंधी विचारों की प्रेरणा के अनुरूप ही वर्ष 2014 के पश्चात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में कृषि क्षेत्र में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसान क्रैडिट कार्ड, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की शुरूआत की थी। साथ ही जल प्रबंधन, सॉयल हैल्थ कार्ड, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, नीम कोटिड यूरिया के साथ-साथ उच्च गुणवता के बीजों की उपलब्धता तथा स्टोरेज व मार्कीटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर, एफ.पी.ओ. को बढ़ावा देने तथा किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा मेें प्रभावशाली योजनाएं व ऐतिहासिक कृषि सुधार कानून लागू किए गए हैं। ये सभी सुधार कृषि व किसान कल्याण के क्षेत्र में अर्थोपार्जन हेतु एक मील का पत्थर साबित होंगे।-अर्जुन राम मेघवाल(केन्द्रीय संसदीय कार्य एवं भारी उद्योग राज्य मंत्री)

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