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पार्टी या नेता बदलने की बजाय मूल ढांचे में जरूरी बदलाव हों

Edited By ,Updated: 15 Sep, 2021 05:36 AM

make necessary changes to the basic structure

तेजी से विश्व स्तर पर पूंजी का चंद हाथों में केन्द्रीयकरण हो रहा है तथा बहुगिनती गुजारा करने योग्य मामूली सी आमदनी से भी वंचित हो रही है उससे आने वाले समय में मानव समाज को एक

जिस तेजी से विश्व स्तर पर पूंजी का चंद हाथों में केन्द्रीयकरण हो रहा है तथा बहुगिनती गुजारा करने योग्य मामूली सी आमदनी से भी वंचित हो रही है उससे आने वाले समय में मानव समाज को एक डरावनी तथा चिंताजनक स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। विश्व की बहुराष्ट्रीय कार्पोरेशनों तथा कार्पोरेट घरानों ने तकनीक के हर क्षेत्र में आई हैरानीजनक उन्नति तथा अधिक पैदावार के बावजूद कर्मचारियों की गिनती कम करने, वेतन तथा अन्य भत्तों में भारी कटौती करने तथा काम के घंटे बढ़ाने को पहल दी है। 

अपने मुनाफे बढ़ाने के लिए विश्वस्तरीय पूंजीपति वर्ग एक ओर किसानों की जमीनों पर कब्जा करके खाद्य पदार्थों की आपूर्ति को पूरी तरह अपने नियंत्रण में लेकर मेहनतकश लोगों की दो वक्त की रोटी को भी उनकी पहुंच से बाहर करने जा रहा है तथा दूसरी ओर मजदूर वर्ग द्वारा लामिसाल कुर्बानियों से प्राप्त किए किरत कानूनों को समाप्त करके ठेकेदारी प्रथा और ‘काम के लिए भर्ती करो और काम पूरा होने पर तुरंत नौकरी से बाहर निकलो’ (॥द्बह्म्द्ग & स्नद्बह्म्द्ग) के माध्यम से कर्मचारियों को गुलामी की नई जंजीरों में जकडऩे की तैयारियां कर रहा है। 

बढ़ रही बेरोजगारी के कारण विभिन्न तरह के सामाजिक तनाव पैदा हो रहे हैं। स पत्ति से संबंधित छोटे-मोटे झगड़ों में कत्ल, कर्ज के बोझ के कारण आत्महत्याओं का बढ़ता रुझान तथा नौकरी पाने के लिए विभिन्न प्रांतों, इलाकों, जातियों तथा धर्मों के लोगों में आपसी टकराव रोज की घटनाएं बन गई है। सरकारों द्वारा नौकरियां देने की बजाय खाली जगह भरने से साफ जवाब मिलने के बाद भारतीय संविधान में जाति आधारित आरक्षण की मद पूरी तरह बेअर्थ हो गई है क्योंकि हर विभाग तथा संस्थानों के निजीकरण के बाद पूंजीपतियों तथा कार्पोरेट घरानों में नौकरी देते समय आरक्षण की सुविधा नहीं देनी। उनका सिद्धांत ‘चमड़ी नहीं काम प्यारा’ है। 

लाखों की संख्या में युवा हर रोज सरकार के दरबार में अर्जियां लेकर जाते हैं और शाम को पुलिस के डंडों से सिर तुड़वा कर खाली हाथ घरों को लौट आते हैं। बेरोजगार युवाओं की विदेशों की ओर लगी दौड़ जहां उनके अभिभावकों द्वारा इस उद्देश्य के लिए भारी रकमें प्राप्त करने के पीछे एक ल बी दर्दभरी प्रक्रिया है, वहीं बिना जरूरी जानकारी के विदेशी सपनों का बना संसार भी अधिकतर कुएं में छलांग मारने जैसा सिद्ध होता है। चोरियां, लूटमार, डाके, हत्याएं, बलात्कार, नशों का धंधा तथा सेवन का मूल कारण जीने योग्य जरूरी आमदनी वाला रोजगार प्राप्त न होना है। 

जैसे-जैसे नवउदारवादी आर्थिक नीतियों ने तेजी पकडऩी है और लोगों की महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, बीमारियों तथा रिहायश की मुश्किलों में अत्यंत वृद्धि होनी है, तब लोगों ने जागरूक होकर या मजबूरी में अपने पेट की आग बुझाने के लिए सड़कों पर निकलना ही है। केन्द्र की मोदी सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारों का रवैया इन संघर्षशील लोगों के दुखों का निवारण करने वाला नहीं बल्कि गलत प्रचार और लाठी गोली की मदद से दबाने वाला है। इस प्रक्रिया में दक्षिणपंथी तथा समाज विरोधी तत्वों द्वारा लोगों के इस गुस्से का अपने स्वार्थ के हितों के लिए इस्तेमाल करना बहुत आसान होता है। 

विभाजनकारी, सांप्रदायिक तथा आतंकवादी शक्तियां लोगों की फौलादी एकता को तोडऩे के लिए उनका ध्यान वास्तविक मुद्दों से हटाने हेतु हर स भव प्रयास करती है। इन तत्वों की धनवान लोगों तथा दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने पूरी मदद तथा हौसला अफजाई भी करनी है ताकि लोकदोषी सरकारों के विरुद्ध आम जनता का गुस्सा सामाजिक परिवर्तन की लहर के साथ एकाकार न हो सके। 

ध्यान रखने योग्य है कि मौजूदा सरकारों को चलाने वाली केवल राजनीतिक पाॢटयों या नेताओं को बदलने से स्थिति में बुनियादी सुधार होने की कोई गुंजाइश नहीं है बल्कि मौजूदा आॢथक प्रबंध के मुकाबले में, जो कार्पोरेट घरानों तथा जागीरदार वर्गों के हितों की रक्षा करता है, एक जनहितैषी तथा विकासोन्मुखी आॢथक विकास मॉडल ही देश के समक्ष मुश्किलों का समाधान कर सकता है। अत: समय आ गया है कि राजनीतिक दल या नेताओं को बदलने की बजाय मूल ढांचे में जरूरी बदलाव किए जाएं। 

यदि अपने अधिकारों के लिए संघर्षों में समाज के पीड़ित लोगों के विभिन्न हिस्सों में कोई टकराव या विरोधता भी पैदा होती है तो उसे तर्क के आधार पर हल करके सभी मेहनतकश लोगों की विशाल एकता तथा तीखे संघर्षों की प्रचंडता को और तेज किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया को ही ‘इंकलाब’ का नाम दिया गया है।-मंगत राम पासला
 

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