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महामारी से तेजी से निपटने के लिए ‘क्षमता’ विकसित करनी होगी

Edited By ,Updated: 10 Jul, 2020 03:19 AM

must develop  capability  to deal with epidemics faster

हार्वर्ड टी.एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के प्रोफैसर एवं हार्वर्ड ग्लोबल हैल्थ इंस्टीच्यूट के निदेशक डा. आशीष झा जैसे जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ कोविड-19 के संकट से जूझ रही सार्वजनिक तथा निजी संस्थाओं का मार्गदर्शन करने के लिए शोध तथा सरकारी नीतियों...

हार्वर्ड टी.एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के प्रोफैसर एवं हार्वर्ड ग्लोबल हैल्थ इंस्टीच्यूट के निदेशक डा. आशीष झा जैसे जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ कोविड-19 के संकट से जूझ रही सार्वजनिक तथा निजी संस्थाओं का मार्गदर्शन करने के लिए शोध तथा सरकारी नीतियों हेतु कार्य कर रहे हैं।

एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा कि हमें सरकार द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही सुविधाओं से आगे देखने की आवश्यकता है। सबसे पहले हमें यह देखने की जरूरत है कि कितने लोग संक्रमित हुए हैं और कितने लोग इससे मारे गए हैं। ये दोनों चीजें निर्धारित करती हैं कि आप कितनी परवाह कर रही हैं। यदि आप के सामने मामूली संक्रमित लोग हैं और आप व्यापक पैमाने पर टैस्टिंग नहीं कर रहे तो आप परवाह नहीं कर रहे। इससे संभवत: यह पता चलेगा कि मौतों की दर काफी अधिक हो सकती है क्योंकि आप केवल बीमार लोगों की जांच कर रहे हैं और बहुत अधिक बीमार लोगों को खोज रहे हैं। 

इसके अलावा यदि आपके पास मौतों के लिए एक बहुत अच्छी जांच प्रणाली नहीं है, यदि प्रत्येक मौत की विस्तारपूर्वक जांच नहीं की जाती तो आपको संभवत: पता चलेगा कि बहुसंख्या में लोग मारे गए हैं। आपको यह नहीं पता चलेगा कि वह क्यों मर रहे हैं? आप संभवत: यह सोचेंगे कि मौतों की दर वास्तव में बहुत कम है। यह समझना कि भारत में कोविड-19 से संक्रमित कितने लोग हैं और कितने लोग वायरस से मारे गए हैं, फिर बहुत मुश्किल काम है। आप केवल आधिकारिक आंकड़ों को नहीं देख सकते। यह पूछने कि भारत में मौतों को दर्ज करने तथा मौत के कारण का पता लगाने की दर बहुत सटीक है और क्या अनुमानत: मृत्यु दर सही है, उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर मौतों की दर लगभग 1 प्रतिशत या उससे कम है, जो भारत में भी होनी चाहिए। वास्तव में वह आशा करते हैं कि भारत में यह एक प्रतिशत से भी कम होगी क्योंकि भारत में अपेक्षाकृत अधिकतर जनसंख्या युवाओं की है लेकिन वह दरअसल मृत्यु दर में रुचि नहीं रखते, उनकी रुचि मौतों में है। 

आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में इस  समय 21,000 से अधिक लोग इस वायरस के कारण मारे जा चुके हैं। मेरे हिसाब से यह संख्या बहुत कम है। इसका कारण यह है कि जब हम अमरीका, ब्रिटेन तथा पश्चिमी यूरोप पर नजर डालते हैं तो उन देशों में आधिकारिक तौर पर बताई गई मौतों से कहीं अधिक मौतें दर्ज की गई हैं। यदि उच्च आय वाले देशों, जिनमें जांच के लिए बहुत अच्छी प्रणालियां हैं, कोरोना वायरस के कारण हुई 30 प्रतिशत से 70 प्रतिशत मौतों को दर्ज नहीं कर पाए तो वह क्यों आशंका नहीं जताएंगे कि भारत में भी लगभग उतनी ही संख्या में मौतों को दर्ज नहीं किया जा रहा। वह यह भी सोचते हैं कि संक्रमित हुए लोगों की वर्तमान लगभग 7 लाख की संख्या निश्चित तौर पर वास्तविक संख्या का कुछ हिस्सा ही है। 

टैस्ट किटों तथा अन्य जांच प्रणालियों के बारे में डा. आशीष झा का कहना है कि इस बात की कोई सीमा नहीं है कि कोई देश कितनी अधिक टैस्टिंग कर सकता है यदि वह रीजैंट्स तथा अन्य आपूर्तियों में निवेश करता है। यह बहुत बड़ी संख्या में टैस्ट कर सकता है। भारत में अभी तक लगभग एक करोड़ टैस्ट हुए हैं। अमरीका ने लगभग 4 करोड़, रूस ने 2 करोड़ टैस्ट किए हैं। टैसिं्टग की क्षमता के मामले में भारत रूस से पीछे क्यों? वह समझते हैं कि यह एक प्राथमिकता का मामला है। यदि भारत ने कल यह निर्णय लिया कि वह परीक्षण करने के लिए पर्याप्त वित्तीय तथा बौद्धिक संसाधनों का निवेश करने जा रहा है तो उन्हें पता है कि भारत के बारे में ऐसा कुछ भी नहीं है जो उन्हें लगता है कि वह ऐसा कर सकता है क्योंकि इसके पास क्षमता नहीं है। 

‘हर्ड थ्यूरी’ के बारे में उन्होंने कहा कि हर्ड इम्युनिटी का उद्देश्य यह है कि यदि एक बार 60 से 70 प्रतिशत जनसंख्या बीमारी के प्रति प्रतिरक्षा तंत्र विकसित कर लेती है तो वायरस और अधिक नहीं फैल सकता, यह धीमा हो जाएगा और पूरी तरह से समाप्त नहीं होगा लेकिन एक बहुत छोटी समस्या बना रह जाएगा। तो प्रश्न यह है कि 60 से 70 प्रतिशत रोग-प्रतिरोधक क्षमता कैसे प्राप्त की जाएगी? इसका सर्वश्रेष्ठ तरीका टीके के माध्यम से है। डा. आशीष के अनुसार भारत की 60 से 70 प्रतिशत जनसंख्या संक्रमित होगी, विचार यह है कि लगभग एक अरब लोग वायरस से संक्रमित होंगे। यदि आप एक प्रतिशत की मृत्यु दर लेते हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि इससे एक करोड़ लोग मरेंगे तथा करोड़ों की संख्या में लोग बहुत बीमार हो जाएंगे और अगले वर्ष तक अस्पतालों में पांव रखने की जगह नहीं होगी। यह विनाशकारी होगा। 

लाखों लोगों के मरने तथा बड़ी संख्या में अत्यंत बीमार होने के कारण अर्थव्यवस्था पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी। भारत में बाकी देशों के मुकाबले काफी सख्ती से लॉकडाऊन लागू किए गए, क्या इसका काफी प्रभाव होगा, इस बारे डाक्टर आशीष ने कहा कि हमें यह याद रखना चाहिए कि पूरी रणनीति लोगों को दवा के आने तक बचाए रखने की है। उन्हें विश्वास है कि 2021 में किसी समय भारत के लिए दवा उपलब्ध हो जाएगी और उनके अनुमान अनुसार यह 2021 के अद्र्ध में उपलब्ध होगी। मगर इसे लेकर काफी अनिश्चितता है। मान लेते हैं कि ऐसा जुलाई 2021 में होगा। 

दवा या टीके के उपलब्ध होने में अभी एक वर्ष बाकी है। लॉकडाऊन सारा वर्ष नहीं लगाया जा सकता, ऐसा आर्थिक तथा सामाजिक रूप से संभव नहीं है। लॉकडाऊन का इस्तेमाल टैस्टिंग को बढ़ाने, भारत के लोगों को यह समझाने के लिए कि जब लॉकडाऊन समाप्त होगा तो क्या होगा, कैसे हमारा व्यवहार बदलेगा बताने के लिए किया जाना चाहिए। नीतियां बनाई जानी और अस्पतालों की क्षमता में वृद्धि की जानी चाहिए फिर जब आप अनलॉक करेंगे तो आपके पास मामलों में एकदम आने वाली तेजी से निपटने की क्षमता होगी, जैसा कि हम इस समय देख रहे हैं। 

यह पूछने पर कि भारत में वायरस कब शीर्ष पर होगा और फिर नीचे आएगा और वह सरकार को क्या सलाह देना चाहेंगे, डा. आशीष ने कहा कि भारतीय नीति निर्माताओं को जो बात समझनी चाहिए वह यह कि भारत में महामारी अभी प्रारंभिक चरण में है। अभी तक भारत की एक प्रतिशत से भी कम जनसंख्या इससे संक्रमित है। यह संख्या 60 से 70 प्रतिशत लोगों के संक्रमित होने तक बढ़ेगी जो एक अरब लोग बनते हैं।  मगर उन्हें आशा है कि ऐसा नहीं होगा। ऐसी कई चीजें हैं जो भारत वायरस के फैलाव को कम करने के लिए कर सकता है। इसका उदाहरण है कि लोगों ने मास्क पहनना शुरू कर दिया है, बाहर भी और भीतरी जगहों पर भी, दूसरे हमने हॉटस्पॉट्स पर ध्यान दिया है। हर बार जब आप संक्रमण में तेजी से वृद्धि देखते हैं आपको टैस्टिंग, ट्रेसिंग तथा आइसोलेशन रणनीति पर अमल करने की जरूरत होगी। इसने भारत में कई जगहों पर काम किया है- जैसे कि केरल तथा मुम्बई में धारावी। यदि भारत यह सब कुछ करता है, मास्क, टैस्टिंग, बड़े एकत्रों से छुटकारा तो वह समझते हैं कि देश में वायरस को फैलने से रोकने के लिए भारत अच्छी स्थिति में होगा।-नारायण लक्ष्मण

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