सैकंड हैंड

Edited By ,Updated: 03 Apr, 2024 06:06 AM

second hand

सैकंड हैंड शब्द सुनते ही सामान्य तौर पर हम सभी के मन में पहली तस्वीर जो आती है, वह किसी वस्तु की होती है। ज्यादा से ज्यादा उसके बाद भी आप विचारेंगे, तब भी आपके दिमाग में किसी वस्तु या उससे संबंधित स्थान के विचार ही आएंगे। किंतु आज अपने सोचने की...

सैकंड हैंड शब्द सुनते ही सामान्य तौर पर हम सभी के मन में पहली तस्वीर जो आती है, वह किसी वस्तु की होती है। ज्यादा से ज्यादा उसके बाद भी आप विचारेंगे, तब भी आपके दिमाग में किसी वस्तु या उससे संबंधित स्थान के विचार ही आएंगे। किंतु आज अपने सोचने की क्षमता को बढ़ाएं क्योंकि अब आपकी विचारधारा में परिवर्तन का समय आ गया है। हमारे समाज में अब वस्तुएं ही नहीं, इंसान भी...। 

माफ कीजिएगा, महिला अर्थात स्त्री भी सैकंड हैंड होती है। अगर आप यह सुनकर कुछ हैरान-परेशान हैं या तर्क-वितर्क कर रहे हैं तो मैं आपकी इस समस्या को यहीं खत्म करने का प्रयास करती हूं। हमारे प्यारे देश में जहां महिला को देवी का दर्जा देने की बात कही जाती है, वहीं उसी देश में उसे सैकंड हैंड होने का टैग भी दिया जाता है। यदि आप नहीं मानते हैं तो आपको बताना चाहूंगी मुम्बई के एक केस के बारे में, जहां पति द्वारा पत्नी को सैकंड हैंड कहे जाने की बात सामने आई है। 

सारा मामला इस प्रकार है कि मुम्बई के एक नव-विवाहित जोड़े के नेपाल में हनीमून के दौरान पति ने उसे ‘सैकंड हैंड’ कहकर प्रताडि़त किया क्योंकि उसकी पिछली सगाई टूट चुकी थी। बाद में अमरीका में पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके साथ शारीरिक और भावनात्मक शोषण किया गया। पति ने उसके चरित्र पर लांछन लगाए और उसके अपने भाइयों व अन्य पुरुषों के साथ अवैध संबंध रखने का आरोप लगाया। इस मामले में जनवरी 2023 में ट्रायल कोर्ट ने पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया और पति को 3 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया। इसके अतिरिक्त, अदालत ने पत्नी को दादर में न्यूनतम 1,000 वर्ग फुट आवासीय स्थान या 75,000 रुपए का मासिक किराया देने का प्रावधान किया। पति को पत्नी के सारे गहने वापस करने और 1,50,000 रुपए का मासिक गुजारा भत्ता देने का भी आदेश दिया गया। इसके बाद पति ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे कोर्ट ने अस्वीकार्य करते हुए ट्रायल कोर्ट का फैसला बरकरार रखा। 

टू फिंगर टैस्ट, तीन तलाक जैसे अधिकतर फैसलों को देखकर ऐसा लगता है, जैसे हमारे देश का कानून और न्यायालयों द्वारा यह प्रयास किया जाता है कि भारतीय समाज में महिलाओं को भी बराबर का सम्मान मिले। किंतु हमारे समाज में रहने वाले पुरुष और साथ ही साथ महिलाओं का भी एक श्रेणी यह नहीं सोचती कि महिला भी इंसान है। हमारे समाज में महिलाओं को इंसान न समझने का जो कार्य किया जाता है, वह महिला को अपमान और अपराध का शिकार बना देता है। 

भारतीय समाज की स्थिति आज ऐसी हो चली है कि पढ़े-लिखे बच्चों में, जो पुरुष प्रधान समाज के भविष्य के पुरुष हैं, वह अभी से महिला वर्ग को दबाने का कार्य करने लगे हैं। अपनी बहनों को बाहर न निकलने देने की विचारधारा, दूसरों की बहनों के लिए बलात्कार जैसे शब्दों का प्रयोग हो या फिर जिस लड़की से प्रेम का कथन कहते हैं, उसे ही धमकाना आदि कार्य आज के किशोरों में देखने को मिल रहे हैं, जिन्हें समझ पाना हमारे लिए मुश्किल हो रहा है या हम आंखों पर पट्टी बांधकर तमाशा देख रहे हैं। पुरुष प्रधान समाज में किशोर, युवा, बुजुर्ग कोई भी हो, अगर वह अपनी विचारधारा में महिलाओं के लिए बदलाव नहीं लाएगा तो आप हमारे समाज और देश का विकास भूल ही जाइए। जब आधी आबादी को हम बस जानवर समझ उन्हें अपने उपभोग की वस्तु बनाकर रखेंगे तो देश का विकास कैसे होगा? हमारा सम्पूर्ण समय तो अपनी ही आधी आबादी को बर्बाद करने में गुजर रहा है। 

यदि आप देश हित के बारे में नहीं सोचते तो स्वयं के हित पर भी विचार करें, तो आज के समाज में महिलाओं को वस्तु समझने की विचारधारा को त्याग देना ही उचित होगा। हमें अपने आने वाले युवकों को सही शिक्षा देनी होगी, नहीं तो भारतीय संस्कृति का समापन दूर नहीं।-राखी सरोज 

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