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‘अच्छे दिन’ का शोर निरंतर जारी रहेगा

Edited By ,Updated: 19 Oct, 2020 02:14 AM

the noise of  good days  will continue unabated

जटिल समस्याओं को अनेकों दिमागों की जरूरत होती है। नेतृत्व महत्वपूर्ण है मगर ज्यादातर दिशात्मकता के तौर पर। समाधान उन लोगों द्वारा प्रस्तुत किए जाने की जरूरत है जो इसे लागू कर रहे हैं न कि उन लोगों के लिए जो निर्देश देते हैं। यदि इसे

जटिल समस्याओं को अनेकों दिमागों की जरूरत होती है। नेतृत्व महत्वपूर्ण है मगर ज्यादातर दिशात्मकता के तौर पर। समाधान उन लोगों द्वारा प्रस्तुत किए जाने की जरूरत है जो इसे लागू कर रहे हैं न कि उन लोगों के लिए जो निर्देश देते हैं। यदि इसे औंधा कर दिया जाए तो तरक्की नहीं हो सकती और इसके उल्ट हमें बाधाएं देखने को मिलेंगी। 

समाधानों को नेतृत्व के स्तर से नीचे उत्पन्न किया जाता है। इसलिए आवश्यक है कि अधिकार तथा सत्ता का कुछ हस्तांतरण किया जाए। मगर हमारे देश में ऐसा नहीं है। हमारे विशाल तथा जटिल राष्ट्र का नेतृत्व इस तरह से केंद्रीकृत है कि ऐसा इतिहास में कभी भी नहीं था। ऐसा दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समांतर है मगर 1970 का समय कुछ अलग था। 

मंत्रिमंडल में ज्यादातर महत्वपूर्ण पद उन लोगों से भरे जाते हैं जिन्होंने कभी एक चुनाव तक नहीं जीता। वित्त मंत्री, विदेश मंत्री, रेलवे, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री सभी ही चुनाव जीत कर नहीं आए। यह लोग अपनी निजी राजनीतिक प्रसिद्धि के तौर पर ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के कारण ही अपने मंत्री पद पर बैठे हैं। इसीलिए यह कभी भी मोदी की अवज्ञा नहीं कर सकते हैं और ये लोग वैसा ही कार्य करते हैं जैसा उन्हें मोदी कहते हैं और यही एक कारण है कि उन्हें चुना गया है तथा उनके पदों पर बिठाया गया है। यदि किसी क्षण वे किसी सवाल की उल्लंघना या उसे नकारते हैं तो वह किसी दूसरे के द्वारा बदल दिए जाते हैं जो अपना मुंह अपने पद को पाने के लिए बंद रखेगा। 

देश में अधिकार का हस्तांतरण दिखाई नहीं देता और न ही जवाबदेही दिखाई देती है। यदि किसी वक्त ऐसे हालातों में स्थितियां गलत या बिगड़ जाती हैं तो नेता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता और न ही उसका नाम लिया जा सकता है। ऐसा मान लिया जाता है कि वह सही था और समाधान उसके व्यवहार को ठीक करने में नहीं बल्कि किसी और कारण में है। कुछ सप्ताह पूर्व ऑनलाइन पब्लिकेशन ‘द प्रिंट’ में एक हैडलाइन देखी गई जिसमें कहा गया कि मोदी सरकार की योजना वैश्विक सूची में भारत का रैंक बढ़ाने के लिए छवि को दुरुस्त करने हेतु मीडिया बमबारी करने की है। 

ऐसी रिपोर्टें आईं कि सरकार एक बहुत बड़ा प्रचार चलाकर कुछ 30 वैश्विक सूचकांक पर भारत की रैंकिंग को और सुधारने की योजना बना रही है। यह एक योजना के तहत दुरुस्त करने की प्रक्रिया थी। यह ऐसे सूचकांक हैं जो धार्मिक, आॢथक, राजनीतिक, मीडिया स्वतंत्रता, कानून का नियम, आतंकवाद, नवीनीकरण इत्यादि को जांचते हैं। अपनी अनुभूति प्रकट करने के लिए या तो आंकड़े इकट्ठे  किए जाते हैं या वैश्विक विशेषज्ञों को कहा जाता है। उसके बाद देश एक स्कोर या फिर रेटिंग देते हैं। 

इन्हें ऐसी इकाइयों द्वारा संकलित किया जाता है जो वल्र्ड बैंक या फिर संयुक्त राष्ट्र  की तरह बहुपक्षीय होती हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि भारत अपनी खराब रेटिंग को मीडिया कैंपेन के माध्यम से किस तरह बेहतर कर पाएगा।  मिसाल के तौर पर भारत विश्व प्रैस फ्रीडम सूचकांक में 142वें स्थान पर है। 2019 में यह 140वें तथा 2018 में 138वें स्थान पर था। गिरावट का मुख्य कारण इसका पत्रकारों के खिलाफ ङ्क्षहसा तथा कश्मीर में इंटरनैट शटडाऊन था। यह ऐसी उद्देश्य वाली चीजें हैं जिन्हें मापा जा सकता है। इन्हें प्रचार के माध्यम से सही नहीं किया जा सकता। इस वर्ष भारत ने कश्मीर में नई मीडिया पॉलिसी को जारी किया है जिसने उस राज्य में मीडिया की सभी प्रकार की स्वतंत्रता का गला घोंटा है। 

इस सप्ताह ऐसे समाचार भी आए कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में बंगलादेश  प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से भारत को पछाड़ देगा। बंगलादेश भारत की तुलना में बहुत तेजी से वृद्धि कर रहा है। वह किसी भी समय हमें पछाड़ सकता है। कुछ ही वर्ष पूर्व हम चीन तथा अमरीका के साथ प्रतिस्पर्धा के बारे में बात करते थे। इस समय हमें पहले बंगलादेश के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी। यह ऐसी बात नहीं जिसका वायदा किया गया था। मीडिया का सहारा लेकर ऐसी बातों को हम किस तरह सुधार सकते हैं? शायद नहीं। क्योंकि भारत के एक महान नेता ने आदेश दिया है तो इसे जरूर होना होगा। गिरावट निरंतर जारी रहेगी और ‘अच्छे दिन’ का शोर निरंतर जारी रहेगा।-आकार पटेल

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