एक अच्छे पड़ोसी की ‘पहचान’ क्या है

Edited By ,Updated: 03 Nov, 2019 03:44 AM

what is the  identity  of a good neighbor

अगर मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो उसकी कई सामाजिक जिम्मेदारियां भी हैं। खानदान और परिवार तो उसे उसके जन्म के साथ ही रिश्तों की शक्ल में मिल जाते हैं लेकिन मित्र, साथी, पड़ोसी वगैरह समय के साथ-साथ अक्सर बदलते भी रहते हैं और कभी-कभार उन्हीं के साथ...

अगर मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो उसकी कई सामाजिक जिम्मेदारियां भी हैं। खानदान और परिवार तो उसे उसके जन्म के साथ ही रिश्तों की शक्ल में मिल जाते हैं लेकिन मित्र, साथी, पड़ोसी वगैरह समय के साथ-साथ अक्सर बदलते भी रहते हैं और कभी-कभार उन्हीं के साथ पूरी जिंदगी बीत जाती है और ऐसे लोग परिवार से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाते हैं। आजकल की व्यस्त जिंदगी में लोगों के पास वक्त की कमी है। इसके कारण रिश्तों की गर्मजोशी भी कम होती जा रही है। लोग आजकल अपने आप में इतने मशगूल रहते हैं कि उन्हें आस-पास अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों तक का एहसास नहीं रहता। 

अक्सर हम व्यस्तता के कारण पारिवारिक जिंदगी के साथ-साथ सामाजिक जिंदगी को भी प्राथमिकता देना बंद कर देते हैं जो रिश्तों में दूरियां पैदा करने का काम करती है। अगर इंसान अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों पर बराबर ध्यान दे तो सामाजिक रिश्तों की बुनियाद पर सामाजिक सद्भाव का बेहतरीन ढांचा तैयार किया जा सकता है। इन सामाजिक रिश्तों की शुरूआत अच्छे पड़ोसी बनकर की जा सकती है। अच्छा पड़ोसी परिवार के किसी भी रिश्तों से कहीं भी कमतर नहीं होता क्योंकि किसी भी अनहोनी पर दूर रह रहे रिश्तेदारों की फौज बाद में आती है, पड़ोसी सबसे पहले हाजिर मिलता है। बशर्ते आपने उसके साथ एक बेहतरीनपड़ोसी के रिश्ते को बनाया भी हो और कायम भी रखा हो। 

इस्लाम में पड़ोसी के महत्व को कुरान से भी साबित किया गया
इस्लाम में पड़ोसी के महत्व को कुरान से भी साबित किया गया है। सफर के दौरान सहयात्री भी पड़ोसी का दर्जा रखता है और उसके भी हुकूक तय कर दिए गए हैं। पड़ोसी के साथ अच्छे व्यवहार का विशेष रूप से आदेश है। पवित्र कुरान के अनुसार- ‘और लोगों से बेरुखी न करें।’  (अल कुरान, 31:18) न केवल निकटतम पड़ोसी के साथ बल्कि दूर वाले पड़ोसी के साथ भी अच्छे व्यवहार की ताकीद आई है। कुरान के अनुसार ‘और अच्छा व्यवहार करते रहो माता-पिता के साथ, सगे-संबंधियों के साथ, अबलाओं के साथ, दीन-दुखियों के साथ, निकटतम और दूर के पड़ोसियों के साथ भी-’ (अल कुरआन, 4:36) पड़ोसी के साथ अच्छा व्यवहार करने के संबंध में इस ईश्वरीय आदेश के महत्व को पैगम्बर मोहम्मद साहब ने भी कई तरह से समझाया है। ऐसा नहीं कि उन्होंने इसे सिर्फ समझाया हो बल्कि आपने खुद भी उस पर अमल करके बताया। 

पड़ोसी से प्रेम न करे तो ईमान तक छिन जाता
हदीस शरीफ में उल्लिखित एक बार का वाक्या है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब अपने मित्रों के साथ किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। आपने अपने मित्रों से फरमाया-‘अल्लाह की कसम, वह मोमिन नहीं! अल्लाह की कसम, वह मोमिन नहीं! अल्लाह की कसम, वह मोमिन नहीं! मोहम्मद साहब ने तीन बार इतना बल देकर कहा तो मित्र सहाबियों ने पूछा ‘ए अल्लाह के रसूल कौन?’ आपने फरमाया- ‘वह जिसका पड़ोसी उसकी शरारतों से सुरक्षित न हो।’ 

एक अवसर पर आपने फरमाया- ‘तुममें कोई मोमिन नहीं होगा जब तक अपने पड़ोसी के लिए भी वही पसंद नहीं करे जो अपने लिए पसंद करता है।’ अर्थात, पड़ोसी से प्रेम न करे तो ईमान तक छिन जाने का खतरा रहता है। एक और स्थान पर आपने फरमाया- ‘जिसको यह प्रिय हो कि अल्लाह और उसका रसूल उससे प्रेम करे या जिसका अल्लाह और उसके रसूल से प्रेम का दावा हो, तो उसको चाहिए कि वह अपने पड़ोसी के साथ प्रेम करें और उसका हक अदा करे।’ अर्थात जो पड़ोसी से प्रेम नहीं करता, उसका अल्लाह और रसूल से प्रेम का दावा भी झूठा है और अल्लाह और रसूल से प्रेम की आशा रखना भी एक भ्रम है। 

‘कयामत के दिन ईश्वर के न्यायालय में पड़ोसी उपस्थित होंगे
मोहम्मद साहब ने फरमाया, ‘कयामत के दिन ईश्वर के न्यायालय में सबसे पहले दो वादी उपस्थित होंगे जो पड़ोसी होंगे। उनसे एक-दूसरे के संबंध में पूछा जाएगा। अब मुसलमानों में यह सवाल किया जा सकता है कि क्या आप कुरान, सुन्नत, हदीस के पैमाने पर सच्चे मुसलमान हैं या फिर केवल नाम भर रख लेने से आप मुसलमान हो गए हैं? आज के हिंसक दौर में आम मुसलमानों के व्यवहार से क्या इस बात की कल्पना की जा सकती है कि वह अपने नबी की सीख पर अमल करे। एक और वाक्या की बुनियाद पर आम मुसलमान इस बात पर आत्मचिंतन करें। एक बार पैगम्बर मोहम्मद साहब के साथी ने आपसे शिकायत की कि ‘ए अल्लाह के रसूल, मेरा पड़ोसी मुझे सताता है।’ आपने फरमाया- ‘धैर्य से काम लो।’ इसके कुछ दिनों बाद वह फिर आया और दोबारा शिकायत की। 

आपने फरमाया ‘जाकर तुम अपने घर का सामान निकालकर सड़क पर डाल दो।’ साथी ने ऐसा ही किया। आने-जाने वाले उनसे पूछते तो वह उनसे सारी बातें बयान कर देते। इस पर लोगों ने उन सहाबी के पड़ोसी को आड़े हाथों लिया तो उसे बड़ी शर्म का एहसास हुआ। वह अपने पड़ोसी को मना कर दोबारा घर में वापस लाया और वादा किया कि अब वह उसे न सताएगा। अर्थात पैगम्बर ने झगड़े-फसाद के बजाय धैर्य की शिक्षा दी। उन्होंने आम गैर-मुस्लिमों के साथ इंसानी बुनियादों पर बेहतर नैतिकता और भाईचारे के व्यवहार की हिदायत दी। 

यही नहीं, किसी की बीमारी के वक्त उसका हाल पूछना भी नबी की सुन्नत है। हजरत मोहम्मद साहब के खुद एक यहूदी नौजवान जो आपकी खिदमत करता था और उन पर कूड़ा फैंकने वाली वृद्धा की अयादत के लिए जाने का वाक्या मिसाल है। गैर-मुस्लिम भाई इन घटनाओं को पढ़कर चकित होकर सोच सकते हैं कि क्या सचमुच एक मुसलमान को इस्लाम धर्म में इतनी सहनशीलता और मित्रता की ताकीद है और क्या वास्तव में वह ऐसा कर सकता है? 

क्योंकि उसने तो उन सिरफिरे लोगों को मुसलमान समझ लिया है जो धर्म के नाम पर हिंसा को न सिर्फ जायज ठहराते फिरते हैं बल्कि वैसा ही करते भी हैं। कट्टरपंथी मुसलमानों के अमल की बुनियाद पर गैर-मुस्लिम भाइयों को यह भ्रम है कि पड़ोसी का अर्थ केवल मुसलमान पड़ोसी से है, गैर-मुस्लिम पड़ोसी से नहीं। उनके इस भ्रम को दूर करने के लिए कई घटनाओं में से एक ही घटना लिख देना पर्याप्त होगा। एक बार कुछ फल पैगम्बर मोहम्मद साहब के पास उपहारस्वरूप आए। आपने सबसे पहले उनमें से एक हिस्सा अपने यहूदी पड़ोसी को भेजा और बाकी हिस्सा अपने घर के लोगों को दिया। क्या सच्चे मुसलमानों से ऐसे धैर्य, ऐसे प्रेम, ऐसे रिश्तों को सहेज कर रखने वाली भावना की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए? 

नि:संदेह इस्लाम धर्म और अल्लाह के रसूल ने ऐसी ही ताकीद फरमाई है और इस्लाम के सच्चे अनुयायी इसके अनुसार अमल भी करते हैं। अब भी ऐसी पवित्र भावनाओं वाले लोग इस्लाम के अनुयायियों में मौजूद हैं तो इन बातों पर पूरी तरह अमल करते हैं। हां, आज का अधिकांश मुसमलान राह चलते अनजाने में लगे धक्के पर मरने-मारने पर उतारू हो जाता है। क्या सच्चे मुसलमान की यही परिभाषा है? नहीं, इस्लाम को मानने वाला ऐसा नहीं हो सकता। खासकर बेकसूरों का कत्ल करने वाले इस पैमाने पर कैसे खुद को मुसलमान साबित करेंगे?-सैय्यद सलमान                      

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