चीनी अगरबत्तियों ने चौपट किया भारतीय कारोबार, अब सरकार करेगी उपाय

Edited By Supreet Kaur,Updated: 29 Aug, 2019 05:00 PM

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घर में हर रोज पूजा-अर्चना के लिए अगरबत्ती का प्रयोग होता है। धार्मिक अनुष्ठान भी अगरबत्तियों के बिना पूरे नहीं हैं। लेकिन आयात पर भारी छूट ने देसी अगरबत्ती उद्योग की कमर तोड़ दी है। ऐसे में देश में उत्पादित होने वाली अगरबत्तियों को खरीदार नहीं मिल...

नई दिल्लीः घर में हर रोज पूजा-अर्चना के लिए अगरबत्ती का प्रयोग होता है। धार्मिक अनुष्ठान भी अगरबत्तियों के बिना पूरे नहीं हैं। लेकिन आयात पर भारी छूट ने देसी अगरबत्ती उद्योग की कमर तोड़ दी है। ऐसे में देश में उत्पादित होने वाली अगरबत्तियों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार देसी अगरबत्ती उद्योग को पटरी पर लाने के लिए विचार कर रही है।
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सालाना आयात में बढ़ौतरी
घरेलू अगरबत्ती उद्योग चीन और वियतनाम से तकरीबन 800 करोड़ रुपए की राउंड बैंबू स्टिक और बगैर परफ्यूम वाली अगरबत्तियां आयात कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में इंडो-आसियान मुक्त व्यापार समझौते के तहत बिना खुशबू वाली अगरबत्ती के आयात शुल्क में भारी कटौती हुई है। 2011 में अगरबत्ती पर आयात ड्यूटी 30 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी और 2018 में 10 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दी गई थी। इससे बिना खुशबू वाली अगरबत्ती का आयात कई गुना बढ़ गया। 2009 में अगरबत्ती का सालाना आयात 31 करोड़ रुपए था, जो 2018 तक बढ़कर 540 करोड़ रुपए हो गया। चीन से 2011 में 1.7 करोड़ रुपए का आयात हुआ था, जो 2018 में बढ़कर 212 करोड़ रुपए तक पहुंच गया।
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संकट में भारतीय कारोबार
2009 से 2019 के बीच अगरबत्ती की खपत तेजी से बढ़ी, लेकिन देश का अगरबत्ती उद्योग हाशिए पर चला गया। 2009 में रोजाना 1,245 टन अगरबत्ती की खपत होती थी, जो 2019 तक बढ़कर 1,397 टन हो गई। 2008 में भारतीय परफ्यूमर्स की रॉ अगरबत्ती आयात पर निर्भरता महज 2 फीसदी थी, जो अब 80 फीसदी तक पहुंच गई है। इस कारोबार से जुड़े माइक्रो, स्मॉल ऐंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) कीमतों के मोर्चे पर भी संकट से जूझ रहे हैं। पहले अगरबत्ती की कीमत 70 रुपये किलो थी, जो अब घटकर 48 रुपए किलो पर आ गई है।
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रोजगार में कमी
खादी ऐंड विलेज इंडस्ट्रीज कमीशन (KVIC) के चेयरमैन वी के सक्सेना ने इस संकट की पुष्टि की है। उन्होंने बताया, ‘हमारी 25 फीसदी यूनिटें बंद हो चुकी हैं। हमने 2016-17 में 2,800 प्रॉजेक्ट्स लगाए थे, जबकि 2018-19 में सिर्फ 397 लगाए। इससे जमीनी स्तर पर रोजगार के अवसर भी कम हुए। हम मौजूदा स्थिति से काफी चिंतित हैं और सरकार से इस मामले जल्द दखल देने की मांग की है।’ 

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