Edited By pooja verma,Updated: 11 Sep, 2018 02:07 PM
कैंसर के जिन मरीजों का इलाज सर्जरी के जरिये नहीं हो सकता उनके लिए पी.जी.आई. के रेडियो डायग्नोसिस विभाग में ऐसी मशीन इंस्टाल की गई है जिससे उनका इलाज हो सकेगा।
चंडीगढ़ (साजन): कैंसर के जिन मरीजों का इलाज सर्जरी के जरिये नहीं हो सकता उनके लिए पी.जी.आई. के रेडियो डायग्नोसिस विभाग में ऐसी मशीन इंस्टाल की गई है जिससे उनका इलाज हो सकेगा। इस मशीन से क्रायो-एबलेशन के जरिये ट्यूमर का इलाज किया जाएगा। देश में कहीं भी इस तरह की मशीन इंस्टाल नहीं है और इस तरह की पहली मशीन है।
विभाग अब इस तरह के ट्रीटमैंट के लिए मशीन के जरिये पूरी तरह तैयार हो चुका है। विभाग में अब रेडियो फ्रीक्वैंसी एबलेशन, माइक्रोवेव एबलेशन, इररिवर्सिबल इलेक्ट्रो-पोरेशन, हाई इंटेंसिटी फोकस्ड अल्ट्रा-साऊंड के बाद अब क्रॉयो-एबलेशन सुविधा भी एक ही छत के नीचे शुरू हो गई है। विभाग के हैड प्रो. एनके खंडेलवाल ने बताया कि एम.डी. एंडरसन कैंसर सैंटर (यू.एस.ए.) में इस तरह की सुविधा है।
क्रायो-एबलेशन दर्द रहित तकनीक, आर्गन सुन्न हो जाते हैं
क्रायो-एबलेशन वह प्रोसैस है जिसमें एक्सट्रीम कोल्ड के जरिए टिस्यू डिस्ट्रॉय किया जाता है। क्रायो-एबलेशन खोखली नीडल्स के जरिए किया जाता है जिसमें कूल्ड (थर्मली कंडक्टिव) फ्लुइड को शरीर में सर्कुलेट किया जाता है। इसमें क्रायो-प्रोब्स को टारगेट के पास ऐसे पोजीशन किया जाता है कि फ्रीजिंग प्रोसैस डिजीज टिश्यू को डिस्ट्रॉय कर देता है।
कोल्ड की वजह से खून जमने से डिजीज टिश्यू को ब्लड फ्लो नहीं हो पाता जिससे सैल की डैथ हो जाती है। किडनी, लंग्स बोन और लिवर के कैंसर में नीडल्स को सीटी स्कैन और अल्ट्रा-साऊंड के जरिये शरीर में टारगेट साइट पर घुसाया जाता है। 30 मिनट तक क्रॉयो थेरेपी की जाती है। इस टैक्नीक का यह फायदा है कि यह दर्द रहित टैक्नीक है क्योंकि कम तापमान की वजह से वह आर्गन सुन्न हो जाते हैं जहां यह तकनीक इस्तेमाल की जाती है।
तकनीक में तापमान शून्य से 150 डिग्री तक नीचे रहता है। इस तकनीक को लोकल एनेस्थीसिया से ही किया जा सकता है। लंग्स, किडनी, लिवर व बोन के कैंसर को डा. नवीन कालरा व इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्टों की टीम के डा. मनदीप कंग, डा. अनुपम लाल, डा. महेश प्रकाश, डा. आनंदिता, डा. अजय, डा. उज्जवल और डा. श्रीधर, डा. फ्रेकोयस एच कोरनेलिस जो सोरबोन, यूनिवर्सिटी पैरिस (फ्रांस) में रेडियो इंटरवैंशनल रेडियोलॉजिस्ट हैं ने इस तकनीक को प्लान करने और डाक्टरों को गाइड करने में अहम भूमिका निभाई है।