Edited By bhavita joshi,Updated: 31 Dec, 2018 12:44 PM
नॉर्थ इंडिया में चंडीगढ़ पी.जी.आई. दिल्ली एम्स के बाद सबसे बड़ा मैडीकल इंस्टीच्यूट है, ऐसे में मरीजों को बेहतर इलाज देना हो या डाक्टरों को रिसर्च के लिए अच्छी सुविधाएं देना हो, इसके लिए संस्थान की ओर से हर साल कोई न कोई नया कदम उठाया जाता है।
चंडीगढ़(पॉल): नॉर्थ इंडिया में चंडीगढ़ पी.जी.आई. दिल्ली एम्स के बाद सबसे बड़ा मैडीकल इंस्टीच्यूट है, ऐसे में मरीजों को बेहतर इलाज देना हो या डाक्टरों को रिसर्च के लिए अच्छी सुविधाएं देना हो, इसके लिए संस्थान की ओर से हर साल कोई न कोई नया कदम उठाया जाता है। साल 2018 पी.जी.आई. को जहां कुछ नया देकर जा रहा है, वहीं कुछ ऐसे काम भी है जिनको लेकर पी.जी.आई. के हाथ निराशा ही लगी।
ये रही अचीवमैंट्स
- यूनियन मिनिस्ट्री ऑफ ह्यूमैन रिसोर्स डिवैल्पमैंट की ओर से जारी रैंकिंग में इस साल पी.जी.आई. को देश भर के चुनिंदा अस्पतालों में दूसरा स्थान मिला।
-सैंट्रल गवर्नमैंट इंस्टीच्यूट्स में भी पी.जी.आई. दूसरा स्थान पर रहा।
-एक बार फिर पी.जी.आई. को कायाकल्प अवॉर्ड के लिए 1.5 करोड़ मिले।
-पी.जी.आई. डिपार्टमैंट ऑफ ट्रांसफ्यूजन मैडीसन विभाग को इंटरनैशनल सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन फॉर द ईयर अवॉर्ड मिला।
-बेहतर काम करने के लिए पी.जी.आई. के ड्रग डी एडिक्शन सैंटर को आर्गेनाइजेशन ऑफ एक्सीलैंस ने नैशनल अवॉर्ड से नवाजा।
-देश में पहली बार पी.जी.आई. एडवांस कार्डियक सैंटर में दिल के रोगों के लिए लिए सस्पैक्ट गामा कैमरा (डी-सस्पैक्ट) मशीन इंस्टॉल की गई।
-इस साल रोडियो डायग्नोसिस विभाग में कैंसर के इलाज के लिए नई मशीन लगाई गई।
-ई.एन.टी. विभाग में एलर्जी वाले मरीजों के लिए अलग क्लीनिक खोला गया।
-इसी साल लीवर ट्रांसप्लांट के बाद महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया, जो संस्थान में इस तरह का पहला केस था।
-लीवर व किडनी ट्रांसप्लांट एक साथ करने में पी.जी.आई. ने सफलता हासिल की।
-पी.जी.आई. ने इस साल दो बेहतरीन स्टडी की, जिन्हें इंटरनैशनल जरनल में पब्लिश किया गया। पहली स्टडी स्ट्रोक्स डाटा को लेकर की गई थी, जबकि दूसरी स्टडी लीवर डिजीज के मरीजों में स्टेम सैल से इलाज को लेकर की गई।
-पी.जी.आई. ने इस साल अमेरिकन सोसायटी ऑफ क्लीनिकल ओनकोलॉजी के साथ एम.ओ.यू. साइन किया, जिससे कैंसर मरीजों को और बेहतर इलाज मिल सकेगा।
-पी.जी.आई. ने कोल इंडिया लिमिटेड के साथ थैलेसिमिया ट्रांसप्लांट के लिए 2 करोड़ का एम.ओ.यू. साइन किया।
इस साल भी अधूरे रह गए कई प्रोजैक्ट्स
-पिछले कई सालों से अटका 250 बैड का अस्पताल इस साल पूरा किया जाना था लेकिन इस बार भी वह पूरा नहीं हो सका।
-नर्सिंग स्टाफ की स्ट्राइक व कैंडल मार्च चर्चा में रही। स्टाफ एम.एस. को हटाए जाने की मांग कर रहा है।
-इसके साथ ही अपनी मांगों को लेकर पी.जी.आई. इंप्लाई यूनियन ने कई बार कैंडल मार्च निकाला। यही नहीं साल के आखिर में कैंडल मार्च दिल्ली के जंतर-मंतर तक जा पहुंचा।
-पी.जी.आई. के न्यूरोसाइंस व मदर केयर चाइल्ड सैंटर सिर्फ फाइलों तक ही सिमट कर रह गए, जिन्हें अब जनवरी में शुरू करने की बात कही गई है।
-इस साल पी.जी.आई. ऑपरेशन थिएटर में लगी आग की वजह से दूसरे ओ.टी. को भी काफी नुक्सान हुआ, जिसके कारण कई दिनों तक ओ.टी. बंद रही।
-पिछले दो सालों की तरह इस बार भी पी.जी.आई. अपनी खुद की फार्मेसी शुरू नहीं कर पाया।
-इस साल पी.जी.आई. में पी.एच.डी. स्कॉलर ने एक डाक्टर पर सैक्शुअल हरासमैंट का आरोप लगाया।
जी.एम.सी.एच. और जी.एम.एस.एच. के लिए ऐसा रहा साल 2018
-जी.एम.एस.एच.-16 को नई प्रशासनिक इमारत मिली।
-साइनस के मरीजों इलाज के लिए जी.एम.एस.एच. में रेयर सर्जरी कर नया इलाज तलाश गया।
-कई सालों बाद इस बार डेंगू व चिकनगुनिया का ग्राफ बेहद कम रहा।
-जी.एम.सी.एच.-32 द्वारा बनाया जा रहा मैंटल हैल्थ इंस्टीच्यूट इस बार भी पूरा नहीं हो पाया।
-पी.एस.पी. के इलाज के लिए दुनिया में पहली बार जी.एम.सी.एच. के डा. नितिश सावल ने नया इलाज खोजा।
-जी.एम.सी.एच. में रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए रिसर्च सैल का गठन हुआ।