Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jun, 2024 11:48 AM
![pachnada](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2024_6image_10_02_170278474pachnada-ll.jpg)
नदियां किसी भी देश की भूमि रूपी शरीर के लिए नसों का काम करती हैं। इनसे हमारी कई जरूरतें पूरी होती हैं। ज्यादातर मानव सभ्यताओं का विकास भी नदियों के किनारे ही हुआ है। कहा जाता है कि नदी अपना रास्ता खुद बनाती चलती है और जो भी चीज इसके रास्ते में आती...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Panchnad Rivers: नदियां किसी भी देश की भूमि रूपी शरीर के लिए नसों का काम करती हैं। इनसे हमारी कई जरूरतें पूरी होती हैं। ज्यादातर मानव सभ्यताओं का विकास भी नदियों के किनारे ही हुआ है। कहा जाता है कि नदी अपना रास्ता खुद बनाती चलती है और जो भी चीज इसके रास्ते में आती है, ये उसे अपने साथ ले लेती है।
बहुत-सी जगहें ऐसी हैं, जहां दो या उससे अधिक नदियां आकर एक-दूसरे में मिलती हैं जैसे प्रयागराज में भारत की 3 प्रमुख नदियों- गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है लेकिन दुनिया में ऐसी इकलौती जगह है, जहां एक, दो या तीन नहीं, बल्कि पांच नदियां आपस में मिलती हैं।
यह जगह और कहीं नहीं हमारे ही देश में है। बुंदेलखंड के जालौन में पांच नदियों का संगम होता है और इसे ‘पंचनद’ के नाम से जाना जाता है। यहां जिन पांच नदियों का संगम होता है, उनमें यमुना, चम्बल, सिंध, पहुज, कुंवारी नदियां शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में जालौन और इटावा की सीमा पर स्थित यह स्थान प्रकृति का अनूठा उपहार और हिंदू धर्म से जुड़े लोगों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है।
वैसे तो साल भर में यहां सिर्फ एक बार मेला लगता है, लेकिन खास स्नानों के मौके पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
तीन नदियों का संगम होने से उत्तर प्रदेश का प्रयागराज संगम कहलाया, ठीक वैसे ही पांच नदियों के संगम के कारण पंचनद को महातीर्थराज के नाम से जाना जाता है।
![PunjabKesari Pachnada](https://static.punjabkesari.in/multimedia/10_04_223663677pachnada-1.jpg)
The Pandavas had spent their exile in Panchanad पंचनद में पांडवों ने काटा था अज्ञातवास
इतिहास के पन्नों में पंचनद से जुड़ी हुई कहानियां हैं, जिनका उल्लेख यहां आसपास मौजूद मंदिरों में मिलता है। पंचनद पर 3100 करोड़ रुपए की लागत से परियोजना भी प्रस्तावित है।
एक कहानी में बताया जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास का एक वर्ष इसी पंचनद के आसपास बिताया था। भीम ने इसी स्थान पर बकासुर का वध भी किया था।
यहां कार्तिक पूर्णिमा पर हर वर्ष एक ऐतिहासिक मेला लगता है। इस मेले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान से लाखों श्रद्धालुओं का जमघट लगता है। इस पंचनद के पास असीमित जल भंडार है।
पंचनद में पांच नदियों का संगम है, लेकिन इस संगम से जुड़ी एक कहानी है, जिसके आगे स्वयं ही गोस्वामी तुलसीदास को नतमस्तक होना पड़ा था। यहां के एक तपस्वी ऋषि की कहानी कुछ ऐसी थी कि उनकी ख्याति के चलते तुलसीदास ने उनकी परीक्षा लेनी की ठानी।
ऐसा माना जाता है कि जब तुलसीदास को प्यास लगी तो उन्होंने यहां पर किसी को पानी पिलाने के लिए आवाज दी। तब ऋषि मुचकुंद ने अपने कमंडल से पानी छोड़ा, जो कभी खत्म नहीं हुआ और फिर तुलसीदास जी को उनके इस प्रताप को स्वीकार करना पड़ा।
![PunjabKesari Pachnada](https://static.punjabkesari.in/multimedia/10_04_366480673pachnada-3.jpg)
Baba Saheb's Temple बाबा साहब का मंदिर
पांच नदियों के संगम पंचनद पर बाबा साहब का मंदिर है। बाबा साहब यानी मुचकुंद महाराज गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे और इतने सिद्ध संत थे कि उनकी व्यापक ख्याति के कारण स्वयं तुलसीदास भी उनसे मिलने पहुंचे थे।
इस बात का प्रमाण वर्तमान में जगम्मनपुर के राज परिवार के किले में मिलता है। यहां तुलसीदास की खड़ाऊं, माला और शंख सुरक्षित हैं जो सब वह प्रसन्न होकर मुचकुंद महाराज के पास छोड़ गए थे।
![PunjabKesari Pachnada](https://static.punjabkesari.in/multimedia/10_04_436951823pachnada-4.jpg)
Tapasthali in Panchanad पंचनद में तपस्थली
मंदिर की सेवा में लगे पुजारी और आसपास के लोगों का कहना है यहां पर मुचकुंद महाराज तपस्या के दौरान एक गुफा में विलीन हो गए थे और उनका शरीर आज तक किसी को नहीं मिला।
फिलहाल, मंदिर परिसर में उनके पैरों की पूजा की जाती है, लेकिन आसपास के ग्रामीणों का कहना है कि महाराज कभी-कभी दर्शन देते हैं। वहीं, यहां से संबंधित इतिहासकारों का मानना है कि मंदिर के 40 से 50 किलोमीटर के दायरे में कभी ओलावृष्टि नहीं होती।
How to Reach Panchanand पंचनद कैसे पहुंचें : उत्तर प्रदेश के जनपद जालौन के मुख्यालय उरई से पंचनद की दूरी 65 किलोमीटर है। यह स्थान रामपुरा ब्लॉक में पड़ता है, जहां से इसकी दूरी मात्र 15 किलोमीटर है।