Shradh story: 29 सितम्बर से 14 अक्तूबर तक रहेगा श्राद्ध पक्ष, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Sep, 2023 10:33 AM

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हमारे पितृ प्रसन्न होंगे, तभी हम समृद्ध होंगे, हमारा अस्तित्व पूर्वजों के कारण है। प्रति वर्ष आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिप्रदा से अमावस्या तक महालय यानी पितृपक्ष के श्राद्ध निर्धारित रहते हैं।

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Significance of shradh: हमारे पितृ प्रसन्न होंगे, तभी हम समृद्ध होंगे, हमारा अस्तित्व पूर्वजों के कारण है। प्रति वर्ष आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिप्रदा से अमावस्या तक महालय यानी पितृपक्ष के श्राद्ध निर्धारित रहते हैं। प्रोष्ठपदी पूर्णिमा से ही श्राद्ध प्रारंभ हो जाते हैं। गीता में 84 लाख योनियों का उल्लेख मिलता है, जबकि पितरों का आयु 1000 वर्ष मानी गई है। हमारे वेदों एवं शास्त्रों में स्पष्ट वर्णन मिलता है कि जो प्राणी अपने पितरों को प्रसन्न रखने के लिए तथा शांति के लिए कर्म नहीं करता, वह नाना प्रकार के कष्टों, ऋण, रोग, शोक, संतान कष्ट, राज कष्ट और भूमि कष्ट से पीड़ित होता है। अगर हमारे पूर्वज न होते तो हमारा अस्तित्व न होता। जब हमारे पितृ ही रुष्ठ होंगे तो हमारे देवता भी हमारे समीप नहीं आ सकते। मृतक का श्राद्ध करने वाले परिवार को स्वर्ग लोक, विष्णु लोक और ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष के इन 16 दिनों में यदि आप घर से बाहर हैं, तो फल, मिष्ठान का दान कर सकते हैं। अगर आप दक्षिण की तरफ मुंह करके अपने पितरों को याद कर आंसू बहा देंगे, तो भी पितृ तृप्त हो जाएंगे।

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Shradh paksh story महाभारत की कथा
महाभारत में प्रसंग आता है कि मृत्यु के उपरांत दानवीर कर्ण को चित्रगुप्त ने मोक्ष देने से इंकार कर दिया। तब कर्ण ने चित्रगुप्त से कहा कि मैंने अपनी सारी सम्पदा सदैव दान-पुण्य में ही समर्पित की है फिर मुझ पर यह कैसा ऋण शेष रह गया है ?

तब चित्रगुप्त ने कहा, ‘‘आपने देव ऋण और ऋषि ऋण तो चुकता कर दिया, आप पर पितृ ऋण शेष है। आपने अपने काल में सम्पदा एवं सोने का दान किया, अन्न दान नहीं किया। जब तक इस ऋण को नहीं उतारते, आपको मोक्ष मिलना असंभव है।’’

इसके बाद धर्मराज ने दानवीर कर्ण को व्यवस्था दी कि आप 16 दिनों के लिए पृथ्वी लोक पर जाकर अपने ज्ञात एव अज्ञात पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध तर्पण तथा पितृ दान विधिवत करके आएं, तभी आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी।

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दानवीर कर्ण ने वैसा ही किया, तब उन्हें मोक्ष मिला। किंवदंती है कि तभी से यह श्राद्ध प्रथा आरंभ हुई। श्राद्ध करते समय एक थाली पितरों को लिए, एक गाय के लिए, एक कुत्ते के लिए तथा कौवे के लिए निकालनी चाहिए, ताकि हमारे पूर्वज किसी भी रूप में आकर प्रसन्न होकर आशीष दें, जिससे कार्य सफल हों।

धर्मशास्त्रों में लिखा है कि पिंड रूप में कौओं को भोजन कराना चाहिए। ब्रह्मा जी ने सत्य, रज, तमो गुण के मिश्रण के साथ सृष्टि का निर्माण किया है। पक्षियों में कौवा तमो गुण से युक्त है। पुराणों में कौओं को यम का पक्षी माना गया है। इसकी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती, यह जीव दीर्घ जीवी है।

हम समृद्ध तभी होंगे जब पितृ प्रसन्न होंगे। श्राद्ध में शुभ कर्म जैसे नया कारोबार, मुंडन, नए घर में प्रवेश, नई गाड़ी खरीदना, मशीनरी खरीदना निषिद्ध है।  

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