Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Mar, 2024 08:53 AM
बात 17 फरवरी, 2002 की है। प्रख्यात जैन संत सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज विश्वासनगर में विराजमान थे। उनकी धर्म चर्चा चली तो उनका ज्ञान स्रोत निम्न शब्दों में फूट पड़ा- आज सारी दुनिया में लोग दुखी हैं, कोई पैसे की कमी से दुखी है...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Tips for happy life: बात 17 फरवरी, 2002 की है। प्रख्यात जैन संत सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज विश्वासनगर में विराजमान थे। उनकी धर्म चर्चा चली तो उनका ज्ञान स्रोत निम्न शब्दों में फूट पड़ा- आज सारी दुनिया में लोग दुखी हैं, कोई पैसे की कमी से दुखी है तो कोई पैसे की अधिकता से भी कम दुखी नहीं है।
पांच प्रतिशत लोग भी सुखी नहीं हैं। सुखी बनने का तरीका प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने बताया था। उन्होंने अपने सभी पुत्रों को चार शिक्षाएं दी थी- स्वयं को बदलो, स्वावलंबी बनो, स्वतंत्र रहो, हर परिस्थिति में मुस्कुराओ।
लोग सारी दुनिया को बदलने में लगे हैं पर ऐसा कर नहीं पाते, इसलिए स्वयं को बदलने, सुधारने में ही सच्चा सुख है। अपनी बागडोर किसी और के हाथ में मत दो। स्वावलंबी बनो।
दूसरों की चिंता मत करो। होनी बलवान होती है। जो होना है होके रहेगा। किसी भी परिस्थिति में डरना या घबराना नहीं। कहां तो श्री राम के राजतिलक की तैयारी हो रही थी, सर्वत्र खुशी, हर्ष का वातावरण और उसी समय उन्हें वनवास हो गया।
श्रीकृष्ण का जीवन भी बड़ा दुख भरा रहा, जेल में जन्म लिया, कोई मंगल गीत गाने वाला भी नहीं था, कभी सारथी बने और अंत में जरा कुमार के तीर से मरे तो कोई रोने वाला भी नहीं था। आज लोग मंदिरों में हजार-पांच सौ दान देते हैं तो चाहते हैं कि नाम पत्थरों पर लिखा जाए और जब उनका नाम थाने में लिखा हो तो उसे कटवाने को बीस-बीस हजार तुरन्त दे देंगे।
वाह रे मनुष्य, तेरी कैसी विचित्र गति? सारांश यही है कि यदि हमें सुखी बनना है तो महापुरुषों की शिक्षाओं को अपने आचरण में उतारना ही होगा।