Shree Somnath Jyotirlinga: बहुत खास है भगवान शिव का पहला ज्योतिर्लिंग, दर्शन मात्र से जीवन की नैया हो जाती है पार

Edited By Updated: 22 Oct, 2024 11:04 AM

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आस्था एवं भक्ति का केंद्र श्री सोमनाथ आदि ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जिसके दर्शन-पूजन से भव बाधा से मुक्ति मिलती है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

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Shree Somnath Jyotirlinga: आस्था एवं भक्ति का केंद्र श्री सोमनाथ आदि ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जिसके दर्शन-पूजन से भव बाधा से मुक्ति मिलती है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। वर्तमान गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में श्री सोमनाथ महादेव का विशाल भव्य मनोहारी मंदिर स्थित है, जो लम्बे-चौड़े परिसर से घिरा है। श्री सोमनाथ मंदिर भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व आध्यात्मिक तथा ऐतिहासिक परम्परा से प्रतिष्ठित है। सम्पूर्ण गिर सोमनाथ जिला का उद्घोष है ‘जय सोमनाथ’। लोग मिलते-बिछुड़ते बोलते हैं ‘जय सोमनाथ।’सोमनाथ में रेलवे स्टेशन भी है और बस अड्डा भी, परंतु यहां से छह किलोमीटर दूर वेरावल रेलवे स्टेशन का जुड़ाव सभी स्थानों से है। अहमदाबाद से सोमनाथ लगभग 400 कि.मी. दूर है।

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अहमदाबाद से जूनागढ़ 326 कि.मी. है, जहां से सड़क मार्ग से सोमनाथ की दूरी 98 कि.मी. है। वैसे गांधीनगर से सोमनाथ की दूरी 380 कि.मी. है।  सोमनाथ का नजदीकी हवाई अड्डा केशोड (जिला जूनागढ़) है, जो सोमनाथ मंदिर से लगभग 55 कि.मी. दूर है। जूनागढ़ से रेलमार्ग द्वारा सोमनाथ 85 कि.मी. है।

मंदिर की बनावट और दीवारों पर की गई शिल्पकारी उत्कृष्ट है। इसके पीछे समुद्र तट होने के कारण यहां की छटा देखते ही बनती है। उत्तर-पूर्व में तीन नदियां हिरण्या, कपिला और सरस्वती ‘त्रिवेणी संगम’ करती हुई समुद्र में महासंगम कर विलीन हो जाती हैं। यहां त्रिवेणी घाट है। सोमनाथ-त्रिवेणी घाट रोड के पूर्व में उछाल मारती समुद्र की लहरें समुद्र तट पर समय बिताने को बाध्य करती हैं, जहां समुद्र स्नान, कैमल व हॉर्स राइडिंग आदि का लुत्फ उठा सकते हैं। वेरावल से सोमनाथ आने के क्रम में ‘जूनागढ़ द्वार’ एक ऐतिहासिक आकर्षण है, जहां एक ओर सोमनाथ के लिए सड़क पर मोड़ है, वहीं एक ओर स्वामी नारायण गुरुकुल का तोरण द्वार है तो दूसरी ओर सोमनाथ द्वार।

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भारतीय संस्कृत साहित्य से ज्ञात होता है कि श्राप से मुक्ति पाने के लिए सोम (चंद्रमा) ने यहां शिव की आराधना की थी और शिव से उन्हें अभय होने का वरदान प्राप्त हुआ था। शिव ज्योतिर्लिंग में परिवर्तित हो गए और यहां विराजमान होकर चंद्रमा के नाथ ‘सोमनाथ’ के नाम से जाने गए। अनादिकाल से जिस स्थान पर श्री सोमनाथ मंदिर की स्थिति थी, वहीं सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा नए सोमनाथ मंदिर ‘कैलाश महामेरू प्रसाद’ का निर्माण पूरा हुआ। 15 नवम्बर, 1947 को भारत के उपप्रधानमंत्री व गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने मंदिर निर्माण की घोषणा की थी।

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सन् 1951 में सोमनाथ मंदिर बनकर तैयार हुआ। सोमनाथ महादेव की प्राण प्रतिष्ठा का समय सुनिश्चित होने पर 11 मई, 1951 को शुक्रवार प्रभात 9.47 बजे भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद के कर कमलों से सोमनाथ महादेव की पुन: प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। शिवलिंग लगभग 5 फुट ऊंचा और परिधि 10 फुट है। श्री सोमनाथ के पूर्व-उत्तर में समुद्र के समीप ब्रह्मकुंड है, जहां श्री ब्रह्मेश्वर महादेव का मंदिर है। समुद्र के समीप ही योगेश्वर बाघेश्वर व रत्नेश्वर मंदिर हैं।

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