Edited By bharti,Updated: 12 May, 2019 02:10 PM
दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने दिल्ली सरकार को सोशल ज्यूरिस्ट संस्था की सैकड़ों छात्रों को दिल्ली के सरकारी स्कूलों...
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने दिल्ली सरकार को सोशल ज्यूरिस्ट संस्था की सैकड़ों छात्रों को दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दाखिला देने से मना करने पर दायर की गई याचिका पर नोटिस जारी किया है। याचिका में दिल्ली सरकार के उम्र सीमा को लेकर 19.09.2016 को जारी किए गए सर्कुलर और 27.08.2018 को दो बार फेल हो जाने पर छात्रों को स्कूलों में दाखिला न देने के सर्कुलर को भी चुनौती दी गई है। इसके अलावा सोशल ज्यूरिस्ट ने निदेशालय के 27 और 29 मार्च 2019 को जारी किए गए सर्कुलर में ‘दिल्ली के रेजीडेंट प्रूफ’ सेक्शन को भी चैलेंज किया है।
याचिका में कहा गया है कि स्थानीय पते के आधार पर, उम्र सीमा के आधार पर और दो बार फेल छात्रों का सरकारी स्कूलों में दोबारा दाखिला न देना असंवैधानिक हैं। यह निदेशालय का मनमाना, भेदभावपूर्ण, बर्बर, सार्वजनिक हित के खिलाफ, सार्वजनिक नीति के खिलाफ और बाल सिद्धांत के हित के खिलाफ रवैया है। इसके साथ ही यह शिक्षा के मौलिक अधिकार का भी हनन है। इस याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट मे दिल्ली सरकार को 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं।
हाईकोर्ट ने कहा है कि इस केस की अगली सुनवाई 8 जुलाई 2019 को को की जाएगी। बच्चों की ओर से कोर्ट में याचिकाकर्ता अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार ने 130 बच्चों में से 5 छात्रों को उनके निवास प्रमाण पत्र प्रेषित न किए जाने की वजह को जांचे बिना ही दाखिला देने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि दिल्ली में हजारों छात्र ऐसे हैं जिनके पास निवास का कोई प्रमाण पत्र नहीं है सिर्फ निवास प्रमाण पत्र के न होने के आधार पर दिल्ली सरकार छात्रों को प्रवेश से वंचित नहीं रख सकती यह पूर्ण रूप से असंवैधानिक है। दिल्ली देश की राजधानी है यहां सरकारी स्कूल किसी भी छात्र को कानूनन प्रवेश से इंकार नहीं कर सकते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ऐेसे छात्रों के माता-पिता यह घोषणा करते हुए एक हलफनामा स्कूल में दे सकते हैं कि दिल्ली में वे फला जगह रह रहे हैं।