गवर्नर महोदय! इन बच्चों का भविष्य खराब होने से बचाएं

Edited By Vikas kumar,Updated: 27 Sep, 2019 12:36 PM

sir save the future of these children from spoiling

‘सब पढ़ें-सब बढ़ें बर्बाद न करें बच्चों का भविष्य, इन्हें भी स्कूल भेजिए’, यह पंक्ति हर सरकारी स्कूल की दीवारों पर लिखी हुई मिलती है, लेकिन अगर हालात इस पंक्ति के विपरीत हो गए हैं कि बच्चे स्कूल पहुंच जाएं और शिक्षक स्कूल न आए और पूरा दिन स्कूल पर...

साम्बा(अजय): ‘सब पढ़ें-सब बढ़ें बर्बाद न करें बच्चों का भविष्य, इन्हें भी स्कूल भेजिए’, यह पंक्ति हर सरकारी स्कूल की दीवारों पर लिखी हुई मिलती है, लेकिन अगर हालात इस पंक्ति के विपरीत हो गए हैं कि बच्चे स्कूल पहुंच जाएं और शिक्षक स्कूल न आए और पूरा दिन स्कूल पर ताला ही लटका रहे तो यह अधुनिक भारत की छवि को चुनौती देने वाला सबसे बड़ा उदाहरण होगा। राज्य के शिक्षा विभाग की लापरवाही और लचर प्रणाली से जिला साम्बा के विजयपुर जोन के अधीन मोहरगढ़ पंचायत के सरकारी प्राइमरी स्कूल नाली गुज्जर के 18 बच्चों का भविष्य पूरी तरह से अंधकार में है।  

सच्चाई यह है कि  वर्ष 2005 में बने इस स्कूल में ‘पंजाब केसरी’ ने जब वीरवार को इस स्कूल का दौरा किया तो वहां पर तैनात एकमात्र शिक्षक भी नहीं आया था, जिसके कारण बच्चे स्कूल के कमरों के बंद ताले के बाहर 2 घंटे तक बैठे रहे और उसके बाद बिना पढ़े ही वापिस अपने-अपने घर चले गए। कच्ची सड़क से 3 कि.मी. की दूरी पर एक खड्ड के किनारे बने हुए इस नाली गुज्जर स्कूल में बच्चों की संख्या 18 है, जबकि शिक्षक मात्र एक ही है जो इस बात को साबित करता है कि राज्य में सरकारी स्कूलों में बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के सभी दावे खोखले हैं और शिक्षा विभाग सिर्फ दफ्तरों में बैठ कर कागजी कार्रवाई पर जोर देता है।

सप्ताह में 3-4 दिन ही खुलता है स्कूल
सरकारी प्राइमरी स्कूल नाली गुज्जर के स्कूल में एक शिक्षक होने के चलते यह स्कूल सप्ताह में 3-4 दिन ही खुलता है और अन्य दिनों में छुट्टी रहती है। इसके अलावा जिस दिन शिक्षक स्कूल पहुंचता है तो वह भी 10 और 11 बजे के बाद। आलम यह है कि एक शिक्षक होने के कारण वहां पर पढ़ाई का कोई सिस्टम ही नहीं है। बात की जाए मिड-डे मिल की तो यह बात सबसे बेहतर शिक्षा विभाग बता सकता है कि मिड-डे मिल के पैसे किस हिसाब से निकाले जाते हैं, क्योंकि अगर स्कूल ही कुछ दिन खुलता है तो बच्चों को राशन भी उसी हिसाब से आता होगा। बिल्कुल खड्ड के किनारे होने के चलते वहां पर चारदीवारी भी नहीं बनी है, जिससे बारिश आने पर बच्चों के लिए पानी का खतरा बना रहता है। 
 

बच्चों को प्रधानमंत्री, राजधानी, देश, राज्य और जिला का नाम तक नहीं पता
इस स्कूल की स्थिति देखने के बाद सबसे दुखद दृश्य यह दिखता है कि 5वीं तक पढ़ाई कर रहे बच्चों की शिक्षा का स्तर भी पूरी तरह जीरो है। 5वीं तक के बच्चों को देश के प्रधानमंत्री, राजधानी, देश, राज्य और जिला के नाम तक का पता नहीं है। ङ्क्षहदी में फादर, मदर किसे कहते हैं यह सब पूछने के बाद बच्चों का जवाब यही मिला कि उन्हें पता नहीं। कुछ बच्चों को ए बी सी, क ख ग अक्षरों और गणित का कुछ भी पता नहीं। इन बच्चों को देख कर ऐसा लगता है कि यह किसी स्कूल में पढ़ते ही नहीं हैं। वहीं हालात ये हैं कि बच्चों को अपने स्कूल का नाम तक लिखना नहीं आता है और कुछ को सिर्फ गांव का नाम पता है, जबकि सरकारी प्राइमरी स्कूल के बारे कुछ ज्ञात नहीं। बताया गया कि इस स्कूल के बच्चे जब छठी कक्षा में एडमीशन लेने के लिए दूसरे स्कूल में जाते हैं तो वहां के शिक्षक उन्हें पढ़ाने से मना करते हैं, क्योंकि बच्चों का स्तर की छठी कक्षा के लिए शून्य के बराबर होता है।

शिक्षक पहुंचे तो बढ़ सकती है बच्चों की संख्या
राज्य में इस समय सरकारी स्कूल के गिरते स्तर को देखते हुए विभाग ने एनरोलमैंट ड्राइव शुरू की है, लेकिन बावजूद उसके प्रत्येक स्कूल में बच्चों की संख्या 20 के करीब ही पहुंची है। इस सरकारी स्कूल में नाममात्र शिक्षक होते हुए भी 18 है और गांव के 50 के करीब बच्चे मजबूरी में दूर-दराज के स्कूलों में पढऩे के लिए जाते हैं। 47 घर वाले इस वार्ड के लोगों का कहना है कि अगर शिक्षक लग जाए तो वे अपने बच्चों को यहीं पर पढ़ा सकते हैं।

5वीं कक्षा के बच्चों को नहीं आता अपने माता- पिता का नाम लिखना
गुज्जर नाली वार्ड के पंच जमात अली, मोहम्मद दीन, मदन लाल, मन्ना दीन, फिरोज दीन ने कहा कि यह उनके लिए बहुत ही दुखदायी बात है कि उनके बच्चों का भविष्य पूरी तरह से खत्म होता हुआ दिख रहा है, क्योंकि जिस स्कूल में शिक्षक ही नहीं आए और बच्चों को 5वीं कक्षा में अपने माता-पिता का नाम तक लिखना नहीं आता हो तो व कैसे आगे बढ़ेंगे। पंच जमात अली ने बताया कि वह अपनी समस्या को लेकर जैड.ई.ओ., सी.ई.ओ. तक गए, लेकिन उनकी कोई नहीं सुनता है। उन्होंने कहा कि अब उनकी आस सिर्फ राज्यपाल पर टिकी हुई है कि राज्यपाल कोई कदम उठाकर इस स्कूल की तरफ ध्यान दें। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि वह किसी आधुनिक भारत में नहीं बल्कि आदिवासी क्षेत्र में रह रहे हों।

क्या कहना है डी.सी. साम्बा का
इस मामले पर डिप्टी कमिश्नर साम्बा रोहित खजूरिया ने कहा कि अब यह मामला उनके संज्ञान में आ गया है और इस पर पूरी कार्रवाई करके वहां पर शिक्षक को भेजा जाएगा। वहीं संबंधित शिक्षा विभाग से भी बात की जाएगी।  

 

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