हिमाचल कांग्रेस के बागियों के भगवाकरण के बाद क्या भाजपा के हारे हुए नेता कर पाएंगे बगावत

Edited By Mahima,Updated: 25 Mar, 2024 09:02 AM

after the saffronisation of himachal congress rebels

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस से बागी हुए 6 और 3 आजाद विधायकों के भगवाकरण के बाद अब चुनावों से पहले राज्य की भाजपा इकाई में बगावत की चर्चा है, हालांकि देश में भाजपा के भीतर ऐसी स्थित है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान में वसुंधरा राजे...

नेशनल डेस्क: हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस से बागी हुए 6 और 3 आजाद विधायकों के भगवाकरण के बाद अब चुनावों से पहले राज्य की भाजपा इकाई में बगावत की चर्चा है, हालांकि देश में भाजपा के भीतर ऐसी स्थित है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान में वसुंधरा राजे जैसे दिग्गजों को अनुशासन में रह कर पार्टी के आदेशों का पालन करना पड़ा है। मतलब साफ है कि बागी कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ भाजपा के हारे हुए नेताओं के बगावत के आसार बहुत कम हैं। प्रदेश के राजनीतिक पंडितों की मानें तो  भाजपा के भीतर छिटपुट बगावत उपचुनाव में सामने आती है तो अपने बागियों को शांत करने के लिए भाजपा आलाकमान का एक इशारा ही काफी होगा।

क्यों सियासी जमीन तलाश कर रहे हैं भाजपा नेता
फिलवक्त की जानकारी के मुताबिक कांग्रेस के 6 बागियों के खिलाफ भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ चुके नेता अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि चूंकि कांग्रेस के छह बागी नेताओं को भाजपा द्वारा उपचुनाव में टिकट दिए जाने की संभावनाएं प्रबल मानी जा रही हैं इसलिए भाजपा में भी हारे हुए नेताओं ने अपनी सियासी जमीन तलाशने शुरु कर दी है। सूत्रों का यह भी कहना है कि इनमें से कुछ ने प्रदेश भाजपा नेतृत्व को धमकी भी दी है कि है कि अगर उन्हें उपचुनाव में पार्टी दोबारा मैदान में नहीं उतारती है तो वे बगावत कर कांग्रेस में भी जा सकते हैं।

हिमाचल के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के बागियों के खिलाफ चुनाव लड़ चुके भाजपा नेताओं की अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंता स्वाभाविक है। उनका यह भी कहना है कि कांग्रेस के निलंबित विधायकों के खिलाफ हारे हुए भाजपा के नेता अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए पार्टी पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी उन्हें भविष्य के लिए बेहतर ऑफर देती है तो वे शांत हो जाएंगे।

कांग्रेस के लिए क्यों अहम है उप चुनाव
दूसरी और 6 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर कांग्रेस की रणनीति पर भी विशेषज्ञों की पैनी नजरें हैं। जब तक लोकसभा चुनाव के साथ हिमाचल में 9 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव नहीं हो जाता है, तब तक राज्य की कांग्रेस नीत सुक्खू सरकार पर संकट बरकरार ही रहेगा। कांग्रेस आलाकमान के सामने हिमाचल में लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव बड़ी चुनौती है। कांग्रेस अगर उपचुनाव के बाद हिमाचल में सत्ता खो देती है है तो इसकी सरकार केवल दो राज्यों कर्नाटक और तेलंगाना में ही बचेगी। इसलिए यहां लोकसभा चुनाव से ज्यादा विधानसभा चुनाव अहम हो चला है। जाहिर है कि कांग्रेस 9 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक देगी।

भाजपा के पास खोने को कुछ नहीं
इसके विपरीत यदि राज्य में भाजपा की बात करें तो वह राज्य की चारों लोकसभा सीटों पर अपनी जीत तय मान रही है। यहां खास बात यह है कि सियासी चौसर पर भाजपा का विधानसभा उपचुनाव में अपना कुछ भी दाव पर नहीं लगा है, वह कांग्रेस के 6 बागियों और 3 आजाद विधायकों पर दांव खेल रही है। इसलिए वह विधानसभा उपचुनाव हार भी जाती है तो उसका कुछ भी नुकसान नहीं होगा। अगर जीत जाती है तो भाजपा आलाकमान जो राजनीतिक प्रयोग कर रही है वह सफल हो जाएगा। ऐसी स्थिति में कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, जिसकी भविष्य में भरपाई करना इतना आसान भी नहीं होगा। 

गौरतलब है कि 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव में हुई क्रॉस वोटिंग के कारण हिमाचल में कांग्रेस सरकार संकट से गुजर रही है। पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने पर कांग्रेस के छह बागियों को 29 फरवरी को दल-बदल विरोधी कानून के तहत विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया गया था। इसके अलावा तीन आजाद विधायकों ने हाल ही में विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। कुल मिलाकर ये 9 नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। 

 

 

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