Edited By Pardeep,Updated: 20 Mar, 2024 11:47 PM
भारत का सौर कचरा 2030 तक 600 किलोटन तक पहुंच सकता है। बुधवार को जारी एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, यह ओलंपिक आकार के 720 स्वीमिंग पूल (तरणताल) को भरने के बराबर है।
नई दिल्लीः भारत का सौर कचरा 2030 तक 600 किलोटन तक पहुंच सकता है। बुधवार को जारी एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, यह ओलंपिक आकार के 720 स्वीमिंग पूल (तरणताल) को भरने के बराबर है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और स्वतंत्र शोध संस्थान काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायर्नमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया कि इस कचरे का लगभग 67 प्रतिशत पांच राज्यों- राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से आएगा।
“भारत के सौर उद्योग में एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को सक्षम करना: सौर अपशिष्ट मात्रा का आकलन” शीर्षक वाले अध्ययन में कहा गया है कि भारत में मौजूदा (बीते वित्त वर्ष तक) स्थापित 66.7 गीगावाट क्षमता से पहले से ही 100 किलोटन कचरा पैदा हो रहा है, जो 2030 तक बढ़कर 340 किलोटन हो जाएगा। इसमें लगभग 10 किलोटन सिलिकन, 12 से 18 टन चांदी और 16 टन कैडमियम और टेलरियम होगा। इन सामग्रियों को दोबारा प्राप्त करने के लिए सौर कचरे का पुनर्चक्रण करने से आयात निर्भरता कम होगी और भारत की खनिज सुरक्षा बढ़ेगी। शोध में पाया गया कि शेष 260 किलोटन कचरा 2024 से 2030 के बीच स्थापित होने वाली नई क्षमताओं से पैदा होगा।
अध्ययन में कहा गया है कि सौर कचरा 2050 तक बढ़कर 19,000 किलोटन हो जाएगा, जिसमें से 77 प्रतिशत नई क्षमताओं से पैदा होगा। सीईईडब्ल्यू ने कहा कि यह भारत के लिए सौर उद्योग के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था के अग्रणी केंद्र के रूप में उभरने और जुझारू सौर आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित करने का एक अवसर है। भारत ने 2030 तक लगभग 292 गीगावाट सौर क्षमता हासिल करने की योजना बनाई है, जिससे सौर पीवी कचरा प्रबंधन पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक कारणों से महत्वपूर्ण हो जाएगा।