नारायण साईं कृष्ण बनते हैं और महिलाएं गोपी बनकर साथ नाचती हैं'

Edited By ,Updated: 30 Apr, 2015 10:49 AM

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उच्चतम न्यायालय ने प्रवचनकर्ता आसाराम के बेटे नारायण साईं को जमानत पर रिहा किए जाने के गुजरात उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश में आज थोड़ा संशोधन किया

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने प्रवचनकर्ता आसाराम के बेटे नारायण साईं को जमानत पर रिहा किए जाने के गुजरात उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश में आज थोड़ा संशोधन किया और उनकी मां की सर्जरी की तारीख सामने आने पर ही उन्हें रिहा करने का आदेश दिया। गुजरात सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि नारायण साईं को छोड़े जाने पर कानून व्यवस्था का प्रश्न खड़ा हो सकता है। उन्होंने कहा कि किस तरह नारायण साईं सिर पर मोर पंख लगाकर कृष्ण बनते हैं और महिलाएं गोपी बनकर उनके साथ नाचती हैं। उनके हजारों समर्थक हैं जो हंगामा कर सकते हैं। इस पर शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि हम हैरान हैं कि ये सब प्रगतिशील और विकासशील गुजरात में हो रहा है, किसी आदिवासी इलाके में नहीं। 

दरअसल गुजरात उच्च न्यायालय ने नारायण साईं को मां के इलाज के लिए चार मई से तीन हफ्ते की अंतरिम जमानत दी है। साथ ही शर्तें भी लगाई हैं कि वह 24 घंटे पुलिस निगरानी में रहेंगे और रहने की जगह एवं अस्पताल के अलावा कहीं नहीं जाएंगे। इस आदेश के खिलाफ गुजरात सरकार ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था और कहा था कि ऑपरेशन के लिए कोई तारीख मुकर्रर नहीं है। अगर साईं को बाहर निकाला जाएगा तो कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है क्योंकि हजारों समर्थक वापस जेल ले जाते वक्त हंगामा कर सकते हैं। इस पर न्यायालय ने आदेश दिया कि ऑपरेशन की तारीख तय होने पर ही साईं को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाएगा।   

न्यायमूर्ति ठाकुर ने मेहता से पूछा कि क्या नारायण साईं भी अपने पिता आसाराम की तरह मशहूर हैं। इस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि खुद को बचाने के लिए साईं ने पुलिस इंस्पेक्टर को आठ करोड़ रुपए की घूस की पेशकश की। यहां तक कि इस मामले के एक अहम गवाह की हत्या भी हो चुकी है। उनके हजारों समर्थक हैं और सरकार को संदेह है कि वे कोई हंगामा कर सकते हैं। नारायण साईं दिसंबर 2013 से ही सूरत में दो बहनों के साथ बलात्कार के मामले में जेल में बंद हैं। इससे पहले शीर्ष अदालत कह चुकी है कि जब तक अहम लोगों की गवाही नहीं होती, उन्हें नियमित जमानत नहीं दी जा सकती। 

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