डिप्रेशन की दवाएं से होता है दिल पर असर, नई स्टडी से मिली चौंकाने वाली जानकारी

Edited By Mahima,Updated: 01 Apr, 2025 12:27 PM

depression medicines and their effect on the heart

डिप्रेशन के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एंटीडिप्रेसेंट्स दवाओं का लंबे समय तक सेवन हृदय गति रुकने का खतरा बढ़ा सकता है। डेनमार्क में हुई एक स्टडी के अनुसार, 1 से 5 साल तक इन दवाओं का सेवन करने से हृदयगति रुकने का खतरा 56% बढ़ जाता है। 6 साल या उससे...

नेशनल डेस्क: आजकल की तेज़-रफ़्तार ज़िन्दगी में डिप्रेशन एक आम समस्या बन चुकी है। मानसिक स्वास्थ्य के इस संकट से बचने के लिए लाखों लोग एंटीडिप्रेसेंट्स का सेवन करते हैं। हालांकि, अब एक नई स्टडी ने चेतावनी दी है कि इन दवाओं का लंबे समय तक इस्तेमाल दिल की सेहत पर गंभीर असर डाल सकता है, खासकर हृदय गति रुकने (Cardiac Arrest) के जोखिम को बढ़ा सकता है। 

अचानक हार्ट अटैक का खतरा 56% तक
यह स्टडी डेनमार्क में की गई थी, जिसमें 43 लाख लोगों को शामिल किया गया था। शोधकर्ताओं ने यह पाया कि जो लोग कम से कम 1 से 5 साल तक एंटीडिप्रेसेंट्स का सेवन करते हैं, उनमें अचानक हार्ट अटैक (Sudden Cardiac Arrest) का खतरा 56% तक बढ़ जाता है। इसके अलावा, अगर किसी व्यक्ति ने 6 साल या उससे ज्यादा समय तक एंटीडिप्रेसेंट्स का सेवन किया है, तो उनका जोखिम 2.2 गुना बढ़ सकता है। यह परिणाम विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि अचानक हृदयगति रुकने से व्यक्ति की जान भी जा सकती है और इसमें बचने का कोई समय भी नहीं मिलता। 

आयु के हिसाब से जोखिम
स्टडी में यह भी पाया गया कि उम्र के हिसाब से भी एंटीडिप्रेसेंट्स के सेवन से हृदय पर असर अलग-अलग हो सकता है। उदाहरण के तौर पर:

- 30 से 39 साल के लोग: इस आयु वर्ग में जो लोग 1 से 5 साल तक एंटीडिप्रेसेंट्स का सेवन करते हैं, उनमें अचानक हृदयगति रुकने का खतरा बिना दवा लेने वालों के मुकाबले करीब 3 गुना ज्यादा होता है। अगर दवा का सेवन 6 साल या उससे ज्यादा समय तक किया जाता है, तो यह जोखिम 5 गुना तक बढ़ जाता है।

- 50 से 59 साल के लोग: इस उम्र में 1 से 5 साल तक एंटीडिप्रेसेंट्स लेने से अचानक हृदयगति रुकने का खतरा दोगुना हो जाता है। वहीं, 6 साल या उससे ज्यादा समय तक दवा लेने पर यह खतरा चार गुना तक बढ़ सकता है।

मांसपेशियों के मोटा होने के कारण 
यह स्टडी इस बात पर भी जोर देती है कि दवाओं के दुष्प्रभावों का असर हृदय पर किस प्रकार पड़ता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि 39 साल से कम उम्र के लोगों में यह समस्या दिल की मांसपेशियों के मोटा होने के कारण होती है, जबकि बुजुर्गों में यह समस्या मुख्य रूप से हृदय को रक्त सप्लाई करने वाली नसों के संकुचन (narrowing of arteries) से उत्पन्न होती है। डॉ. जस्मिन मुज्कानोविक, जो कोपेनहेगन रिग्सहॉस्पिटल के हार्ट सेंटर में शोध कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि एंटीडिप्रेसेंट्स का सेवन जितने लंबे समय तक किया जाएगा, उतना ही हृदयगति रुकने का खतरा अधिक होगा। विशेष रूप से, 6 साल या उससे ज्यादा समय तक इन दवाओं का सेवन करने वालों में यह खतरा सबसे अधिक देखा गया है। 

दवाओं के दुष्प्रभाव केवल मानसिक सेहत तक सीमित नहीं 
यह शोध यूरोपियन सोसाइटी ऑफ कार्डियोलॉजी के साइंटिस्ट सम्मेलन EHRA में प्रस्तुत किया गया था। शोधकर्ताओं का कहना है कि जो लोग मानसिक स्वास्थ्य के इलाज के लिए एंटीडिप्रेसेंट्स का सेवन करते हैं, उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि इन दवाओं के दुष्प्रभाव केवल मानसिक सेहत तक सीमित नहीं रहते, बल्कि यह शारीरिक स्वास्थ्य, खासकर दिल की सेहत, पर भी गंभीर असर डाल सकते हैं। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि इस रिसर्च से पता चलता है कि डिप्रेशन के इलाज में एंटीडिप्रेसेंट्स का इस्तेमाल करते समय डॉक्टरों को मरीज की हृदय सेहत पर भी ध्यान देना चाहिए, और अगर किसी को दिल से संबंधित समस्याएं हैं, तो उन्हें इस दवा के सेवन से पहले अपनी स्वास्थ्य स्थिति की जांच करवानी चाहिए।

इस स्टडी के परिणाम यह साबित करते हैं कि डिप्रेशन का इलाज केवल मानसिक सेहत पर नहीं, बल्कि शारीरिक सेहत पर भी गहरा प्रभाव डालता है। इसलिए, मानसिक बीमारी के इलाज में दवाइयों का सेवन करते समय हृदय संबंधी जोखिमों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। डॉक्टरों को इस अध्ययन के परिणामों को ध्यान में रखते हुए इलाज की रणनीति बनानी चाहिए, और मरीजों को समय-समय पर उनकी हृदय सेहत की जांच करवानी चाहिए।

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