डीके शिवकुमारः एक ऐसा कांग्रेसी चेहरा जिसने पार्टी को हर बार दिया सहारा

Edited By Yaspal,Updated: 20 May, 2018 05:38 AM

dk shivkumar a congressman who gave the every time with party

डीकेएस के नाम से मशहूर शिवकुमार कर्नाटक की राजनीति में बेहद चर्चित चेहरा हैं। गौड़ा परिवार के गढ़ में उनसे लड़ते हुए उन्होंने राज्य में अपनी अलग पहचान बनाई है।

बेंगलुरूः डीकेएस के नाम से मशहूर शिवकुमार कर्नाटक की राजनीति में बेहद चर्चित चेहरा हैं। गौड़ा परिवार के गढ़ में उनसे लड़ते हुए उन्होंने राज्य में अपनी अलग पहचान बनाई है। शिवकुमार वोक्कालिगा है और उन्होंने 1989 में कनकपुरा से सथनूर में पहना विधानसभा चुनाव जीता था। इस चुनाव में उन्होंने कर्नाटक की राजनीति के धुरंधर एचडी देवगौड़ा को हराया था। 1990 में जब एस बंगरप्पा मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने शिवकुमार को जेल एवं होमगार्ड प्रोफाइल के साथ मंत्री बनाया। छोटा मंत्रालय होने के बाद भी शिवकुमार ने अपनी काबिलियत के दम पर सीनियर नेताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा, उस समय उनकी उम्र सिर्फ 29 साल थी।

2002 में बचाई महाराष्ट्र सरकार
2002 में जब महाराष्ट्र में विलासराव की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार गिरने वाली थी तो हार को देखते हुए उन्होंने सभी विधायकों को कर्नाटक भेज दिया था, जहां एसएम कृष्णा की सरकार थी। कृष्णा ने विधायकों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी शहरी विकास मंत्री डीके शिवकुमार को दी। वे उन्हें बेंगलुरु के बाह स्थित ईगलटन रिजॉर्ट ले गए और करीब एक हफ्ते तक उनकी देखरेख की। फ्लोर टेस्ट के दिन वह उन्हें सुरक्षित मुंबई लेकर आए और विलासराव की सरकार बचाई। इसके बाद डीके शिवकुमार देशभर के अखबारों की सुर्खियां बन गए और गांधी परिवार से उनके रिश्ते और मजबूत हो गए।

2004 में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा को हराया
1994 में देवगौड़ा अगुवाई वाली जनता दल सत्ता में आई तो शिवकुमार उन चुनिंदा नेताओं में थे। जिन्होंने खुद को बचाए रखा। देवगौड़ा के प्रधानमंत्री रहते हुए भी शिवकुमार ने अपनी लड़ाई जारी रखी। 1999 में जब एसएम कृष्णा मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने शिवकुमार को शहरी विकास मंत्री बनाया। 2002 के लोकसभा उपचुनाव में वह देवगौड़ा के खिलाफ लड़े, लेकिन हार गए. हालांकि, 2004 के लोकसभा चुनाव में देवगौड़ा को हराकर उन्होंने बदला ले लिया था।

राज्य में लोकसभा चुनाव के साथ-साथ हुए विधानसभा चुनाव में कृष्णा सरकार की हार हुई और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन ने सरकार बनाई, जिसमें शिवकुमार को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उन्होंने कैबिनेट में वापस आने के लिए 2014 तक इंतजार किया। तब तक वह कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर रहे।

2014 में बने ऊर्जा मंत्री
जब सिद्धारमैया नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार 2013 में सत्ता में आई, भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण शिवकुमार को बाहर रखा गया। लेकिन उन्होंने न तो पार्टी छोड़ी और न ही हाईकमान के खिलाफ कुछ कहा। जनवरी 2014 में उन्हें ऊर्जा मंत्री बनाया गया।

अगस्त 2017 में गुजरात राज्यसभा चुनाव में जब बीजेपी ने सोनिया गांधी के राजनीति सचिव अहमद पटेल को हटाने की कोशिश की तो शिवकुमार ने गुजरात कांग्रेस विधायकों को शरण दी थी। उनपर इनकम टैक्स और ईडी के छापे भी पड़े लेकिन वे घबराए नहीं। अहमद पटेल ने राज्यसभा चुनाव जीता और शिवकुमार की जगह पार्टी में और मजबूत हुई। सिद्धारमैया उन्हें खतरा मान बैठे थे, इसलिए मई 2017 में उन्हें कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष नहीं बनाया गया, लेकिन फिर भी उन्होंने सिद्धारमैया के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला। हाल ही में हुए चुनाव में उन्हें प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया।

एक बार फिर पार्टी की बचाई लाज
खंडित जनादेश के बाद एक बार फिर शिवकुमार ने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। उन्होंने गौड़ा परिवार से हाथ मिला लिया और बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने की कोशिश की। इस बार भी कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों को तीन दिन तक ईगलटन रिजॉर्ट में रखा गया। उन्होंने सुनिश्चित किया कि कांग्रेस का कोई भी विधायक इधर से उधर न जाए। यही नहीं वे 'गायब' विधायक प्रताप गौड़ा पाटिल और आनंद सिंह को वापस लाने में सफल रहे।

रखते हैं मुख्यमंत्री बनने की इच्छा
शिवकुमार के दुश्मन उनसे डरते हैं। वे भविष्य में कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा भी रखते हैं। पत्रकारों से बात करते हुए शिवकुमार ने कहा था कि वे सात विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं और उन्होंने पार्टी के लिए काफी कुछ किया है। इसलिए वह सीएम पद के लिए उपयुक्त हैं। और अधिकतर लोग इससे सहमत भी हैं।

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