होला मोहल्ला: कब और कैसे हुई शुरूआत, जानें कथा

Edited By Tanuja,Updated: 02 Mar, 2018 09:46 AM

holla mohalla of sri anandpur sahib

Hola Mohalla : दीपावली के बाद हमारे देश में जो त्यौहार सर्वाधिक मनाया जाता है, वह है होली। भारत में यह बहुत पुरातन समय से मनाया जाने वाला त्यौहार है। हर धर्म के लोग होली को पूरी श्रद्धा से मनाते आए हैं। खास तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार आदि प्रदेशों...

दीपावली के बाद हमारे देश में जो त्यौहार सर्वाधिक मनाया जाता है, वह है होली। भारत में यह बहुत पुरातन समय से मनाया जाने वाला त्यौहार है। हर धर्म के लोग होली को पूरी श्रद्धा से मनाते आए हैं। खास तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार आदि प्रदेशों में तो यह त्यौहार जुनून की हद तक मनाया जाता है।

होला मोहल्ला का इतिहास

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने खालसा की संरचना करने के बाद वर्ष-1757 में चैत्र बदी 1 वाले दिन होली से अगले दिन होला-मोहल्ला नाम का त्यौहार मनाना शुरू किया। श्री आनंदपुर साहिब में होलगढ़ नामक स्थान पर गुरु जी ने होले मोहल्ले की रीति शुरू की। भाई काहन सिंह जी नाभा ‘गुरमति प्रभाकर’ में होले मोहल्ले बारे बताते हैं कि होला मोहल्ला एक बनावटी हमला होता है, जिसमें पैदल तथा घुड़सवार शस्त्रधारी सिंह दो पार्टियां बनाकर एक खास जगह पर हमला करते हैं।


भाई वीर सिंह जी ‘कलगीधर चमत्कार’ में लिखते हैं कि मोहल्ला शब्द से भाव है, ‘मय हल्ला’। मय का भाव है ‘बनावटी’ तथा हल्ला का भाव है ‘हमला’।

गुलाब के फूलों और गुलाब से बने रंगों की खेली जाती है होली


सिख इतिहास तथा सिख धर्म में होले मोहल्ले की खास महत्ता है। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा  होला मोहल्ला शुरू किए जाने से पहले बाकी गुरु साहिबान के समय एक-दूसरे पर फूल तथा गुलाल फैंक कर होली मनाने की परम्परा चलती रही है, परंतु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने होली को होला मोहल्ला में बदल दिया। वर्ष 1757 में गुरु जी ने सिंहों की दो पार्टियां बनाकर एक पार्टी के सदस्यों को सफेद वस्त्र पहना दिए तथा दूसरे को केसरी। फिर गुरु जी ने होलगढ़ पर एक गुट को काबिज करके दूसरे गुट को उन पर हमला करके यह जगह पहली पार्टी के कब्जे में से मुक्त करवाने के लिए कहा।

बिना शारीरिक क्षति पहुंचाए युद्ध के जौहर दिखाए जाते है होला मोहल्ला पर 
 

इस समय तीर या बंदूक आदि हथियार बरतने की मनाही की गई क्योंकि दोनों तरफ गुरु जी की फौजें ही थीं। आखिर केसरी वस्त्रों वाली सेना होलगढ़ पर कब्जा करने में सफल हो गई। गुरु जी सिखों का यह बनावटी हमला देखकर बहुत खुश हुए तथा बड़े स्तर पर हलवे का प्रसाद बनाकर सभी को खिलाया गया तथा खुशियां मनाई गईं। उस दिन के बाद आज तक श्री आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला दुनिया भर में अपनी अलग पहचान रखता है।  


कवि निहाल सिंह होला मोहल्ला बारे बड़े खूबसूरत शब्दों में इस तरह बयान करता है:-
‘‘बरछा ढाल कटारा तेगा,
कड़छा देगा गोला है।
छका प्रसाद सजा दस्तारा,
और करदौना टोला है।
सुभट सुचाला और लखबांहा, कलगा सिंह सू चोला है।
अपर मुछहिरा दाड़ा जैसे तैसे बोला 
होला है।’’


आज भी तख्त श्री केसगढ़ सहिब में पांच प्यारे साहिबान होले मोहल्ले की अरदास करके किला आनंदगढ़ साहिब में पहुंचते हैं। वहां निहंग सिंह शस्त्रों से लैस होकर हाथियों और घोड़ों पर सवार होकर एक-दूसरे पर गुलाल फैंकते हुए नगाड़ों की चोटों में बैंड बाजा बजाते हुए किला होलगढ़, माता जीतो जी का दोहुरा से होते हुए चरण गंगा के खुले मैदान में पहुंचते हैं। वहां पर कई तरह के खेल घुड़दौड़, गत्तका, नेजाबाजी आदि होती है। आखिर बाकी गुरुद्वारा साहिबान की यात्रा करता हुआ यह नगर कीर्तन श्री केसगढ़ साहिब में पहुंचकर समाप्त होता है।

Related Story

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!