भारत की वो जगह, जहां बिना वीजा के नहीं जा सकते भारतीय

Edited By Seema Sharma,Updated: 26 Jul, 2019 04:38 PM

india s place where indians can not go without visa

भारतीय अपने देश के किसी भी हिस्से में वैसे तो बिना किसी रोक-टोक के घूम सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत का एक हिस्सा ऐसा भी है जहां कोई भी नागरिक बिना अनुमति के नहीं जा सकता।

नेशनल डेस्कः भारतीय अपने देश के किसी भी हिस्से में वैसे तो बिना किसी रोक-टोक के घूम सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत का एक हिस्सा ऐसा भी है जहां कोई भी नागरिक बिना अनुमति के नहीं जा सकता। जी हां वो राज्य है नागालैंड, यहां सिर्फ स्थानीय निवासियों को ही बेरोकटोक घूमने की छूट है जबकि अन्य राज्यों के नागरिकों को यहां जाने के लिए इनर लाइन परमिट लेना पड़ता है। इनर लाइन परमिट एक तरह का आंतरिक वीजा जैसा दस्तावेज होता है। इस पर हाल ही में सदन में भी मुद्दा उठा था। दो सांसदों ने लोकसभा में इनर लाइन परमिट सिस्टम के मुद्दे को उठाया था जिस पर सरकार ने कहा जवाब दिया कि भारतीय नागरिकों को अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और दीमापुर को छोड़कर नगालैंड में यात्रा के लिए इनर लाइन परमिट की जरूरत होती है।

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सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था मामला
भाजपा नेता अश्निनी उपाध्याय ने इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट में आईएलपी के खिलाफ याचिका दायर करने वाले अश्निनी उपाध्याय ने कहा था कि आईएलपी व्यवस्था अपने ही देश में वीजा लेने की तरह है। उनके मुताबिक यह संविधान से भारतीय नागरिकों को मिले अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव की मनाही), 19 (स्वतंत्रता) और 21 (जीवन) के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि नागालैंड में 90 प्रतिशत आबादी ईसाई हो चुकी है। नागा आदिवासियों के संरक्षण के लिए इनर लाइन परमिट की व्यवस्था की गई थी लेकिन यहां अब ईसाई ज्यादा हो गए हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया था कि आदिवासी अपने पुराने रीति-रिवाजों की जगह चर्चों में ईसाई रीति-रिवाज से शादियां कर रहे हैं, ऐसे में अब नागाओं के संरक्षण के मकसद से लागू इनर लाइन परमिट का कोई औचित्य ही नहीं रहा। हालांकि 2 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि वह अभी इस मसले को नहीं सुनना चाहता।

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दीमापुर में इनर लाइन परमिट शुरू करने पर विचार
उपाध्याय का आरोप है कि नागालैंड के स्थानीय नेता अलगाववाद की दुकान चलाने के लिए चाहते हैं कि स्थानीय जनता का बाहर के लोगों से संपर्क न हो सके। इनर लाइन परमिट के जरिए देश-दुनिया से नागालैंड को काटने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि मैदानी क्षेत्र दीमापुर में भी राज्य सरकार परमिट सिस्टम लागू करना चाहती है।
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वर्ना जम्मू-कश्मीर में भी होते ऐसे हालात
जम्मू-कश्मीर में आज कोई भी नागरिक बिना किसी परमिशन के घूमकर आ सकता है और यह सब श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आंदोलन की वजह से ही है। जम्मू-कश्मीर में भी पहले इनर लाइन परमिट रूल था। मगर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आंदोलन के बाद वहां परमिट सिस्टम खत्म हो गया लेकिन नागालैंड में यह सिस्टम जारी है जो अब राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बन गया है।
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क्या होता है इनर लाइन परमिट
बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्यूलेशन्स, 1873 के तहत यह व्यवस्था एक सीमित अवधि के लिए किसी संरक्षित, प्रतिबंधित क्षेत्र में दाखिल होने के लिए अनुमति देता है। नौकरी या फिर पर्यटन के लिए पहुंचने वालों को इनर लाइन परमिट लेना जरूरी है। बताया जाता है कि गुलामी के दौर में ब्रिटिश सरकार ने इस सिस्टम की शुरुआत की थी। उस समय में नागालैंड में जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक औषधियों का प्रचुर भंडार था जिसे ब्रिटेन भेजा जाता था। ब्रिटिश सरकार ने इनर लाइन परमिट इसलिए शुरू किया था ताकि यहां की औषधियों पर दूसरों की नजर न पड़े और कोई इनको राज्य से बाहर न लेकर जा सके। वहीं आजादी के बाद सरकार ने इस सिस्टम को इसलिए जारी रखा कि नागा आदिवासियों का रहन-सहन, कला संस्कृति, बोलचाल औरों से अलग है और उनके संरक्षण के लिए ऐसा किया गया।

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