कर्नाटक चुनाव: जबरदस्त जोर-आजमाइश

Edited By Anil dev,Updated: 31 Mar, 2018 11:10 AM

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बेशक कर्नाटक के विधानसभा चुनाव का ऐलान मंगलवार को हुआ हो पर राज्य में सियासी जोर-अजमाइश बहुत पहले ही शुरू हो चुकी है। ऐसे में यह सवाल अब खासा अहम है कि कर्नाटक में कमल खिलेगा या हाथ की फिर वापसी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक राज्य में 8...

बेंगलूर: बेशक कर्नाटक के विधानसभा चुनाव का ऐलान मंगलवार को हुआ हो पर राज्य में सियासी जोर-अजमाइश बहुत पहले ही शुरू हो चुकी है। ऐसे में यह सवाल अब खासा अहम है कि कर्नाटक में कमल खिलेगा या हाथ की फिर वापसी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक राज्य में 8 रैलियां कर चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी बीते महीनों के दौरान यहां 4-4 बार जा चुके हैं। कांग्रेस और भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं के राज्य में  लगातार दौरे इस बात का सबूत है कि कर्नाटक में इस बार का विधानसभा चुनाव केवल राज्य में एक निर्वाचित सरकार के गठन भर के लिए नहीं है। असल में भाजपा और कांग्रेस के आला नेताओं का बहुत कुछ दाव पर लगा है। मुल्क की सियासत में किसी एक राज्य के विधानसभा चुनाव में एक साथ इतना कुछ दाव पर लगा हो, ऐसा कम ही देखने को मिलता है।

सिद्धरमैया के लिए बड़ी चुनौती
कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता को बरकरार रखना मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के लिए बड़ी चुनौती होगी। अगर पार्टी को यहां जीत मिलती है तो मोदी-शाह की जोड़ी को वह एंटी-इन्कम्बैंसी के बावजूद मात देने में कामयाब होंगे। कांग्रेस ने राज्य लिंगायत को अलग धर्म देने का दाव खेला है। अगर पार्टी यहां जीत जाती है तो यह दाव उसके लिए मुफीद साबित होगा, अगर हारी तो इस फैसले को भी हार का कारण माना जा सकता है। पार्टी का मानना है कि राज्य सरकार का यह फैसला कांग्रेस के पक्ष में रहेगा। कांग्रेस कर्नाटक चुनाव को धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता के मुद्दे पर लड़ रही है।

भाजपा को मोदी लहर का सहारा
कर्नाटक की सत्ता में दोबारा से वापसी के लिए भाजपा का सबसे बड़ा भरोसा मोदी लहर पर है। 2013 में सत्ता गंवाने के बाद भाजपा ने 2014 के चुनाव में कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में से 17 पर जीत हासिल की थी। भाजपा का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी वोट खींचने वाले नेता हैं और उनके नाम पर लोग विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट देंगे।

योगी के नाथ संप्रदाय पर नजर
योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ गोरखनाथ नाथ मंदिर के महंत भी हैं। नाथ संप्रदाय पर यकीन रखने वाले लोग नाथ संप्रदाय के महंत को भगवान का दर्जा देते हैं। इतना ही नहीं, महंत को महादेव का अवतार भी मानते हैं। त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय के लोगों को भाजपा खेमे में लाने में योगी ने अहम भूमिका निभाई थी। इसी तर्ज पर कर्नाटक में नाथ संप्रदाय के लोगों को भाजपा खेमे में लाने की जिम्मेदारी योगी आदित्यनाथ को सौंपी गई है।

येद्दियुरप्पा व लिंगायत वोट से भी आस
कर्नाटक की सत्ता पर फिर से भाजपा ने काबिज होने के लिए अपने दिग्गज नेता बी.एस. येद्दियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके पार्टी का चेहरा बनाया है। 2013 में येद्दियुरप्पा की बगावत भाजपा की हार की वजह बनी थी। पिछले चुनाव के नतीजों को देखें तो भाजपा को करीब 20 प्रतिशत और येद्दियुरप्पा की पार्टी को 10 प्रतिशत वोट मिले थे।

ध्रुवीकरण की बिसात
ध्रुवीकरण की बिसात पर कर्नाटक की सियासी जंग जीतने की कवायद की जा रही है। पिछले दिनों सिद्धरमैया ने कहा था कि भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे को हवा देकर वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश में लगी है। योगी आदित्यनाथ ने कर्नाटक दौरे के दौरान हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने की कोशिश की थी। कांग्रेस को टीपू सुल्तान का हितैषी बताकर मुस्लिम परस्त और भाजपा को भगवान हनुमान का समर्थक कह कर हिंदू परस्त बताने की कोशिश की है।

यह बात है कांग्रेस के खिलाफ
प्रतिष्ठा का प्रश्न बने कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों दल भले ही बड़े-बड़े दावे कर रहे हों लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि राज्य में 1985 के बाद से किसी भी दल की लगातार दोबारा सरकार नहीं बनी है। यही बात इस बार कांग्रेस के खिलाफ जाती है जिसने 2013 में हुए पिछले चुनाव में 122 सीटें जीत कर भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था।

यह बात है भाजपा के खिलाफ
राज्य विधानसभा चुनाव का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि 1978 के बाद से  केंद्र में सत्तारूढ़ दल राज्य में बहुमत हासिल करने में सफल नहीं रहा जो भाजपा के खिलाफ है। हालांकि पिछला चुनाव इसका अपवाद है। पिछले चुनाव में केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस कर्नाटक में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल हुई थी। देखना है कि क्या इस बार भाजपा भी ऐसा कर पाती है जो केंद्र में इस समय सत्तारूढ़ है।

कांग्रेस का लिंगायत कार्ड भाजपा की मुसीबत
मंगलवार को अमित शाह के चित्रदुर्गा के एक मठ के दौरे से यह जाहिर हो गया कि लिंगायत को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा देने का आंदोलन भाजपा के लिए गले की फांस साबित हो रहा है। कर्नाटक में लिंगायत को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा देने की कांग्रेस की चाल स्थापित सियासी समीकरणों को बदल कर भाजपा के जनाधार में सेंध लगा सकती है। पुराने बंधनों को तोडऩे और नई वफादारियों को कायम करने की कूवत है। इस आंदोलन ने सियासी-समाजिक तौर पर जो हलचल पैदा की है उससे कांग्रेस को भाजपा के वोट को बांटने में मदद मिल सकती है और ऐसे में भगवा पार्टी का दक्षिण भारत में अपनी पहुंच कायम रखना मुश्किल हो सकता है।

2013 में ये थी दलीय स्थिति
2013 में हुए कर्नाटक विधानसभा की कुल 224 सीटों पर हुए चुनावों में जहां कांग्रेस ने 122 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था वहीं भाजपा को मात्र 39 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। देवगौड़ा की जे डी एस ने 41 सीटें व येदुरप्पा की के एस पी ने जी 7 सीटें जीत कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।  इन चुनावों में अन्य के खाते में 20 सीटें गई थी।

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