2014 में जिन पांच मुद्दों पर जीते थे मोदी, उन्हीं नाकामयाबियों को हथियार नहीं बना पा रही कांग्रेस

Edited By Anil dev,Updated: 07 Sep, 2018 03:24 PM

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अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी का बिगुल राजनीतिक रणभूमि में बज चुका है। एक तरफ बीजेपी 2014 की अपनी जीत को दोहराने की हर कोशिश में है तो दूसरी तरफ कांग्रेस महागठबंधन के जरिए अपनी गलती को सुधारने की कोशिश में है। इसके लिए कांग्रेस मोदी फैक्टरर्स को...

नई दिल्लीः अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी का बिगुल राजनीतिक रणभूमि में बज चुका है। एक तरफ बीजेपी 2014 की अपनी जीत को दोहराने की हर कोशिश में है तो दूसरी तरफ कांग्रेस महागठबंधन के जरिए अपनी गलती को सुधारने की कोशिश में है। इसके लिए कांग्रेस मोदी फैक्टरर्स को पहचानने में जुटी हुई है। मोदी सरकार के ऐसे कई मुद्दे रहे हैं, जिन्हें लेकर उसने 2014 में सत्ता हासिल की थी, जिन पर वह अब तक कामयाबी हासिल नहीं कर पाई है। विपक्ष इन सब पर सरकार पर हमला बोलती रही है, लेकिन तमाम मौके पर और अब तक भी विपक्ष जमीनी स्तर पर सरकार के खिलाफ हवा नहीं चला पा रही है... ऐसे कई मुद्दे रहे हैं जिनको जनता के बीच प्रबल रूप से रख कर मोदी सरकार को आम जनता के कटघरे में खड़ा किया जा सकते हैं और विपक्ष कामयाबी हासिल कर सकती है। 

महंगाई
लगातार बेतहाशा बढ़ती महंगाई एक ऐसा मुद्दा रहा है, जो आम जनता से जमीनी जरूरतों से जुड़ा हुआ है। इसी को हथियार बनाते हुए मोदी सरकार ने सत्ता में कदम रखा था। नरेंद्र मोदी ने सत्ता हासिल करने के 100 दिन के अंदर महंगाई पर अंकुश लगाने का वादा किया था, लेकिन सत्ता में आने के चार साल बाद भी बढ़ती महंगाई पर काबू पाना एक चुनौती बना हुआ है। इसमें पेट्रोल-डीजल भी एक अहम पहलू है जिसके कीमतें हालही के दिनों में भी लगातार आसमान छू रही हैं।9 सिंतबर को दिल्ली में पेट्रोल 79.99 रुपये प्रति लीटर है और डीजल 72.7 प्रति लीटर है। वहीं 2014 की कीमतों पर नजर डालें तो 71.41 रुपये प्रति लीटर मिलता था और डीजल की कीमत 56.71 रुपये प्रति लीटर थी। इनका असर रोजमर्रा का चीजों पर पड़ने लगा है। मोदी सरकार के वादे के बाद मंहगाई में कमी नहीं बल्कि बढ़ोत्तरी ही देखी गई है लेकिन उसके बाद भी विपक्ष इस मुद्दे को सड़क पर नहीं उतार पा रही है।

रुपया
इसी तरह रुपया की गिरावट इतिहासिक गिरावट के रूप में सामने आ रही है। मोदी सरकार ने इस मुद्दे को भी अपना हथियार बनाया था। चुनाव प्रचार के दैरान उन्होंने कहा था कि भारतीय रुपया और मनमोहन सिंह दोनों ने अपनी आवाज खो दी है। आज रुपया अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है, इसे एक डॉक्टर की जरूरत है। साथ ही यूपीए पर निशाना साधते हुए ये कहा गया था कि यूपीए जब सत्ता में आई थी तो उसने 100 दिनों में मुद्रास्फीती कम करने का वादा किया था। ठीक इन्ही हालातों से अब मोदी सरकार गुजर रही है, लेकिन ये विपक्ष की कमी है कि वह इन मुद्दों को जनता के बीच गहराई से नहीं पहुंचा पा रही है। इसके साथ ही रोजगार और युवाओं में बेरोजगारी एक ऐसा ही मुद्दा रहा है। 

डिफेंस डील यानि राफेल मुद्दा
2014 चुनाव के समय नरेंद्र मोदी द्वारा अगस्ता वेस्टलैंड और बोफोर्स मामला चर्चा में था। इस समय राफेल डील मुद्दा बनी हुई है। कांग्रेस हर कोशिश में इस के जरिए सरकार को घेरना चाहती है। इसके लिए कांग्रेस के सामने कई मौके आए जिनमें अविश्वास प्रस्ताव का समय भी था लेकिन प्रभावी रूप में इसे सामने रकने पर कांग्रेस इसमें भी असमर्थ रही है। इसके बावजूद कांग्रेस ने ये मुद्दा मजबूती से पकड़ा हुआ है।

लोकपाल बिल
2014 चुनाव के समय एक बड़ा मुद्दा लोकपाल बिल रहा था। जो अन्ना आंदोलन के बाद सुर्खियों में आया था। इस मुद्दे को हथियार बनाते हुए मोदी सरकार मे इसका फायदा उठाया था। उन्होंने कहा था कि सरकार में आते ही कालेधन को वापस लाएंगे और इसे देश के ईमानदार लोगों मे बांटा जाएगा। कांग्रेस पर निशाना सादते हुए उन्होंने कहा था कि कांग्रेस खुद भ्रष्टाचार में लिप्त है। सरकार को 4 साल हो गए लेकिन ये मुद्दा ठंडे बस्ते में पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी मोदी सरकार को नोटिस जारी कर लोकपाल की नियुक्ति नहीं होने को लेकर सवाल खड़े किए हैं। आंकड़ो की बात करें तो विदेशों में जमा भारतीय पैसों की तादाद में बढ़ोत्तरी हुई है।

पाकिस्तान मुद्दा
नरेंद्र मोदी ने अपने प्रचार में कश्मीर आतंकवाद और सीमा पर संघर्षविराम का उल्लंघन के मामलों को खूब उठाया था और हर शहीद के बदले 10 सिर लाने की बात कही थी। लेकिन कश्मीर के हालात में कोई बदलाव नहीं आए हैं। कश्मीर में वार्ताकार की नियुक्ति के बाद भी कोई पक्ष सामने नहीं आ पाया है। वहीं, इस मुद्दे पर उनके रुख में बदलाव आया है और अटल बिहारी वाजपेयी की नीति 'जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत' पर चलने की बात करने लगे हैं। संघर्षविराम का उल्लंघन की घटनाओं के आंकड़े भी लगातार बढ़ते दिख रहे हैं। सिर्फ इसी साल पाकिस्तान की ओर से संघर्षविराम उल्लंघन की 1000 से अधिक घटनाएं हुई हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे मुद्दे हैं जिनसे सरकार को निशाने पर लिया जा सकता है।

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