क्या बच्चे की भूख से बढ़कर है पब्लिक ब्रेस्टफीडिंग का कानून?

Edited By Anil dev,Updated: 25 Jun, 2018 11:31 AM

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पिछले दिनों महिलाओं की मलायम मैगजीन गृहलक्ष्मी में ब्रेस्ट फीड करती मॉडल के पोस्टर को लेकर विवाद छिड़ गया। सोशल मीडिया पर वायरल हुए मैगजीन कवर में मॉडल, कवियत्रि, एक्टर और एयर होस्टेस रही चुकी गीलू जोजेफ ने एक बच्चे को स्तनपान कराते हुए शूट करवाया।

नई दिल्ली/श्वेता यादव: पिछले दिनों महिलाओं की मलायम मैगजीन गृहलक्ष्मी में ब्रेस्ट फीड करती मॉडल के पोस्टर को लेकर विवाद छिड़ गया। सोशल मीडिया पर वायरल हुए मैगजीन कवर में मॉडल, कवियत्रि, एक्टर और एयर होस्टेस रही चुकी गीलू जोजेफ ने एक बच्चे को स्तनपान कराते हुए शूट करवाया। दरअसल 1 मार्च के इशू पर इसे छापने के पीछे मकसद अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मुद्दे को प्रमुखता से रखना था। साथ ही समाज में सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं के स्तनपान कराने पर लोगों के घूरने और विरोध करने पर सवाल उठाना था और उन्हें जागरुक करना था। कवर पर तस्वीर के साथ टैगलाइन थी, 'हमें घूरना बंद करो क्योंकि हमें बच्चे को स्तनपान कराना है।' इसका साफ संदेश था कि महिलाओं के पब्लिक प्लेस पर स्तनपान कराने को सहजता से लिया जाए। लेकिन इसके इतर ये मामला विवादित हो गया और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया। वकील विनोद मैथ्यू ने केरल के कोलम की सीजेएम कोर्ट में पत्रिका और मॉडल के खिलाफ केस दर्ज कराया है जिसमें अश्लीलता फैलाने का आरोप लगा। ये आदेश मार्च में सुनाया गया था लेकिन मामला लोगों के सामने अब उजागर हुआ है। 

कहां से हुई शुरुआत?
ये मामला शुरु हुआ जब कन्नूर के रहने वाले ए बी बीजू ने अपनी पत्नी की नवजात बच्ची को फीड कराते हुए तस्वीर सोशल मीडिया पर डाल दी जिसके बाद सोशल प्लेटफॉम पर बहस शुरु हो गई। बीजू का कहना था कि वो अपने परिवार में सात बच्चों में सबसे छोटे थे और उन्होंने अपनी बड़ी बहनों को बहुत ही सहजता से खुले में स्तनपान कराते देखा है। लेकिन उनकी बेटे होने के बाद उनकी पत्नी को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जिसके बाद बीजू ने पत्नी की स्तनपान कराती एक तस्वीर सोशल मीडिया पर डाल दी। इसी मामले को गंभीरता को समझते हुए और इसके पीछे छुपे मैसेज को आगे लाने के लिए ही गृहलक्ष्मी मैगजीन ने कवर तस्वीर लगाई। 

मैगजीन मामले में कोर्ट ने सुनाई खरी-खरी
मामला कोर्ट पहुंचा तो जस्टिस एंटनी डॉमिनिक और जस्टिस दामा शेषाद्रि नायडू की पीठ ने इस तस्वीर को किसी प्रकार से अश्लील नहीं बताया। कोर्एट ने कहा- 'एक व्यक्ति के लिए जो चीज अभद्रता है वही दूसरे के लिए काव्यात्मक है।' पीठ ने कहा- 'हमें तस्वीर में कुछ भी अश्लील नहीं लग रहा है, न ही इसके कैप्शन में कुछ आपत्तिजनक है। हम तस्वीर को उन्हीं नजरों से देख रहे हैं जिन नजरों से हम राजा रवि वर्मा जैसे कलाकारों की पेंटिंग्स को देखते हैं।' पीठ ने आगे समझाया कि,  'चूंकि सौंदर्य देखने वाले की नजर में होता है उसी तरह अश्लीलता भी नजर में होती है।' कोर्ट का ये कदम सराहनीय रहा जिसने तस्वीर का विरोध करने वालों को सीधे तौर पर सस्ती मानसिकता का हवाला देते हुए उसमें सुधार की गुंजाइश जताई।

पहले भी हुए ऐसे विवाद 
ये पहली बार नहीं है जब सोशल मीडिया पर खुलेआम ब्रेस्ट फीडिंग कराती महिलाओं की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई है। लेकिन भारत में ऐसा पहली बार हो रहा है जिसपर लोग खुलकर बात कर रहे हैं। इससे पहले पश्चिम में इसको लेकर कई तरह के कैंपेन चलाए गए हैं। पिछले साल आस्ट्रेलिया की सीनेटर लारिसा वॉटर्स ने संसद में एक मोशन पास करने के दौरान अपनी 11 हफ्ते की बेटी आलिया जॉय को ब्रेस्टफीड कराती नजर आईं। आस्ट्रेलिया और दुनिया के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जिसकी खूब सराहना हुई और उनकी ये तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई। 

क्या कहता है भारत का कानून और व्यवस्था?
सार्वजनिक जगहों पर स्तनपान कराने को लेकर भारत की बात करें तो इसके विरोध या स्पोर्ट में कोई विशेष कानून नही है। कई जगहों पर इसे सहजता से लिया जाता है खासतौर से गांव और छोटे कस्बों में महिलाएं इसको लेकर काफी जागरुक हैं। लेकिन शहरी इलाकों में महिलाएं संकोच करती दिखती हैं। लोगों से बात करके पता चलता है कि पिछले इलाकों में माएं ज्यादातर साडिय़ा पहनती हैं इसलिए उनके लिए स्तनपान कराते समय खुद को ढकना आसान होता है। लेकिन शहरी इलाकों में ऐसा नहीं है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। कई बार किसी महिला के पब्लिक प्लेस पर स्तनपान कराने पर रोक-टोक की जाती है तो कई बार उन्हें लोग घूरते मिल जाते है। शायद इसी समस्या मद्देनजर रखते हुए और समझते हुए मैगजीन ने अपने कवर को पब्लिक ब्रेस्टफीडिंग से जोड़ा और मुखरता से रखा।

क्या है हल?
सवाल ये है कि कोई कानून ना होने से क्या देश में पब्लिक ब्रेस्टफीडिंग को लेकर खुलापर आ जाएगा? नहीं, ये एक संवैधानिक समस्या से ज्यादा एक सामाजिक सरोकार है जो लोगों की मानसिकता से सीधे तौर पर जुड़ा है। इसलिए लोगों में इसको लेकर जागरुकता आए, काम करना चाहिए। साथ ही अगर महिला खुद को असहज महसूस करें भी तो शहर में शौचालयों के निर्माण के स्तर पर इस तरह के प्राइवेट स्पेस महिलाओं के लिए तेजी से बनाने चाहिए क्योंकि एक भूखे बच्चें को आपकी छोटी मानसिकता से कोई लेना-देना नहीं और हमें भी उसकी भूख को इन सब बचकानी बातों से ऊपर रखना होगा।

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