नागपुर में चुनावी मुकाबला होगा रोमांचक, गडकरी से निपटना विपक्ष के लिए नहीं होगा आसान

Edited By Utsav Singh,Updated: 14 Apr, 2024 06:53 PM

nagpur election will not be easy for the opposition to deal with gadkari

कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली महाराष्ट्र की नागपुर लोकसभा सीट पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरने से मुकाबला रोमांचक हो गया है और देश भर की निगाहें इस सीट पर हैं।

नेशनल डेस्क : कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली महाराष्ट्र की नागपुर लोकसभा सीट पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरने से मुकाबला रोमांचक हो गया है और देश भर की निगाहें इस सीट पर हैं। भाजपा उम्मीदवार गडकरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बेहद करीबी हैं। इसके अलावा, गडकरी द्वारा किए गए विकास कार्यों के साथ-साथ जनता से सीधा संवाद स्थापित करने से उनके प्रशंसकों की एक बड़ी संख्या है। वर्ष 2014 में गडकरी ने सात बार के सांसद विलास मुत्तेमवार को 2.84 लाख वोटों के अंतर से हराया था और 2019 में कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई के तत्कालीन प्रमुख नाना पटोले को 2.16 लाख वोटों से हराकर सीट बरकरार रखी।

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गडकरी को मोदी के विकल्प के रुप में भी देखा जाता है 
नागपुर सीट पर 22,18,259 मतदाता हैं, जिनमें 11,10,840 पुरुष, 11,07,197 महिलाएं और 222 तृतीय लिंग के व्यक्ति शामिल हैं। यह विदर्भ का सबसे बड़ा शहर है और इसका संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से है, जो भाजपा का वैचारिक संगठन है। साथ ही नागपुर आंबेडकरवाद के लिए भी पहचाना जाता है क्योंकि महान समाज सुधारक ने यहीं बौद्ध धर्म अपनाया था। नागपुर सीट कांग्रेस का गढ़ थी, जिसने 17 में से 13 बार इस पर जीत हासिल की है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विवेक देशपांडे ने ‘कहा, ‘‘गडकरी आरएसएस पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं और वह संगठन के बहुत करीब हैं। उन्हें भाजपा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप में भी देखा जाता है। ये दो पहलू नागपुर को एक बहुत महत्वपूर्ण सीट बनाते हैं।''

भाजपा पर ‘वॉशिंग मशीन' को लेकर तंज कसा जा रहा
उन्होंने कहा कि गडकरी 2014 में मोदी लहर के कारण जीते जबकि 2019 में वह अपने ‘‘विकास पुरुष'' वाली छवि के कारण दोबारा जीते क्योंकि गडकरी ने नागपुर के साथ-साथ देश में कई बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू कीं। देशपांडे ने दावा किया कि सीधे अपनी बात रखने की क्षमता ने गडकरी को मोदी के समक्ष चुनौती पेश करने वाले एकमात्र नेता के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई है। राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, ‘‘पुलवामा जैसे कारक जो 2019 में भाजपा के लिए मददगार साबित हुए, वे नदारद हैं। कथित तौर पर दागी नेताओं को शामिल करने के बाद भाजपा पर ‘वॉशिंग मशीन' को लेकर तंज कसा जा रहा है। पिछली बार के उलट विपक्ष एकजुट है। भारत जोड़ो और न्याय यात्रा के बाद एक गंभीर राजनेता के रूप में राहुल गांधी की प्रतिष्ठा में सुधार हुआ है।'' उन्होंने कहा कि इसके अलावा, बेरोजगारी और महंगाई चर्चा का विषय है।

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नागपुर में गडकरी की छवी निर्णायक कारक 
देशपांडे ने कहा कि नागपुर में गडकरी का काम और मतदाताओं के बीच उनकी छवि निर्णायक कारक साबित हो सकती है। हालांकि उन्होंने दावा किया कि नागपुर में लगभग 12 लाख मतदाता दलित, कुनबी, हल्बा और मुस्लिम समुदायों से हैं और ये लगातार तीसरी जीत के लिए गडकरी की कोशिश में जातिगत समीकरणों को बिगाड़ सकते हैं। देशपांडे ने कहा कि पटोले को नागपुर के बाहर से होने के बावजूद 2019 में 4.5 लाख वोट मिले जबकि कांग्रेस के 2024 के उम्मीदवार विकास ठाकरे एक स्थानीय नेता हैं, ऐसे में चुनावी मुकाबला खासा रोमांचक हो सकता है। पूर्व सांसद और वरिष्ठ कांग्रेस नेता विलास मुत्तेमवार ने भाजपा के उन दावों को खारिज किया कि उसने नागपुर में सर्वांगीण विकास किया है। उन्होंने दावा किया, ‘‘नागपुर कांग्रेस का गढ़ है। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के खिलाफ फर्जी आरोपों और झूठे वादों के कारण भारतीय जनता पार्टी ने 2014 और 2019 में जीत हासिल की। लोग अब पूरी तरह से जागरूक हो गये हैं।

 

 

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