आखिर क्या था भगत सिंह की फांसी के बाद का पूरा सच? ऐसा बीता था उनका आखिरी वक्त

Edited By Anil dev,Updated: 23 Mar, 2021 11:39 AM

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भारत की स्वतंत्रता के लिए 23 मार्च खास महत्व रखता है। भारत इस दिन को हर वर्ष शहीद दिवस के रूप में मनाता है। वर्ष 1931 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च के ही दिन फांसी दी गई थी।

नेशनल डेस्क: भारत की स्वतंत्रता के लिए 23 मार्च खास महत्व रखता है। भारत इस दिन को हर वर्ष शहीद दिवस के रूप में मनाता है। वर्ष 1931 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च के ही दिन फांसी दी गई थी। शहीद-ए-भगत सिंह को फांसी मिलने के बाद 24 मार्च, 1924 की सुबह में सभी लोगों में अफरा-तफरी मची हुई थी। मौत का सच जानने के लिए लोग यहां-वहां भाग रहे थे और अखबार तलाश रहे थे। उस सुबह जिन लोगों को अखबार मिला उन्होंने काली पट्टी वाली हेडिंग के साथ यह खबर पढ़ी कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में पिछली शाम 7:33 पर फांसी दे दी गई। वह सोमवार का दिन था। ऐसा कहा जाता है कि उस शाम जेल में पंद्रह मिनट तक इंकलाब जिंदाबाद के नारे गूंज रहे थे।

एक दिन पहले ही दे दी फांसी
केंद्रीय असेम्बली में बम फेंकने के जिस मामले में भगत सिंह को फांसी की सजा हुई थी उसकी तारीख 24 मार्च तय की गई थी। लेकिन उस समय के पूरे भारत में इस फांसी को लेकर जिस तरह से प्रदर्शन और विरोध जारी था उससे सरकार डरी हुई थी और उसी का नतीजा रहा कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को चुपचाप तरीके से तय तारीख से एक दिन पहले ही फांसी दे दी गई।

क्या थे भगत सिंह के आखिरी शब्द
फांसी के समय जो कुछ आधिकारिक लोग शामिल थे उनमें यूरोप के डिप्टी कमिश्नर भी शामिल थे। जितेंदर सान्याल की लिखी किताब भगत सिंह के अनुसार ठीक फांसी पर चढऩे के पहले के वक्त भगत सिंह ने उनसे कहा, मिस्टर मजिस्ट्रेट आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के कांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं।

इस वजह से हुई थी फांसी
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद सेंट्रल एसेंबली में बम फेंक दिया। बम फेंकने के बाद वे भागे नहीं, जिसके नतीजतन उन्हें फांसी की सजा हुई थी। तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दे दी गई थी। जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे, उन्होंने कई किताबें पढ़ीं थी। 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे।

आखिर क्या हुआ 23 मार्च के दिन
जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे उन्होंने कई किताबें पढ़ीं। 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी ही पढ़ रहे थे। जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनकी फांसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले। फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - ठीक है अब चलो।

जेल में भगत सिंह का आखिरी वक्त ऐसे बीता
भगत सिंह को किताब पढऩे का शौक था. उन्होंने आखिरी वक्त में रिवॉल्युशनरी लेनिन नाम की किताब मंगवाई थी> उनके वकील प्राणनाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे। भगत सिंह ने किताब के बारे में पूछा. मेहता ने किताब दी और भगत सिंह फौरन उसे पढऩे लगे। इसके बाद मेहता ने पूछा आप देश के नाम कोई संदेश देना चाहेंगे। भगत सिंह ने कहा, सिर्फ दो संदेश है साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और कलाब जिंदाबाद।

रूस में भगत सिंह के जीवन काल के दौरान ही क्रांति शुरू हुई 
बता दें कि यह वही दौर था जब जापान जैसे छोटे देश ने सोवियत संघ जैसे बड़े साम्राज्य को युद्ध में हराया। रूस में भगत सिंह के जीवन काल के दौरान ही क्रांति शुरू हुई और किसानों और गरीब मजदूरों की बात शुरू हुई। इसी कारण भारत में ब्रिटिश अधिकारियों को भारत छोडऩे के लिए भगत सिंह ने क्रांति का रास्ता अपनाया और वीरगति को प्राप्त हुए। आज के समय में भगत सिंह के नाम पर उनके लिए लिखे जाने वाले किताबों में उन्हें किसी एक विचारधारा से जोडऩे का प्रयास किया जाता है।

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