Edited By Anil dev,Updated: 30 Jul, 2022 11:28 AM
कर्नाटक के पैंकुलम, शोरानूर के पास 90 साल की उम्र में मदाथिल वेट्टिल नारायणन नायर अभी भी उसी उत्साह और जोश के साथ चाय को मिश्रित करते हैं, जैसे वह 1947 में आजादी के बाद अपनी किशोरावस्था किया करते थे। वह पिछले 75 वर्षों से भरतपुझा के तट पर एक...
नेशनल डेस्क: कर्नाटक के पैंकुलम, शोरानूर के पास 90 साल की उम्र में मदाथिल वेट्टिल नारायणन नायर अभी भी उसी उत्साह और जोश के साथ चाय को मिश्रित करते हैं, जैसे वह 1947 में आजादी के बाद अपनी किशोरावस्था किया करते थे। वह पिछले 75 वर्षों से भरतपुझा के तट पर एक पारंपरिक चाय की दुकान चला रहे हैं। एक मीडिया को दिए साक्षात्कार में नायर कहते हैं कि चाय मिलाने के अपने जुनून के कारण वह शादी करना भूल गए। वह रोजाना करीब दो दर्जन आधा कप चाय पीते हैं।
90 की उम्र में भी वह मुख्य रूप से चाय पीने के लिए दुकान चलाते हैं। वह कहते हैं मेरी दुकान पर जो भी आता है मैं उसे चाय और नाश्ता परोसता हूं। नायर हंसते हुए कहते हैं कि अगर कोई नहीं आता है, तो भी मैं इसे चलाऊंगा क्योंकि मुझे चाय पीना है। नायर को चाय और नाश्ता आधा आना (तीन पैसे के बराबर) बेचना याद है। मुद्रा और उसका मूल्य दशकों में बदल गया है, लेकिन उस चाय की गुणवत्ता नहीं जिसे नायर मिश्रित करते हैं। वह कहते हैं मेरी चाय बिल्कुल नहीं बदली है।
पैंकुलम और उसके आसपास के बहुत से स्थानीय लोग नायर की चाय के आदी हैं। वह सुबह 4 बजे उठते हैं, सूर्योदय से पहले कालिख से पुती दुकान खोलते हैं, और अपनी गाय के दूध से बनी गर्म जायकेदार चाय पेश करते हैं। अपनी बहन माधविकुट्टी के साथ रहने वाले नायर को इडली, डोसा, पुट्टू और पकौड़ा बनाने में बच्चों की मदद मिलती है। हालांकि केरल में ज्यादातर जगहों पर एक चाय की कीमत ₹10 है,पर नायर कोई फिक्स चार्ज नहीं लगाते हैं। वह कहते हैं लोग जो कुछ भी देते हैं मैं उसे स्वीकार करता हूं। यह 5 और 10 के बीच कुछ भी हो सकता है।
अपने चाचा अच्युतन नायर की चाय की दुकान में उन्होंने एक सहयोगी के रूप में अपना सफर शुरू किया था, तब वह एक छोटे बालक थे। नायर ने 1995 में कैनाल रोड पर अपने घर के बगल में वर्तमान दुकान के साथ बसने से पहले पड़ोसी स्थानों जैसे थोजुपदम और वाझालिक्कवू में अपनी दुकान चलायी। वह कहते हैं कि लगभग 25 वर्षों तक जब मैं वाझालिक्कवू में दुकान चलाता था, तब मेरा व्यवसाय बहुत तेज़ था, लेकिन जब मैं टूटा तो मुझे इसे बंद करना पड़ा। वह पारंपरिक तरीके से चाय मिलाते हैं और पारंपरिक आठ औंस कांच के गिलास में परोसते हैं। वह अभी भी जलाऊ लकड़ी का उपयोग करते हैं। वह कहते हैं कि मैं चाय पिए बिना नहीं रह सकता और मैं मरते दम तक इस दुकान को चलाना चाहता हूं। उनकी आंखों में इस संकल्प की एक दुर्लभ चमक थी।