बाल संरक्षण गृहों में 70 फीसद बच्चे आठ राज्यों से, परिवार से उन्हें मिलाना चाहता है NCPCR

Edited By Anil dev,Updated: 26 Sep, 2020 05:01 PM

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देश की बाल अधिकार से जुड़ी शीर्ष संस्था एनसीपीसीआर ने बाल संरक्षण गृह में 70 फीसद से ज्यादा बच्चों के लिये जिम्मेदार आठ राज्यों को निर्देश दिया है कि वे इन बच्चों की उनके परिवारों के पास वापसी सुनिश्चित करें। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग...

नई दिल्ली: देश की बाल अधिकार से जुड़ी शीर्ष संस्था एनसीपीसीआर ने बाल संरक्षण गृह में 70 फीसद से ज्यादा बच्चों के लिये जिम्मेदार आठ राज्यों को निर्देश दिया है कि वे इन बच्चों की उनके परिवारों के पास वापसी सुनिश्चित करें। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कहा कि यह हर बच्चे का अधिकार है कि उसकी परवरिश पारिवारिक माहौल में हो। एनसीपीसीआर ने कहा कि इन संस्थानों में रह रहे बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता के मद्देनजर भी यह फैसला लिया गया है। इन आठ राज्यों - तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मिजोरम, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और मेघालय- के बाल संरक्षण गृहों में 1.84 लाख (या करीब 72 प्रतिशत) बच्चे हैं। देश भर के बाल संरक्षण गृहों में कुल 2.56 लाख बच्चे हैं। 

एनसीपीसीआर ने इन राज्यों में जिलाधिकारियों और कलेक्टरों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि बाल संरक्षण गृहों में रह रहे बच्चे अपने परिवार के पास चले जाएं। आयोग ने निर्देश में कहा कि कोशिश हो कि यह काम 100 दिनों के अंदर पूरा कर लिया जाए। इसमें कहा गया है कि जिन बच्चों को उनके परिवार के पास वापस नहीं भेजा जा सकता उन्हें गोद देने की प्रक्रिया शुरू की जाए या फिर पालन गृह में रखा जाए। एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने इस निर्देश के बारे में कहा कि यह प्रक्रिया चरणबद्ध रूप में लागू होगी और इसकी शुरुआत इन आठ राज्यों से हो रही है। बाद में इसे देश भर में लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा, च्च्किशोर न्याय अधिनियम का सिद्धांत है कि बच्चों को उनके परिवारों के साथ रखा जाए और बाल संरक्षण गृहों में बच्चों को रखना तब अंतिम विकल्प होने चाहिए, जब उन्हें पारिवारिक माहौल देने के दूसरे सभी विकल्पों के लिये प्रयास कर लिये गए हों। 

उन्होंने कहा, दक्षिण भारत में देखा गया कि कुछ बाल कल्याण समितियां (सीडब्ल्यूसी) परिवार की गरीबी के कारण उन्हें बाल संरक्षण गृह में ही रखने का आदेश दे रही हैं। आप गरीबी की वजह से किसी बच्चे से परिवार के अधिकार को नहीं छीन सकते। अगर गरीबी की वजह से बच्चे को परिवार से दूर बाल संरक्षण गृह में रहना पड़े तो यह राष्ट्र की विफलता है। यह राष्ट्र का दायित्व है कि परिवार को इतना समर्थ बनाया जाए कि वो बच्चों की देखभाल कर सकें।ज्ज् उन्होंने कहा कि आयोग हर जिले के साथ बैठक कर इस योजना पर चर्चा करेगा कि कैसे हर बच्चे को उनके परिवार के पास वापस भेजा जा सकता है। कानूनगो ने कहा, हमने 100 दिनों का लक्ष्य रखा हैज्इसके अंत तक हमारा लक्ष्य है कि बच्चे अपने परिवारों तक वापस पहुंच जाएं।

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