नजरिया: महागठबंधन की गांठें

Edited By Anil dev,Updated: 31 Jul, 2018 01:12 PM

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अविश्वास प्रस्ताव के धूल -धूसरित होने के बाद संसद के मानसून सत्र में 2019 की चुनावी सियासत और मुखर हो गई है। जैसा कि हम पहले भी लिख चुके हैं कि विश्वास प्रस्ताव महज एक जरिया था यह जानने का कि कौन कौन मोदी विरोध में है, ताकि उसे महागठबंधन का हिस्सा...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): अविश्वास प्रस्ताव के धूल -धूसरित होने के बाद संसद के मानसून सत्र में 2019 की चुनावी सियासत और मुखर हो गई है। जैसा कि हम पहले भी लिख चुके हैं कि विश्वास प्रस्ताव महज एक जरिया था यह जानने का कि कौन कौन मोदी विरोध में है, ताकि उसे महागठबंधन का हिस्सा बनाया जा सके। बहरहाल उस मामले में बीजद और शिवसेना ने कांग्रेस को झटका दिया है। 

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उधर सारा भाषण बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने के बाद राहुल की जफ्फी और उससे भी ज्यादा आंख मारने ने भी समीकरण बदल डाले हैं। ऐसे में अब नए सिरे से बन रही रणनीति के तहत करीब करीब यह तय है कि राहुल गांधी पी एम कैंडिडेट नहीं होंगे। उन्हें गुजरात की क्रांतिकारी धरती पर जाहिर की गई अपनी इच्छा पर नियंत्रण करना होगा वर्ना कई कुछ अनियंत्रित हो जाएगा। अब वे कांग्रेस के पीएम कैंडिडेट तो हो सकते हैं, लेकिन महागठबंधन के तो नहीं। अब विपक्ष  बिना किसी का नाम आगे बढाए मोदी और बीजेपी से लडऩे के रास्ते ढूंढ रहा है। यानी जो बात शरद पवार ने राहुल से मुलाकात के बाद कही थी कि किसी एक नेता को आगे रखकर चुनाव लडऩा संभव नहीं है  वही हुआ है, लेकिन इस बहाने भानुमति का पिटारा भी खुल गया है। ताजा समीकरणों के लिहाज से सब पार्टियों के अपने -अपने  पीएम सामने आने लगे हैं। बिहार में लालू तो यू पी में नेता जी मुलायम यादव ने कमर कस ली है पी एम बनने के लिए।

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वहीं महिला कैंडिडेट के नाम पर माया और ममता की हसरतें भी जग उठी हैं। मायावती के पास फिलवक्त एक भी सांसद नहीं है लेकिन बहन जी को लगता है कि बात अगर महिला प्रधानमंत्री की हो तो यह उनका आरक्षित अधिकार है। ऐसे में 34 सांसदों वाली ममता बनर्जी भला कैसे चुप रह सकती हैं। बीजेपी की काट में जुटी ममता को इस बहाने नई संजीवनी मिल गई है। वे तो महिला प्रधानमंत्री  के नारे मात्र से इतनी उत्साहित हैं कि बंगालियों और बांग्लादेशियों में अंत भूल गई हैं। उन्हें असम के नागरिकता रजिस्टर से बाहर होने वाले कथित बांग्लादेशी भी बांग्ला वोटर ही लग रहे हैं। यही नहीं उनके बहाने दीदी दिल्ली पहुंच गई हैं और राजेडी, कांग्रेस सहित संभावित महागठबंधन साथियों से मुलाकात भी करेंगी।

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कामरेडों का क्या करेंगी यह तय नहीं है। क्या दीदी उनको या फिर वे दीदी को महागठबंधन में कबूल करेंगे? यह सवाल बना हुआ है। ऐसा ही सवाल यूपी में सपा-बसपा को लेकर भी है। और फिर उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा सांसदों वाले महाराष्ट्र के मराठा क्षत्रप शारद पवार भी तो हैं। उन्हें रेस से बाहर कैसे माना जा सकता है। उधर चार साल मोदी जैकेट की जेब में छिपे रहने के बाद चंद्र बाबू नायडू ने आखिर मोदी पर हमले की पहल की है। भले ही उनका यह प्रयास उलटे मोदी को मजबूत कर गया, लेकिन प्रधानमंत्री तो वे भी बनना चाहते होंगे? इच्छाओं का क्या है उन्हें जताने पर कोई टैक्स थोड़े देना पड़ता है, लेकिन यही तमाम इच्छाएं वास्तव में महागठबंधन की ताकत को कम करने वाली गांठें हैं। जब तक ये गांठें नहीं खुलतीं तब तक मोदी मस्त चाल चलते रहेंगे।  
 

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