ISRO के वैज्ञानिक लॉन्चिंग से पहले इस मंदिर में करते हैं ROCKET की पूजा

Edited By Jyoti,Updated: 23 Jul, 2019 04:20 PM

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विज्ञान और धार्मिक चमत्कार दो अलग-अलग पहलू हैं। अक्सर देखा जाता है जब भी किसी मंदिर व धार्मिक स्थल पर किसी तरह का कोई चमत्कार होता है तो सभी वैज्ञानिक उसे अंधविश्वास का नाम दे देते हैं।

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
विज्ञान और धार्मिक चमत्कार दो अलग-अलग पहलू हैं। अक्सर देखा जाता है जब भी किसी मंदिर व धार्मिक स्थल पर किसी तरह का कोई चमत्कार होता है तो कईं वैज्ञानिक उसे अंधविश्वास का नाम दे देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हर वैज्ञानिक अपनी आंखों देखी व कानों सुनी बात पर ही विश्वास करता है। मगर आपको बता दें कुछ वैज्ञानिक ऐेसे भी हैं जो वैसे तो हर तरह की मान्यता को अंधविश्वास ठहरा देते हैं मगर खुद इसमें विश्वास रखते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि ये कैसे संभव है कि कोई वैज्ञानिक अंधविश्वासी हो। मगर आप मानें या न मानें मगर वैज्ञानिकों के भी ऐसे कईं किस्से सामने आएं हैं जिससे उनके अंधविश्वासी होने का पता चलता है।
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बता दें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का दूसरा मून मिशन Chandrayaan-2 बीते दिन यानि 22 जुलाई को दोपहर 2.43 बजे देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट GSLV-MK3 से लॉन्च किया गया। बताया जाता है ठीक 31 साल पहले इस ही तारीख को हुई लॉन्चिंग अच्छे से सफल नहीं हो पाई थी।

यूं तो हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक किसी भी बड़े या छोटे काम को अंजाम देने से पहले भगवान की पूजा करनी चाहिए लेकिन जब विज्ञान में अपने देश का परचम लहराने वाले वैज्ञानिक ऐसा कुछ करते हैं तब ये सवाल उठाया जाता है कि क्या ये अंधविश्वास है या फिर आस्था।

बताया जाता है इसरो वैज्ञानिक हर लॉन्च से पहले तिरुपति बालाजी मंदिर में जाकर रॉकेट पूजा करते हैं और वहां रॉकेट का छोटा मॉडल चढ़ाते हैं, ताकि उन्हें अपने मिशन में सफलता मिल सके। मगर इस पर भारत रत्न से सम्मानित वैज्ञानिक सीएनआर राव का तो कहना है कि उन्हें इसरो के पूजा की परंपरा ठीक नहीं लगती परंतु ये इसरो वैज्ञानिकों का अपना निर्णय है। बता दें सिर्फ भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ही नहीं, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा, रूसी वैज्ञानिक समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक अंधविश्वास में भरोसा करते हैं और कई टोटके अपनाते हैं। तो आइए जानें दुनियाभर के वैज्ञानिकों के अजोबो-गरीब अंधविश्वास-
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रूसी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों से जुड़े अंधविश्वास
अंतरिक्ष यात्रा से पहले वैज्ञानिक सुनते हैं रोमांटिक गाने
इसके अलावा रूस में वैज्ञानिकों से जुड़ी एक और मान्यता प्रचलित है। इस मान्यता के मुताबिक अंतिरक्ष में जाने से पहले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए रोमांटिक गाने बजाए जाते हैं। कहा जाता है इसकी शुरुआत भी यूरी गैगरीन ने की थी। उन्होंने रॉकेट में बैठने के बाद मिशन कंट्रोल सेंटर से कोई संगीत बजाने को कहा, जिसके बाद कंट्रोल सेंटर ने रोमांटिक गाने लगा दिए तब से लेकर आज भी सभी अंतरिक्ष यात्रियों के लिए वही गाने बजाए जाते हैं जो उस समय गैगरीन के लिए बजाए गए थे।

रॉकेट के न देखने की परंपरा
कहा जाता है कि रूसी अंतरिक्ष यात्री जिस रॉकेट में उन्हें बैठकर जा होता है उसे तब तक नहीं देखते, जब तक कि वे उसमें बैठ नहीं जाते। हालांकि उनकी ट्रेनिंग सिमुलेटेड रॉकेट में ही करवाई जाती है।
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गैगरीन के गेस्ट बुक में करते हैं हस्ताक्षर
यूरी गैगरीन से जुड़ी एक और मान्यता है कि यात्रा पर जाने से पहले उन्होंने अपने ऑफिस में रखे गेस्ट बुक में हस्ताक्षर किए उसके बाद वे अंतरिक्ष गए थे। बताया जाता है तब से इसे एक लकी चार्म मानते हुए सभी अंतरिक्ष यात्री गैगरीन के गेस्ट बुक में हस्ताक्षर करने के बाद ही अपनी यात्रा के लिए रवाना होते हैं।  

सफल लॉन्च के बाद लगाया जाता है पौधा
बता दें रूस का बैकोनूर कॉस्मोड्रोम दुनिया का सबसे पहला और बड़ा लॉन्चपैड है। बताया जाता है 50 सालों से भी ज्यादा समय से यहां हर सफल लॉन्च के बाद एक पौधा लगाया जाता है, जिसे बैकोनूर में एवेन्यू ऑफ हीरोज़ कहा जाता है।

कूलिंग पाइप पर लिखा जाता है महिला का नाम
रूस में वैज्ञानिक अंतरिक्ष यात्रा पर जाने से पहले रूसी कॉस्मोनॉट कूलिंग पाइप पर दुर्घटना से बचने के लिए महिला का नाम लिखा जाता है। बताया जाता है कि एक बारॉ ये काम नहीं किया था तब हादसे के दौरान 47 लोगों की मौत हो गई थी।

24 अक्टूबर को नहीं होता कोई रॉकेट लॉन्च
कहा जाता है कि 1960 और 1963 में 24 अक्टूबर को बैकोनूर में लॉन्च से पहले दो बहुत बड़े हादसे हुए, जिसमें सैकड़ों जानें गई थी। जिस कारण आज तक 24 अक्टूबर को कोई बड़ी छोटी लॉन्चिंग नहीं की जाती।
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ISRO की पूजा
बताया जाता है मंगलयान प्रोजेक्ट के वक्त जब भी मंगलयान को एक से दूसरी कक्षा में शिफ्ट किया जाता था, तब मिशन निदेशक एस अरुणनन मिशन कंट्रोल सेंटर से बाहर आ जाते थे। एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वे ये प्रक्रिया नहीं देखते। अब आप इसे अंधविश्वास मानो या कुछ और। मगर उनका मानना है कि इससे मिशन सफल हुआ था।

कहा जाता है मंगलयान मिशन के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसरो गए थे। तब इसरो में एक प्रोटोकॉल के हिसाब से जब तक पीएम मोदी इसरो में रहेंगे कोई व्यक्ति मिशन कंट्रोल सेंटर के अंदर-बाहर नहीं आ जा सकेग। मगर तब भी अरुणनन को उनकी आदत की वजह से अंदर-बाहर आने-जाने की अनुमति दे दी गई थी।

इसके अलावा इसरो वैज्ञानिक अपने हर लॉन्च से पूर्व तिरुपति बालाजी के मंदिर में रॉकेट पूजा करते हैं और वहां रॉकेट का छोटा मॉडल चढ़ाते हैं। उनका मानना है कि इससे उनका लॉन्च सफल होता है।
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बताया जाता है इसरो के एक पूर्व निदेशक हर रॉकेट लॉन्च के दिन नई शर्ट पहनते थे। आज भी ऐसा करने वाले कई वैज्ञानिक हैं।

आपको जानकर शायद हैरानी हो मगर इसरो के सभी मशीनों और यंत्रों पर विभूति और कुमकुम से त्रिपुंड भी बनाया जाता है।

कई सालों से NASA में चली आ रही है मूंगफली खाने की प्रथा
कहा जाता है NASA (अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी) जब भी कोई मिशन लॉन्च करती है तब जेट प्रोप्लशन लेबोरेटरी में बैठकर वैज्ञानिक मूंगफली खाते हैं। बताते चलें कि 1960 में NASA का रेंजर मिशन 6 बार फेल हुआ था। जब सातवां मिशन सफल हुआ तो कहा गया कि लैब में कोई एक वैज्ञानिक मूंगफली खा रहा था जिस कारण उन्हें मिशन में सफलता मिली थी। जिसके बाद से NASA में आज तक मूंगफली खाने की प्रथा चली आ रही है।

PunjabKesari, नासा वैज्ञानिक, NASA's JPL Caltech Lab

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